पाकिस्तान-भारत संघर्ष (India Pakistan conflict) में एक कीवर्ड खूब ट्रेंड कर रहा है. किराना हिल्स (Kirana Hills). चर्चा की वजह यहां पर कथित तौर पर मौजूद न्यूक्लियर साइट (Nuclear Site) और उस पर भारतीय हमले की खबर. हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हुई है. पाकिस्तान ये खबर बताएगा नहीं. वहीं भारतीय एयरफोर्स ने इस सवाल पर गुगली दे दी.
34 साल से 1 जनवरी को भारत-पाकिस्तान क्यों शेयर करते हैं एक सीक्रेट?
1980 के दशक में पाकिस्तान की Kahuta Nuclear facility को टार्गेट करने की Bharat-Israel की योजना की अफवाहों ने इस्लामाबाद को nuclear installations and facilities समझौते के बारे में सोचने पर मजबूर किया.

एयर मार्शल एके भारती ने ये बताने के लिए मीडिया का धन्यवाद जता दिया कि किराना हिल्स में न्यूक्लियर साइट है. मामला न्यूक्लियर वारहेड से जुड़े सीक्रेट का है. इसलिए दोनों देश आधिकारिक तौर पर कुछ कहने से बच रहे हैं. लेकिन न्यूक्लियर साइट से जुड़े कुछ ऐसे सीक्रेट्स भी हैं जिसे भारत-पाकिस्तान हर साल एक दूसरे से शेयर करते हैं. और ये आदान-प्रदान इस साल भी हुआ था.
भारत-पाकिस्तान ने 1 जनवरी 2025 को भी डिप्लोमेटिक चैनल से एक दूसरे के न्यूक्लियर साइट्स की जानकारी साझा की थी. दोनों देश एक दूसरे के न्यूक्लियर साइट्स पर हमला ना करें इसके लिए इन्होंने एक समझौता किया. समझौते के नाम है, ‘प्रोहिबिशन ऑफ अटैक ऑन न्यूक्लियर इंस्टॉलेशंस और फैसिलिटीज’. तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी और पाकिस्तानी प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने 31 दिसंबर, 1988 को इस समझौते पर मुहर लगाई थी. 27 जनवरी 1991 से ये समझौता प्रभावी हो गया.
इसके तहत हर साल की पहली जनवरी को दोनों देश न्यूक्लियर साइट्स की जानकारी एक दूसरे से शेयर करते हैं. ये कवायद पहली बार 1 जनवरी 1992 को हुई थी. अब तक 34 बार दोनों देश एक दूसरे को अपने न्यूक्लियर साइट्स के बारे में बता चुके हैं.
समझौता लागू होने की पृष्ठभूमि क्या थी?भारत और पाकिस्तान के बीच ‘प्रोहिबिशन ऑफ अटैक ऑन न्यूक्लियर इंस्टॉलेशंस और फैसिलिटीज’ समझौते के पीछे का तात्कालिक कारण भारत का एक सैन्य अभ्यास था. जिसे ब्रासस्टैक्स अभ्यास के नाम से जाना जाता है. ऑपरेशन ब्रासस्टैक्स राजस्थान में पाकिस्तानी बॉर्डर के पास आयोजित हुआ था. इसके चलते पाकिस्तान और भारत के बीच तनाव बढ़ गया.
उससे कुछ दिन पहले मिडिल ईस्ट की घटना ने भी इस समझौते की पटकथा लिख दी. इजरायल ने साल 1981 में बगदाद के पास इराक के ओसीराक रिएक्टर पर बमबारी किया. ये पाकिस्तान के लिए एक वेक अप कॉल था. क्योंकि इसके बाद से उसके न्यूक्लियर फैसिलिटी पर हमले की खबर भी चल रही थी. द प्रिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 80 के दशक में पाकिस्तान की कहुटा परमाणु फैसिलिटी को टार्गेट करने की अफवाह उड़ी. दावा किया गया कि भारत-इजरायल मिलकर ऐसी योजना बना रहे हैं. इस अफवाह ने इस्लामाबाद को समझौते के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया.
वहीं इस समझौते के लिए तैयार होने के पीछे भारत के भी अपने कारण थे. भारत में असैन्य न्यूक्लियर इंफ्रास्ट्रक्चर तेजी से बढ़ रहे थे. जिसमें एनर्जी रिएक्टर और रिसर्च लैब शामिल थे. इसलिए दोनों देशों के लिए जानबूझकर या अनजाने में न्यूक्लियर इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमला होने के खतरे को नजरअंदाज करना मुश्किल हो गया था.
समझौते में क्या-क्या लिखा है?इस समझौते के तहत न्यूक्लियर पावर, रिसर्च रिएक्टर्स, ईंधन निर्माण, यूरेनियम भंडार में वृद्धि, आइसोटोप सेपरेशन, रेडियोएक्टिव सामग्री की स्टोरेज करने वाले प्रतिष्ठान, न्यूक्लियर प्रतिष्ठान और फैसिलिटी की जानकारी शेयर की जाती है.
भारत ने बार-बार इस समझौते का विस्तार करने की मांग की है. और इसमें आर्थिक बुनियादी ढांचे को टार्गेट नहीं करने की शर्त को शामिल करने का प्रस्ताव दिया है. लेकिन पाकिस्तान इस प्रस्ताव को खारिज करता आया है.
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