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देवास-एंट्रिक्स डील क्या थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 'जहरीला फ्रॉड' कहा और मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़?

जानिए UPA के समय हुई इस डील ने कैसे देश को शर्मसार किया.

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वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. फाइल फोटो (साभार: आज तक)
18 जनवरी 2022 (Updated: 18 जनवरी 2022, 15:49 IST)
Updated: 18 जनवरी 2022 15:49 IST
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वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने करीब डेढ़ दशक पुरानी देवास-एंट्रिक्स डील (Devas-Antrix deal) पर आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बहाने कांग्रेस पर जबर्दस्त हमला बोला है. मंगलवार 18 जनवरी को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर उन्होंने डील में हुए भ्रष्टाचार के लिए कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार को जिम्मेदार बताया और कहा कि यह भारत के साथ हुआ एक बड़ा धोखा था.
एक दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के नेशनल कंपनी लॉ ट्राइब्यूनल (NCLT) के फैसले को सही करार दिया था. कोर्ट ने भी डील में भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी की तस्दीक की है. आइए हम बताते हैं कि क्या थी यह डील जिसने भारत की सुरक्षा चिंताओं को बढ़ाने के साथ विदेश में हमारी काफी किरकिरी कराई थी. क्या है पूरा मामला? 2005 में बेंगलुरु स्थित स्टार्टअप देवास मल्टीमीडिया और इसरो की सब्सिडियरी एंट्रिक्स कॉरपोरेशन के बीच एक डील हुई थी. डील के मुताबिक एंट्रिक्स ने इस कंपनी के लिए एक सैटेलाइट लॉन्च करने और ऑपरेट करने पर सहमति जताई थी. समझौते के तहत सैटेलाइट की 90 फीसदी ट्रांसपॉन्डर कपैसिटी यानी डेटा ट्रांसफर करने की क्षमता देवास मल्टीमीडिया को लीज पर मिलनी थी. कंपनी की योजना थी कि इस कपैसिटी के दम पर वह भारत में टेलिकम्युनिकेशन यानी फोन सेवाएं मुहैया कराएगी. इसमें बड़े पैमाने पर विदेशी निवेशकों ने पैसा लगाया था. बाद में पता चला कि सैटेलाइट का इस्तेमाल मोबाइल से बातचीत के लिए तो होना है, लेकिन इसकी मंजूरी भारत सरकार से नहीं ली गई है.
डील में सीधे तौर पर इसरो जैसा शीर्ष संगठन जुड़ा था, ऐसे में सुरक्षा चिंताएं भी बढ़ीं. खास बात यह रही कि इस कंपनी को इसरो के ही पूर्व साइंटिफिक सेक्रेटरी एमडी चंद्रशेखर ने 2004 में बनाया था. बाद में यह बात सार्वजनिक होने पर काफी कोहराम मचा. देवास में लगे विदेशी पैसे और इसे भुनाने की साजिश भी सामने आई. इस पर राजनीति गर्माने के साथ ही यह एक बड़े घोटाले के रूप में पेश किया गया. यूपीए सरकार ने साल 2011 में यह डील रद्द कर दी. हालांकि सरकार की इस बात के लिए काफी किरकिरी हुई कि उसे डील रद्द करने में छह साल लग गए. लेकिन असली घोटाला उजागर हुआ 2015 में जब सीबीआई जांच शुरू हुई.
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सीबीआई ने अपनी जांच के बाद मामले में इसरो के पूर्व चीफ जी. माधवन नायर को आरोपी बनाया था. (फोटो क्रेडिट : इंडिया टुडे)
डील में घोटाले के तार देवास मल्टीमीडिया ने डील से पहले और बाद में इसे खूब प्रचारित किया था. भारत में सपने दिखाए गए थे कि बेहद कम कीमत पर बेहिसाब मोबाइल और इंटरनेट सेवाएं मिलेंगी. लेकिन बाद में पता चला कि यह सब सब्जबाग और कुछ निवेशकों की साजिश थी. सीबीआई जांच के बाद इसरो के पूर्व अध्यक्ष जी. माधवन नायर और अन्य अधिकारियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई. आरोप लगा कि इन लोगों ने देवास को गलत तरीके से करीब 578 करोड़ रुपये का फायदा पहुंचाया. बाद में मामला इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स से लेकर यूनाइटेड नेशंस और कई विदेशी अदालतों तक गया.
2017 में इंटरनेशनल चैंबर ऑफ कॉमर्स ने विदेशी निवेशकों की अपील पर देवास को 1.3 अरब डॉलर का मुआवजा दिलाने का फैसला किया. इसके बाद यूनाइटेड नेशंस कमीशन ऑन इंटरनेशनल ट्रेड लॉ (UNCITRAL) ने देवास के एक जर्मन निवेशक की अपील पर भारत को जर्मनी के साथ एक इन्वेस्टमेंट ट्रीटी के उल्लंघन का दोषी करार दिया.
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देवास मल्टीमीडिया के निवेशकों की शिकायत पर कनाडा की अदालत ने एयर इंडिया की संपत्तियों को जब्त करने का फैसला सुनाया था. (फोटो साभार: आजतक)
विदेश से बढ़ा दबाव जनवरी 2020 में देवास में करीब 38 फीसदी हिस्सेदारी रखने वाली मॉरिशस की तीन कंपनियों- देवास मॉरिशस लिमिटेड, देवास एम्प्लॉयीज मॉरिशस और टेलिकॉम देवास मॉरिशस ने यूएन ट्रेड लॉ कमीशन (UNCITRAL) के फैसले पर यूएस कोलंबिया जिला अदालत से कन्फर्मेशन मांगी. अक्टूबर 2020 में एक अमेरिकी फेडरल कोर्ट ने एंट्रिक्स को निर्देश दिया कि वह देवास को 1.2 अरब डॉलर का मुआवजा दे. लेकिन अगले ही महीने भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अमेरिकी अदालत के फैसले पर रोक लगा दी. पिछले साल जनवरी में कॉरपोरेट अफेयर्स मिनिस्ट्री के निर्देश पर एंट्रिक्स ने कंपनीज लॉ के तहत NCLT में देवास के खिलाफ गुहार लगाई. NCLT ने देवास मल्टीमीडिया को बंद करने का आदेश दिया. उसके बाद नेशनल कंपनी लॉ अपीलेट ट्राइब्यूनल (NCLAT) ने देवास को बंद करने के फैसले को सही ठहराया. भारतीय संपत्तियां जब्त नवंबर-दिसंबर 2021 में कनाडा की अदालत ने देवास के विदेशी निवेशकों की याचिका पर भारत सरकार को द्विपक्षीय संधियों के उल्लंघन का दोषी करार दिया. दो अलग-अलग फैसलों में एयर इंडिया (AI) और एयरपोर्ट अथॉरिटी ऑफ इंडिया (AAI) की संपत्तियों को जब्त करने का आदेश दिया. लेकिन पिछले दिनों 8 जनवरी 2022 को अपने ही फैसले पर रोक लगाते हुए AAI की संपत्ति फ्रीज करने के आदेश को वापस ले लिया. लेकिन दूसरे फैसले पर एयर इंडिया की 50 फीसदी संपत्ति जब्त कर निवेशकों को देने का फैसला किया. दिलचस्प यह भी है कि एयर इंडिया की संपत्ति ऐसे समय जब्त करने का फैसला आया, जब सरकार पहले ही उसे टाटा के हाथों बेच चुकी है. मोदी सरकार का हमला 17 जनवरी 2022 को सुप्रीम कोर्ट ने देवास मल्टीमीडिया को बंद करने के एनसीएलटी के फैसले को सही ठहराया और यहां तक कहा कि यह एक बेहद 'जहरीला फ्रॉड' था. मंगलवार को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के पैरा 12.8 के हवाले से कहा कि देवास भारत में केवल 579 करोड़ रुपये लेकर आई. लेकिन इसमें से 85 पर्सेंट रकम देश के बाहर भेज दी. उन्होंने कहा कि इस डील के जरिए हुए घोटाले में यूपीए के तत्कालीन मंत्री को गिरफ्तार किया गया था. तब देश के संसाधनों को जबरन बेचा गया, लेकिन कैबिनेट मंत्री को इसकी भनक तक नहीं लगी. साल 2011 में जब पूरी डील रद्द हो गई तो देवास के निवेशक अंतरराष्ट्रीय न्यायकर्त्ता के पास गए और यूपीए सरकार को 21 दिनों के अंदर आर्बिट्रेटर नियुक्त करने के लिए कहा गया था. लेकिन सरकार ने उसे नियुक्त नहीं किया. वित्त मंत्री ने यह भी कहा कि यह डील भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ थी.

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