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भारत में 10 साल में 27 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए, लेकिन मानकों पर वर्ल्ड बैंक ने सवाल उठाए

आंकड़ों के अनुसार अब केवल 5% भारतीय, यानी करीब 7 करोड़ लोग ही अत्यधिक गरीबी में गुजारा कर रहे हैं. 2011 में यह आंकड़ा 27% था, यानी 10 साल में करीब 26.9 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकले हैं.

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सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब केवल 5% भारतीय, यानी करीब 7 करोड़ लोग ही अत्यधिक गरीब है. (सांकेतिक तस्वीर- इंडिया टुडे)
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सौरभ
4 जुलाई 2025 (Published: 11:53 PM IST) कॉमेंट्स
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भारत में हर चार में से एक व्यक्ति आर्थिक रूप से सामान्य जीवन नहीं जी पा रहा है. ये कहना है वर्ल्ड बैंक का. उसके मुताबिक भारत में 35 करोड़ से ज़्यादा लोग, ऐसे जीवन स्तर से नीचे रह रहे हैं जिसे एक सामान्य और सम्मानजनक जीवन जीने के लिए ज़रूरी माना जाता है. हालांकि, ये लोग अब 'अत्यधिक गरीब' की श्रेणी में नहीं आते, फिर भी इन्हें पौष्टिक खाना, सुरक्षित घर, स्वास्थ्य सेवाएं और शिक्षा जैसी ज़रूरी व्यवस्थाएं नहीं मिल पातीं.

इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक वर्ल्ड बैंक के एक प्रवक्ता ने बताया कि भारत में गरीबी में गिरावट आई है, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में गरीबी मापने के तरीकों में भी बदलाव किया गया है. वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत में बहुआयामी गरीबी (multidimensional poverty) में कमी आई है. अगर हम प्रति दिन 3 डॉलर (आज 256.44 रुपये) खर्च करने की अंतरराष्ट्रीय सीमा को आधार मानें तो सरकारी आंकड़ों के अनुसार अब केवल 5% भारतीय, यानी करीब 7 करोड़ लोग ही अत्यधिक गरीबी में गुजारा कर रहे हैं. 2011 में यह आंकड़ा 27% था, यानी 10 साल में करीब 26.9 करोड़ लोग अत्यधिक गरीबी से बाहर निकले हैं.

लेकिन वर्ल्ड बैंक का कहना है कि भारत जैसे देश के लिए अब 3 डॉलर प्रति दिन की सीमा सही नहीं है. भारत की मौजूदा आर्थिक स्थिति को देखते हुए अब गरीबी को मापने के लिए 4.20 डॉलर प्रतिदिन की ‘लोअर मिडिल इनकम’ सीमा को सही माना जाना चाहिए. यह वही सीमा है जिसे श्रीलंका, नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों में पहले ही अपनाया जा चुका है. इस सीमा के अनुसार, भारत में आज भी 35 करोड़ से ज़्यादा लोग बुनियादी ज़रूरतें पूरी नहीं कर पा रहे हैं.

भारत ने 2011-12 से अपनी आधिकारिक राष्ट्रीय गरीबी रेखा को अपडेट नहीं किया है. जबकि Modified Mixed Recall Period (MMRP) जैसे नए तरीके ने घरेलू खपत को बढ़ा हुआ दिखाने में मदद की है. विशेषज्ञों का कहना है कि यह परिवर्तन गरीबी के अनुमानों को भी कम करता है. इस बीच, पुरानी 33 रुपये प्रतिदिन वाला शहरी गरीबी वाला पैमाना धीरे से गायब कर दिया गया है.

अब भारत अधिकतर अंतरराष्ट्रीय मानकों और मल्टीपल पावर्टी इंडेक्स (MPI) का इस्तेमाल कर रहा है. इस सूचकांक में शिक्षा, सफाई, बिजली, आवास जैसी सेवाओं को भी शामिल किया जाता है. MPI के अनुसार, 2013 में जहां 29% लोग बहुआयामी गरीबी में थे, वहीं 2022 तक यह घटकर 11.3% रह गया. खासतौर पर उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में 20 करोड़ से ज़्यादा लोग इस दौरान गरीबी से बाहर निकले हैं.

इसके बावजूद, अमीर और गरीब के बीच की खाई अब भी बहुत बड़ी है. भारत का गिनी इंडेक्स, जो आय में असमानता को मापता है, 2011 में 28.8 था और 2022 में केवल थोड़ा घटकर 25.5 हो गया है. भारत की कुल संपत्ति का 40% हिस्सा अब सिर्फ शीर्ष 1% अमीरों के पास है, जबकि निचले 50% लोगों के पास केवल 6.4% संपत्ति है.

वर्ल्ड बैंक का कहना है कि अब भारत की असली चुनौती सिर्फ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाना नहीं, बल्कि ये तय करना है कि गरीबी रेखा का सही मायने क्या होना चाहिए. नए मानकों के अनुसार, भारत की बड़ी आबादी अब भी 4.20 डॉलर प्रतिदिन के स्तर से नीचे रह रही है, यानी एक सम्मानजनक जीवन जीने के लिए ज़रूरी साधन उनके पास नहीं हैं.

वीडियो: गरीबी का नया पैमाना, कैसे नापी जाती है गरीबी?

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