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ससुराल में बहू के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का ये नया ऑर्डर आया है

इसे महिलाओं के हक में बड़ा फैसला बताया जा रहा है.

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Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट के वकील विराग गुप्ता का कहना है कि सरकार को अब पूरे देश में एक जैसी न्यायिक सेवा के बारे में सोचना चाहिए.
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16 अक्तूबर 2020 (Updated: 16 अक्तूबर 2020, 13:40 IST)
Updated: 16 अक्तूबर 2020 13:40 IST
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आए दिन घरेलू हिंसा के मामले देखने-सुनने को मिलते हैं. ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने महिलाओं के हक में बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा की शिकार महिला के लिए घर का मतलब ऐसे घर से भी है, जो पति के नाम पर भले न हो, लेकिन दोनों वहां साथ रहे हों. मतलब बहू को सास-ससुर या साझा घर में रहने का भी पूरा अधिकार है. हम इस केस के बारे में तो बताएंगे ही, साथ ही ये भी बताएंगे कि कानून की नजर में घरेलू हिंसा कहते किसे हैं और इससे जुड़े कानून क्या हैं. पहले ये जानते हैं कि वो मामला क्या था, जिसमें सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला सुनाया.

पूरा मामला जान लीजिए?

पति और पत्नी दोनों दिल्ली के हैं. शादी के बाद से ही वे सास-ससुर के साथ रहते थे. कुछ साल बाद पति और पत्नी में झगड़ा होने लगा. मामला तलाक तक पहुंचा. बहू ने घरेलू हिंसा कानून के तहत पति के साथ-साथ सास-ससुर के खिलाफ भी केस दर्ज करा दिया. ससुर ने बहू से घर खाली करने को कहा. महिला ने इंकार कर दिया. इसके बाद ससुर ने बहू के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में याचिका दायर की. ट्रायल कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए महिला (बहू) को आदेश दिया था कि वह 15 दिन में घर खाली कर दे. इस आदेश के खिलाफ महिला ने दिल्ली हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाई कोर्ट ने मामले को पुन: विचार के लिए ट्रायल कोर्ट में भेज दिया. इसके खिलाफ ससुर ने सुप्रीम कोर्ट में अपील कर दी. अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया है.
प्रोटेक्शन ऑफ़ वीमेन फ्रॉम डोमेस्टिक वायलेंस एक्ट 2005 में पास हुआ था. पास होने के 10 साल के अंदर इसके अंतर्गत 1 लाख से भी अधिक केस दर्ज हो चुके थे. डाटा नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो का है. और ये वो केस थे जो दर्ज हुए. जो नहीं हुए, उनका कोई रिकॉर्ड नहीं है. महिलाओं पर हिंसा के काफी केस देश में सामने आते हैं. (सांकेतिक तस्वीर)

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस एमआर शाह की बेंच ने फैसले में कहा कि घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा-2(S) में पति के 'साझा घर यानी शेयर्ड हाउसहोल्ड' की परिभाषा दी गई है. इसी धारा के तहत कोर्ट ने महिला को राहत प्रदान की. इसके अनुसार, हिंसा के बाद घर से निकाली गई महिला को साझा घर यानी ससुरालवालों के घर में रहने का अधिकार है.
फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
घरेलू हिंसा कानून की धारा-2(S) के मुताबिक, 'साझा घर' का मतलब केवल उस घर से नहीं है, जो संयुक्त परिवार का हो और जिसमें पीड़ित महिला के पति का भी हिस्सा है. इसमें वह जगह भी शामिल है, जहां महिला घरेलू संबंधों की वजह से अकेले या पति के साथ कभी रही हो. ऐसा घर भी इसके दायरे में आता है, जिसे पति ने किराए पर लिया हो.
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला 2007 के एसआर बत्रा बनाम तरुणा बत्रा मामले के उलट था, जिसमें कहा गया था कि साझा घर में इनलॉज़ यानी सुसरालवालों और रिश्तेदारों का घर शामिल नहीं होगा.
घरेलू हिंसा पर कोर्ट ने कहा,
देश में घरेलू हिंसा के मामले लगातार बढ़ रहे हैं. किसी-न-किसी रूप में महिलाओं को हर दिन हिंसा का सामना करना पड़ रहा है. कई बार ऐसे मामले कम ही दर्ज हो पाते है. किसी भी समाज की प्रगति महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करने और उसे बढ़ावा देने की क्षमता पर निर्भर करती है. इसके लिए महिलाओं को समान अधिकार मिलना जरूरी है.

घरेलू हिंसा होती क्या है?

घरेलू हिंसा का सीधा-सीधा मतलब है घरों में होने वाला अत्याचार. यानी किसी महिला के लिए उसी के घर में स्वास्थ्य, सुरक्षा, जीवन का संकट पैदा करना, आर्थिक नुकसान पहुंचाना और यौन शोषण करना. घर की महिला को खाना न देना, तिरस्कार करना, गाली देना, किसी से मिलने न देना, मायके वालों को ताना मारना, दहेज की मांग करना, शक करना, मारना-पीटना, घरेलू खर्च न देना जैसी तमाम चीजें घरेलू हिंसा के अंतर्गत आती हैं.
अगर किसी के साथ घरेलु हिंसा होती है तो उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसकी पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं यहां पढ़ सकते हैं
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घरेलू हिंसा का सीधा-सीधा मतलब है घरों में होने वाला अत्याचार. (सांकेतिक फोटो) घरेलू हिंसा का सीधा-सीधा मतलब है घरों में होने वाला अत्याचार. (सांकेतिक फोटो)

घरेलू हिंसा को रोकने के लिए साल 2005 में घरेलू हिंसा कानून बनाया गया. यह घर में मौजूद महिलाओं जैसे पत्नी, बहन, मां, बेटी की उनके ही घर के पुरुषों से रक्षा करता है. इसके जरिए हिंसा मुक्त घर में रहने के महिला के अधिकार को संरक्षित करने की कोशिश की गई है.
इसके अलावा, भारतीय दंड संहिता (IPC), 1860 की धारा-498A विशेष रूप से विवाहित महिलाओं को उनके पति और पति के परिवार वालों की तरफ से की जाने वाली क्रूरता से रक्षा प्रदान करती है.
अगर किसी के साथ घरेलू हिंसा होती है तो उन्हें किन बातों का ध्यान रखना चाहिए, इसकी पूरी रिपोर्ट यहां पढ़ सकते हैं यहां पढ़ सकते हैं
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                          (ये कॉपी हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे बृज द्विवेदी ने लिखी है.)

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