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यूपी में MSP कृषि लागत से ज्यादा नहीं तो BJP इसका ढोल क्यों पीट रही है?

यूपी में MSP की तारीफ़ का सच.

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किसानों को ज्यादा एमएसपी दिलवाने के पक्ष में थी योगी सरकार.
11 जनवरी 2022 (Updated: 13 जनवरी 2022, 06:25 IST)
Updated: 13 जनवरी 2022 06:25 IST
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उत्तर प्रदेश में आगामी विधानसभा चुनाव में जीत के लिए राजनीतिक दल पूरा जोर लगा रहे हैं. हर बार की तरह किसानों को साधने की कोशिश की जा रही है. सत्ताधारी बीजेपी ने दावा किया है कि साल 2014 में केंद्र में उसकी सरकार बनने के बाद किसानों की स्थिति में व्यापक परिवर्तन आया है और उनको लागत का उचित दाम मिल रहा है.
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी बीती 23 दिसंबर को पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर एक सभा को संबोधित करते हुए कहा
था,
‘वैसे तो न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा साल 1968 में हुई थी, लेकिन इसको लागू करने का काम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया और साल 2018 से कृषि उपज की लागत की तुलना में डेढ़ गुना MSP घोषित की जा रही है.’
तारीफ के पीछे का सच हालांकि पर्दे के पीछे मोदी सरकार के महिमामंडन की तस्वीर ऐसी नहीं है. हकीकत यह है कि योगी आदित्यनाथ और उनकी सरकार को स्पष्ट रूप से ये जानकारी है कि मौजूदा MSP राज्य की कृषि लागत के हिसाब से पर्याप्त नहीं है और इसमें वृद्धि होनी चाहिए. खुद सरकारी अध्ययन द्वारा यह जानकारी जुटाए जाने के बावजूद चुनावी रैलियों में बीजेपी MSP में पर्याप्त वृद्धि होने का ढोल पीट रही है.
द लल्लनटॉप ने सूचना का अधिकार (आरटीआई) कानून के तहत राज्य सरकार के उन गोपनीय दस्तावेजों को प्राप्त किया है, जिनमें राज्य में विभिन्न फसलों के वास्तविक उत्पादन लागत का जिक्र है. राज्य सरकार द्वारा गठित विशेषज्ञों की एक समिति ने यह विस्तृत अध्ययन किया था. इसी को आधार बनाते हुए यूपी सरकार ने भारत सरकार के कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय को एक पत्र लिखा था और MSP में वृद्धि की मांग की थी, लेकिन मोदी सरकार ने इसे सिरे से खारिज कर दिया. रबी फसलों की MSP की घोषणादेशव्यापी किसान आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने आठ सितंबर 2021 को रबी विपणन सीजन (आरएमएस) 2022-23 के लिए रबी फसलों (गेहूं, जौ, चन, मसूर, सरसों) के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी की घोषणा
की थी. हमेशा की तरह, सरकार ने इस बार भी इसे ‘ऐतिहासिक बढ़ोतरी’ करार दिया.
हालांकि दस्तावेज बताते हैं कि देश का बड़ा कृषि राज्य और कुल गेहूं उत्पादन में सर्वाधिक 31.5 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला उत्तर प्रदेश ही इस फैसले से खुश नहीं था. योगी सरकार ने केंद्र द्वारा घोषित इस MSP को लेकर आपत्ति दर्ज कराई थी और किसानों को उचित दाम दिलाने के लिए इसमें बढ़ोतरी की मांग की थी.
उत्तर प्रदेश शासन के विशेष सचिव शत्रुन्जय कुमार सिंह ने कैबिनेट बैठक से पहले 25 अगस्त 2021 को कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव को एक गोपनीय पत्र लिखा था. इसमें उन्होंने कहा था कि यूपी सरकार ने राज्य में कृषि लागत का अध्ययन कराया है, जिसके मुताबिक गेहूं की MSP 2,735 रुपये प्रति क्विंटल होनी चाहिए.
जबकि केंद्र सरकार ने इस बार गेहूं की MSP 2,015 रुपये प्रति क्विंटल तय की है. इसका मतलब ये है कि राज्य सरकार की सिफारिशें स्वीकार नहीं किए जाने से उत्तर प्रदेश के गेहूं किसानों को प्रति क्विंटल पर सीधे 720 रुपये का घाटा होगा.
UP rabi MSP
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित और केंद्र द्वारा घोषित एमएसपी का विवरण. (स्रोत: आरटीआई)

यूपी सरकार के अध्ययन के मुताबिक राज्य में गेहूं की उत्पादन लागत 1,656 रुपये प्रति क्विंटल है. जबकि केंद्र का कहना है कि संपूर्ण भारत की प्रोजेक्टेड उत्पादन लागत (गेहूं) 1,518 रुपये प्रति क्विंटल है.
राज्य सरकार ने जौ की MSP 2,400 रुपये, चने की 5,525 रुपये, मटर की 4,400 रुपये, मसूर की 5,350 रुपये और सरसों की MSP 5,400 रुपये प्रति क्विंटल घोषित करने की मांग की थी.
जबकि केंद्र ने जौ की MSP 1,635 रुपये, चने की 5,230 रुपये, मसूर की 5,500 रुपये और लाही सरसों की MSP 5,050 रुपये प्रति क्विंटल घोषित कर रखी है. इसका मतलब यह है कि अगर उत्तर प्रदेश के किसान केंद्र की MSP पर भी अपनी ऊपज बेचते हैं तो उन्होंने प्रति क्विंटल जौ पर 765 रुपये, चने पर 295 रुपये और सरसों पर 350 रुपये का घाटा होगा. इसमें मसूर को छोड़कर बाकी सभी फसलों के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा प्रस्तावित MSP केंद्र की तुलना में काफी अधिक है.
इसे लेकर यूपी सरकार के विशेष सचिव ने केंद्र से MSP में बढ़ोतरी की गुजारिश करते हुए कहा था,
‘प्रदेश की अधिकांश जनसंख्या कृषि एवं कृषि से संबंधित व्यवसाय पर निर्भर है. इसको ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार के सुझाए मूल्यों के अनुसार रबी फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए जाने चाहिए, जिससे प्रदेश के किसानों को उनकी फसलों के लाभकारी मूल्य प्राप्त हो सकेंगे.’
उन्होंने आगे कहा,
‘राज्य की सिफारिशों के अनुरूप न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने से किसानों को कृषि क्षेत्र से पलायन करने से भी रोका जा सकेगा. इसके साथ ही फसलों के उत्पादन में वृद्धि करते हुए किसानों की आय में भी वृद्धि की जा सकेगी.’
इसके साथ ही राज्य सरकार ने कई अन्य महत्वपूर्ण दलीलों का भी हवाला दिया था कि आखिर क्यों उनकी सिफारिश स्वीकार की जानी चाहिए. शत्रुन्जय ने बताया कि प्रदेश में 92.8 फीसदी किसान लघु एवं सीमांत श्रेणी के हैं, जिनके पास कुल जोत का लगभग 65.8 फीसदी कृषि क्षेत्र उपलब्ध है. राज्य में औसत जोतों का आकार मात्र 0.73 हेक्टेयर है, जिसमें सीमांत कृषकों के लिए यह मात्र 0.38 हेक्टेयर है. इनकी अन्न संग्रहण की क्षमता भी बहुत कम है. उन्होंने कहा,
'जोतों का आकार कम होने के कारण इनकी संसाधन और कृषि निवेशों के उपयोग की क्षमता भी कम है. इसलिए किसान हित में किसानों को उनकी उपज का समुचित मूल्य मिलना आवश्यक है.'
हालांकि केंद्र सरकार ने राज्य की इन गुजारिशों को सिरे से खारिज कर दिया था और अपने अनुसार ही MSP की घोषणा की. दस्तावेजों
से यह भी पता चलता है कि कैबिनेट के सामने यूपी सरकार की सिफारिशों को पेश किया गया था, लेकिन इसे खारिज करने की कोई वजह नहीं बताई गई है.

राज्य की फसलों की उत्पादन लागत का अध्ययन करने के लिए उत्तर प्रदेश के कृषि सांख्यिकी एवं फसल बीमा विभाग के निदेशक ने सर्वे कराया था. बाद में MSP की सिफारिश करने के लिए यूपी के कृषि विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर और कृषि अर्थशास्त्रियों के साथ विस्तृत चर्चा भी की गई थी.
इस मामले को लेकर हमने उत्तर प्रदेश सरकार में कृषि विपणन, कृषि विदेश व्यापार और कृषि निर्यात विभाग के राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्रीराम चौहान से बात की. उन्होंने माना कि राज्य की कृषि लागत के हिसाब से यदि एमएसपी तय की जाती है, तो यह किसानों के लिए उचित होगा.
शुरु में श्रीराम चौहान ने ये जताने की कोशिश की उन्हें यूपी सरकार के इस पत्र के बारे में कोई जानकारी नहीं है. लेकिन जब उन्हें इसका प्रमाण दिया गया तो उन्होंने कहा,
'लागत के आधार पर लाभकारी मूल्य देने के लिए एमएसपी तय की जाती है. इसमें अगर लागत और लाभ दोनों को ध्यान में रखा जाता है, तो ठीक रहता है. अगर केंद्र ने यूपी सरकार की मांग के आधार पर बढ़ोतरी की होती तो यह बेहतर होता, हालांकि एमएसपी में वृद्धि ठीक हुई है.'
यह पूछे जाने पर कि क्या मौजूदा एमएसपी के आधार पर यूपी के किसानों को नुकसान हो सकता है, श्रीराम चौहान ने कहा,
'उत्तर प्रदेश सरकार इस पर जरूर विचार करेगी. राज्यों के पास बहुत विशेषाधिकार होते हैं, उसी में से कोई रास्ता निकाला जाएगा.'
कैसे निकाली जाती है उत्पादन लागत? फसलों के उत्पादन लागत मूल्य, उनकी उपज में शामिल मानव श्रम, पशु श्रम, मशीन श्रम, बीज, सिंचाई, उर्वरक, भूमि का किराया और कृषि निवेश आदि पर किए गए व्यय पर निर्भर करते हैं. प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन की अगुवाई में 'किसानों पर राष्ट्रीय आयोग' ने दिसंबर 2004 से अक्टूबर 2006 के बीच कुल पांच रिपोर्ट्स
केंद्र सरकार को सौंपी थीं. इनमें उत्पादन लागत का आकलन करने के लिए विस्तृत और वैज्ञानिक फार्मूला दिया गया था.
लेकिन केंद्रीय कृषि मंत्रालय अपनी संस्था के जरिये कराए गए विभिन्न उत्पादन लागत आकलन में से कम उत्पादन लागत के आधार पर MSP तय करता है, जो कि केंद्र द्वारा स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशें लागू करने पर बड़ा सवाल खड़ा करता है.
आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक, किसानों को ‘सी2 (C2) लागत’ पर डेढ़ गुना दाम मिलना चाहिए. इसमें खेती की सभी लागतों जैसे कि उर्वरक, पानी, बीज के मूल्य के साथ-साथ परिवार की मजदूरी, भूमि का किराया और ब्याज वगैरह भी शामिल किया जाता है.
लेकिन केंद्र सरकार ‘ए2+एफएल (A2+FL) लागत’ के आधार पर डेढ़ गुना MSP दे रही है, जिसमें भूमि का किराया और ब्याज मूल्य शामिल नहीं होता है. चूंकि ए2+एफएल लागत, सी2 लागत से काफी कम होती है, इसलिए इसके आधार पर तय की गई MSP भी कम होती है.
उत्तर प्रदेश सरकार की रिपोर्ट के मुताबिक अगर सिर्फ गेहूं की उत्पादन लागत को देखा जाए तो इसमें पशु श्रम में 100 फीसदी, बीज राशि में 17.67 फीसदी और भूमि किराया में 24.13 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है.
Up Rabi Season Msp
फसलों की एमएसपी बढ़ाने के लिए यूपी सरकार द्वारा की गई सिफारिश.

केंद्रीय कृषि मंत्रालय की संस्था ‘कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी)’ की सिफारिशों के आधार पर भारत सरकार हर साल खरीफ और रबी सीजन की फसलों की घोषणा करती है. सीएसीपी को फसलों की उत्पादन लागत की गणना करने और देश में कृषि उपजों के उत्पादन, खरीद-बिक्री इत्यादि पर विस्तृत रिपोर्ट पेश करने की जिम्मेदारी मिली हुई है.
सीएसीपी सभी राज्यों की फसल लागत के औसत के आधार पर MSP की सिफारिश करता है. इसके कारण कुछ राज्यों के किसानों को तो ठीक-ठाक दाम मिल जाता है, लेकिन अन्य कई राज्यों के किसानों को उत्पादन लागत के बराबर भी MSP नहीं मिलता है.
वहीं, राज्य सरकारें अपने यहां की विशेष स्थिति के आधार पर फसल लागत का आकलन करती हैं, जो कि ज्यादातर समय केंद्र सरकार के आकलन से काफी अधिक रहता है.

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