
दुनिया में अगर सबसे ज़्यादा दार्शनिक बातें की गई हैं तो वो मौत, ज़िंदगी और प्रेम के विषय में ही हैं. गुलज़ार ने लिखा है- मौत तू एक कविता है. केदारनाथ सिंह ने कहा था- जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है. लेकिन हम न मृत्यु के बारे में बात करने के आकांक्षी हैं न मृत्यु के फलसफे के बारे में. हम बातें करना चाहते हैं जीवन और प्रेम के बारे. वो जीवन जो उन लोगों ने जिया, जो लोग 2019 में हमें अंतिम विदा करके चले गए.
जब गिरीश अपनी मां के पेट में ही थे, तभी इनके माता पिता ने ‘एबॉर्शन’ करवाने का निर्णय लिया था लेकिन, डॉक्टर तय समय पर आई नहीं. और यूं इनके माता पिता जिस बच्चे को पेट में ही खत्म करवा देना चाह रहे थे उसने आखिरकार जन्म लिया. 17 साल की उम्र में गिरीश कर्नाड की दिलचस्पी स्कैच बनाने की हो गई. वो अपने उस दौर के बड़े-बड़े कलाकारों के स्कैच बनाते थे. लेकिन फिर आयरिश नाटककार शॉन ओ’केसी की राय पर उन्होंने पेंटिंग बनाना बंद कर दिया. फिर वजीफा पाकर ऑक्सफ़ोर्ड पढने गए. वहां MA की पढ़ाई की. फिर कुछ जॉब कीं और अंत में नाटकों से फुल टाइम जुड़ गए.# 1) गिरीश कर्नाड
(19 मई, 1938 – 10 जून, 2019)
हालांकि हमारी ये लिस्ट बॉलीवुड या बहुत से बहुत फिल्म की महान हस्तियों की है. लेकिन गिरीश कर्नाड इस लिस्ट के अलावा और भी बहुत सी लिस्ट्स में स्थान पा सकते हैं. एक्टर, राइटर, रंगकर्मी, डायरेक्टर...

बॉलीवुड में डॉ. कर्नाड कम ही दिखते थे लेकिन कन्नड़ सिनेमा, कन्नड़ रंगमंच में एक बहुत बड़ा नाम थे. उनके लिखे कन्नड़ नाटक इतने प्रसिद्ध हुए कि फिर देश विदेश की कई भाषाओं में उनका अनुवाद हुआ.
उनकी अंतिम बॉलीवुड मूवी ‘टाइगर ज़िन्दा है’ थी.
>> प्रमुख कार्य- 'ययाति', 'तुगलक़', 'हयवदन' (नाटक). 'मंथन', 'निशांत', 'अपने पराए', 'मेरी जंग', 'पुकार', 'हे राम' (फ़िल्में).
>> प्रमुख पुरस्कार- संगीत नाटक अकादमी अवार्ड, पद्म श्री, पद्म भूषण, साहित्य अकादमी
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बॉम्बे प्रेजिडेंसी. ब्रिटिश राज़ में 16 नवंबर, 1927 को पैदा हुए श्रीराम लागू . सतारा के रहने वाले. पुणे से मेडिकल की पढ़ाई. फिर प्रैक्टिस.# 2) श्रीराम लागू
(16 नवंबर, 1927 – 17 दिसंबर, 2019)
हालांकि बचपन में डॉ. श्रीराम लागू को स्टेज फीयर ने घेर लिया था, तब से सालों तक स्टेज पर कदम नहीं रखा. लेकिन प्ले खूब देखे. फिर वर्ल्ड थियेटर. लॉरेन ओलिवर और स्पेंसर ट्रेसी जैसे दिग्गजों की फ़िल्में. बाद में मेडिकल कॉलेज के 5 सालों में 5 नाटकों में और कुछ एकाकी नाटकों में अभिनय किया. उसके बाद 3 साल तक सात समंदर पार तंज़ानिया के मशहूर नाक कान गला (ENT) रोग विशेषज्ञ. सब झमाझम. मगर एक दिन 42 साल के इस डॉक्टर ने डॉक्टरी छोड़ दी. और तय किया मुल्क वापस लौटें. एक्टिंग करने के लिए.

उसके बाद मराठी नाटकों में एक्टिंग. मराठी फिल्मों में एक्टिंग. 100+ हिंदी फ़िल्में. दसियों सीरियल्स. और साथ में नाटकों का डायरेक्शन… ये सब… और बहुत कुछ…
वो महाराष्ट्र अंधविश्वास निर्मूलन समिति से सक्रिय रूप से जुड़े हुए थे. वही समिति जिससे नरेंद्र दाभोलकर और गोविंद पानसरे जैसे ख्यात विचारक जुड़े रहे.
>> प्रमुख कार्य- पिंजरा (मराठी मूवी), नटसम्राट(मराठी नाटक), लमाण(ऑटोबायोग्राफी), घरोंदा(हिंदी मूवी), किनारा(हिंदी मूवी).
>> प्रमुख पुरस्कार- ‘बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर’ कैटेगरी में फिल्मफेयर अवॉर्ड, कालिदास सम्मान, संगीत नाटक अकादमी का फेलोशिप अवॉर्ड.
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कॉमरेड शौकत कैफ़ी, 21 अक्टूबर, 1928 को उत्तर प्रदेश में जन्मीं थीं. अपने पेरेंट्स के साथ हैदराबाद शिफ्ट हुईं. मंगनी किसी और से हो चुकी थी. लेकिन तोड़ दी. एक शायर पर दिल आ गया. शायर का नाम कैफ़ी आज़मी. शादी हुई. शादी के बाद पति-पत्नी ने मुंबई को ही अपना ठिया बनाने का सोचा. ‘अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ’ जॉइन किया. ये ‘भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी’ (सीपीआई) की एक ‘कल्चरल’ ब्रांच थी. शौकत ने पृथ्वी थियेटर जॉइन किया. उसके बाद शौकत ने जुम्मा-जुम्मा 13-14 मूवीज़ में भी काम किया. 90 साल की उम्र में 22 नवंबर, 2019 को उनकी मृत्यु हो गई.# 3) शौकत आज़मी/शौकत कैफ़ी
(21 अक्टूबर, 1928 - 22 नवंबर, 2019)

इसके अलावा उनका एक और इंट्रोडक्शन ये है कि वो मशहूर नज्मकार कैफ़ी आज़मी की वाइफ थीं. उनका दूसरा इंट्रोडक्शन ये है कि वो शबाना आज़मी की मां थीं. एक तीसरा इंट्रोडक्शन भी है जावेद अख्तर की सास के तौर पर.
वैसे ये भी एक इंट्रेस्टिंग ट्रिविया है कि जो रोल इन्होंने पुरानी उमराव जान(1981) में किया था, वही रोल इनकी बेटी, शबाना आज़मी ने नई उमराव जान (2006) में प्ले किया.
>> प्रमुख कार्य- 'हक़ीकत', 'सलाम बॉम्बे', 'हीर रांझा', 'उमराव जान', 'बाज़ार'.
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बॉलीवुड एक्टर विजू खोटे ने अपने करियर में 300 से ज्यादा हिंदी और मराठी फिल्मों में काम किया. वीजू 1964 से फिल्मों में काम कर रहे थे. ‘शोले’ फिल्म में इनके कालिया के किरदार को बहुत याद किया जाता है. इस फिल्म में गब्बर का उनके लिए कहा गया डायलॉग- तेरा क्या होगा कालिया? - बहुत चर्चित हुआ.# 4) विजू खोटे
(17 दिसंबर, 1941 - 30 सितंबर, 2019)
उनके टेलीविज़न अवतार को भी कम एप्रिशिएट नहीं किया गया. दूरदर्शन में उनका कॉमेडी सीरियल ‘ज़बान संभाल के’ खूब हिट हुआ था, जिसमें पंकज कपूर हिंदी के टीचर बने थे. ये शो बाद में सब टीवी और उसके बाद बिंदास में भी आया. 2018 में एक वेब सीरीज़ के रूप में ‘ऑल्ट बालाजी’ में इसका रीमेक भी आया. वीजू खोटे ने मराठी थियेटर में भी कई साल काम किया था.

>> प्रमुख कार्य- ‘शोले’, ‘अंदाज़ अपना अपना’, ‘अतिथि तुम कब जाओगे’, ‘गोलमाल 3’ और टीवी सीरियल ‘ज़बान संभाल के’.
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संगीतकार बनने से पहले मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम एक फौजी थे. सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान. उनकी पत्नी जगजीत कौर थीं. 1954 में हुई थी शादी. ये तब की बात है जब समाज में अंतर्धर्मीय विवाह बिलकुल भी प्रचलित न थे. बाद में ख़य्याम ने अपनी पत्नी से ‘शगुन’ में एक गाना गवाया. ‘तुम अपने रंजो गम’. खूब हिट हुआ. इनका एक बेटा था. प्रदीप. जिसकी कुछ साल पहले, 2012 में, हार्ट अटैक से मौत हो गई.# 5) मोहम्मद ज़हूर ख़य्याम
(18 फरवरी, 1927 – 19 अगस्त, 2019)
साहिर लुधियानवी जब अपने करियर के ढलान की तरफ बढ़ रहे थे तब ख़य्याम साहब ने उनके गीत को 'कभी-कभी' में इस्तेमाल किया. साहिर इसके बाद फिर टॉप के लिरिक्स राइटर्स में शामिल हो गए.

1981 में आई ‘उमराव जान’. जिसमें शहरयार की लिखी गज़लों को ख़य्याम ने सुर और आशा भोंसले ने आवाज़ दी. इसे आशा और रेखा के साथ-साथ ख़य्याम के करियर की भी सबसे बड़ी फिल्मों में से एक माना जाता है.
दुखद है न, 'उमराव जान' से जुड़े दो लोग इस लिस्ट में हैं.
>> प्रमुख कार्य- ‘कभी-कभी’, ‘उमराव जान’, ‘नूरी’, ’थोड़ी सी बेवफाई’, ’बाज़ार’, ’रज़िया सुल्तान’, ’फुटपाथ’, ‘त्रिशूल’, ‘फिर सुबह होगी’, ‘शोला और शबनम’.
>> प्रमुख पुरस्कार- फिल्मफेयर (तीन बार, जिसमें से एक लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी शामिल है), नेशनल फिल्म अवॉर्ड, संगीत नाटक अकादमी अवॉर्ड, पद्म भूषण, ह्रदयनाथ मंगेशकर अवॉर्ड.
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कुशल पंजाबी की मौत प्राकृतिक नहीं थी. ये एक सुसाइड था. 26 दिसंबर की रात कुशल की बॉडी उनके घर में लटकी मिली. एक सुसाइड नोट भी मिला. लिखा था कि उनकी मौत की ज़िम्मेदारी किसी और पर नहीं डाली जाए. वो डिप्रेशन में थे, ऐसा पता लगा है.# 6) कुशल पंजाबी
(23 अप्रैल, 1977 – 26 दिसंबर, 2019)
कुशल पंजाबी 23 अप्रैल, 1977 को मुंबई में पैदा हुए थे. शुरुआत में अपने करियर को लेकर काफी कन्फ्यूज़ थे. कभी अपने पिता की तरह आर्मी में जाना चाहते थे. कभी होटल इंडस्ट्री. कभी एयरलाइन इंडस्ट्री. फिल्मों भी उनकी एंट्री सीधे नहीं हुई.
डांस वगैरह करते थे. शामक डावर के डांस इंस्टिट्यूट से जुड़े. बाद में वहीं ट्रेनर बन गए. साथ में मॉडलिंग की. 1995 में डीडी नेशनल पर आने वाले टीवी सीरियल ‘अ माउथफुल ऑफ स्काई’ से एक्टिंग की शुरुआत की. अपने 18-19 साल लंबे करियर में कुशल ने 20 टीवी शोज़ में काम किया. इसमें ‘कभी हां कभी ना’, ‘ये दिल चाहे मोर’, ‘राजा की आएगी बारात’ और ‘गूटरगूं’ खास हैं. कुशल का आखिरी टीवी शो था ‘इश्क में मरजावां’. 2018 में ऑन एयर हुआ था.
2011 में शाहरुख़ ने एक शो होस्ट किया था. 'ज़ोर का झटका'. उसमें कुल 28 प्रतिभागी थे. उस शो में कुशल ने भी पार्टिसिपेट किया था. और उन 28 लोगों में से विनर बनकर उभरे थे. 50 लाख रुपए की प्राइज मनी भी मिली.
>> प्रमुख कार्य- ‘अंदाज़’, ‘श्श्श्श्श’, ‘लक्ष्य’, ‘काल’, ‘सलाम-ए-इश्क’ जैसी फ़िल्में और ‘कुसुम’,‘सीआईडी’,’फियर फैक्टर’,’एक से बढ़कर एक’,’झलक दिखला जा’,’सजन रे फिर झूठ मत बोलो’ जैसे टीवी सीरियल्स और टीवी शोज़. साथ ही श्वेता के सुपरहिट पॉप गीत ‘दीवाने तो दीवाने हैं’ है के वीडियो एल्बम में लीड मॉडल.
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विद्या ने 1974 में फिल्म आई ‘रजनीगंधा’ से फिल्मों में डेब्यू किया था. उनके को-स्टार थे अमोल पालेकर. जोड़ी इतनी हिट रही कि दोनों ने एकसाथ कुल 4 फ़िल्में कीं.# 7) विद्या सिन्हा
(15 नवंबर, 1947 – 15 अगस्त, 2019)
वैसे तो विद्या का पूरा खानदान फिल्मों में था लेकिन उनको पहला ब्रेक और बाद में भी फ़िल्में अपने दम पर मिलीं. दरअसल उन्होंने 1968 में एक ब्यूटी कॉन्टेस्ट में भाग लिया और मिस मुंबई चुनी गईं. उसके बाद ढेरों विज्ञापनों में काम किया. यहां से वो बासु चैटर्जी की नजर में आईं. और ‘रजनीगंधा’ में कास्ट कर ली गईं.
ससुराल वालों को उनके फिल्मों में काम करने से दिक्कत थी तो ज़िद पर अड़ गईं, बोलीं कि मैं घर छोड़कर चली जाऊंगी. तब ससुराल वाले माने. दोनों ने 1989 में बेटी जाह्नवी को गोद लिया. 1996 में पति वेंकटेश की मौत हो गई. वह सबकुछ छोड़कर सिडनी शिफ्ट हो गईं. यहां वह डॉक्टर भीमराव सालुंखे से मिली. 2001 में विद्या ने सालुंखे से शादी की. लेकिन चीजें ठीक नहीं रहीं. 2009 में उन्होंने सालुंखे पर शारीरिक और मानसिक प्रताड़ना देने का आरोप लगाया. 2011 में दोनों अलग हो गए. बेटी की परवरिश का जिम्मा विद्या ने लिया.
>> प्रमुख कार्य- ‘रजनीगंधा’,’छोटी सी बात’,’मुक्ति’,’पति-पत्नी और वो’,’मीरा‘.
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अजय देवगन के पिता, वीरू देवगन. 1957 में घर से भागकर मुंबई आ गए. हीरो बनने के वास्ते. तब उम्र रही होगी 13-14 के करीब. पैसे थे नहीं. छोटे-मोटे काम करने लगे. इस दौरान स्टूडियो के भी चक्कर लगाते. लेकिन ब्रेक नहीं मिला. हारकर फिल्मों में भी छोटे-मोटे काम पकड़ने लगे. फिर पकड़ा एक्शन डिपार्टमेंट. वीरू देवगन स्टंट करने लगे. आखिर फिल्म ही तो उनका पहला और एकमात्र सपना था. जिसकी खातिर अपना गांव छोड़ा. फिर चाहे उससे जैसे भी जुड़ सकें.# 8) वीरू देवगन
(मृत्यु: 27 मई, 2019)
रही बात एक्टिंग की, तो अब अपनी सारी उम्मीदें अपने बेटे से लगा लीं. कहने का मतलब ये कि मुंबई आने के कुछ सालों बाद ही उन्हें पता लग गया था कि ऐसे चेहरे मोहरे से उन्हें हीरो के रोल नहीं मिलेंगे. इसलिए अपना सपना अपने बेटे के माध्यम से पूरा करने की सोची.

वीरू अपने बेटे की लॉन्चिंग को यादगार बनाना चाहते थे. ऐसी एंट्री कि कोई हरगिज़ न भूल पाए. और ऐसा हुआ. क्यूंकि जब-जब अजय देवगन को याद किया जाएगा, उनकी पहली फिल्म ‘फूल और कांटे’ का वो ऐक्शन सीन भी जगह पाएगा. दो चलती हुई बाइक्स. उनपर पैर टिकाए एंट्री करते अजय देवगन. लेदर जैकेट, काला चश्मा. ये सीन वीरू के दिमाग की उपज था, साथ ही तैयारियों से लेकर उसके एग्जीक्यूशन तक में उन्होंने खून पसीना एक कर दिया, और तब जाकर फटा पोस्टर, निकला हीरो. मतलब अजय देवगन, वीरू का लड़का.
हमारी इस लिस्ट में बाकी सारे सेलिब्रेटीज़ थे, लेकिन वीरू सेलिब्रेटी के साथ-साथ एक सेलिब्रेटी के पिता की हैसियत से भी इस लिस्ट में हैं. ऐसे पिता, जिसने अपने लड़के को जन्म ही नहीं दिन उसे बनाया भी. वो, जो आज वो है. वीरू इस लिस्ट में हैं, ताकि जान सकें हम लोग किसी बुलंद इमारत में नींव की ईंट का क्या महत्त्व होता है.
हालांकि अजय देवगन के इतर भी वीरू ने बहुत कुछ किया जिसके बारे में बात की जानी चाहिए. जैसे उन्होंने अस्सी के करीब फिल्मों में फाईट सीन कोरियोग्राफ किए. कई मूवीज़ में भी छोटे-मोटे रोल किए. मल्टीस्टारर फिल्म 'क्रांति' में भी एक छोटे से रोल में दिखे थे. इसके अलावा वो कुछ भुला दी गई फिल्मों में भी दिखे थे. जैसे,'सौरभ','सिंघासन' वगैरह.

अपने बेटे के लिए एक फिल्म भी डायरेक्ट की. 'हिंदुस्तान की कसम'. ये अपने जमाने की बड़ी महंगी फिल्म थी. हालांकि फिल्म चली नहीं. मगर देखने वालों ने कहा, फिल्म भले बेकार हो मगर स्टंट अच्छे थे. तीन फिल्मों को प्रोड्यूस भी किया, जिनमें से 'दिल क्या करे' और उसके गीत खूब सराहे गए.
>> प्रमुख कार्य- 'रोटी कपड़ा और मकान','मि. नटवरलाल','फूल और कांटे','जिगर','दिल क्या करे'.
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इन 8 फ़िल्मी सेलिब्रिटीज़ के अलावा कई और ऐसे सेलिब्रिटीज़ हैं, कई और ऐसे लोग हैं, जो जाते-जाते हमारी आंखें नम कर गए.
>> जैसे एक्टर, डांसर वीरू कृष्णन. जो हालांकि फेमस तो अपने 'राजा हिंदुस्तानी' वाले किरदार के लिए हैं, लेकिन प्रियंका चोपड़ा से लेकर, कटरीना कैफ तक के डांस ट्रेनर रहे थे.
>> जैसे राज कुमार बड़जात्या. सूरज बड़जात्या के पिताजी. राजश्री प्रोडक्शन के को-फाउंडर. 'हम आपके हैं कौन','विवाह','हम साथ साथ हैं'और 'प्रेम रत्न धम पायो' जैसी ब्लॉकबस्टर फिल्मों के प्रोड्यूसर.
जाने वाले की विशेषता ये होती है कि उसकी यादें रुलाती हैं. फिर चाहे यादें अच्छी हों या बुरी. फिर चाहे जाने वाला इंसान हो, या जाने वाला साल.
तो दोस्तों नए वर्ष का स्वागत करते हुए, एक पल रुकिए. ज़रा मुड़कर देखिए. क्या खोया? क्या पाया? कुल मिलाकर कैसा रहा आपका पिछला साल? क्या उम्मीदें हैं, आने वाले से? इन सभी सवालों के साथ हमारी तरफ से विदा. ये जानते हुए कि-जाना हिंदी की सबसे खौफनाक क्रिया है.
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