लड़कियों से छेड़छाड़ का विरोध करने वाले दो लड़के मार दिए गए थे. 2011 में. मुंबई में. 2016 में कोर्ट ने फैसला दिया. चार लोगों को दोषी पाया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई.
अब उस केस के मेन गवाह अविनाश सोलंकी की हत्या हो गई है. उनकी बॉडी उनके बिज़नेस पार्टनर निलेश शुक्ला के ऑफिस में पाई गई. सोमवार को सुबह 2.40 मिनट पर पुलिस ने बॉडी बरामद की. डीसीपी नवीनचंद्र रेड्डी ने बताया कि एसी चल रहा था इसलिए शरीर को ज़्यादा क्षति नहीं पहुंची. पुलिस शुक्ला की तलाश कर रही है जो शुक्रवार से गायब है.
पुलिस का कहना है कि सोलंकी पर दो लोगों ने चाक़ू के कई वार किए हैं. सर पर, पेट में और प्राइवेट पार्ट्स पर. उनके शरीर को पहले कूपर हॉस्पिटल में पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया और फिर परिवार को सुपुर्द कर दिया गया. उन्हें आखिरी बार उनके भाई दिलीप सोलंकी ने शुक्रवार को देखा था.

अविनाश सोलंकी कीनन-रुबेन मर्डर केस में मुख्य गवाह थे. ये वही केस है जिसने 2011 में पूरे देश को हिलाकर रख दिया था. दो नौजवान लड़कों को चाकूओं से सरेआम गोदकर मार डाला गया था.
मरने वाले लड़कों के नाम थे कीनन सांटोस और रूबेन फर्नांडीज. इसलिए इस केस को कीनन-रूबेन हत्याकांड कहा गया. 20 अक्टूबर 2011 को दोनों ने अपनी दोस्तों से छेड़छाड़ करने वालों का विरोध किया था. बदले में नारियल पानी वाले चाकू से मारकर उन्हें कत्ल कर दिया गया. पुलिस ने हत्या के आरोप में 4 और दंगे के आरोप में 17 लोगों को गिरफ्तार किया था. महाराष्ट्र सरकार ने यह केस फास्ट ट्रैक कोर्ट के हवाले कर दिया था.
हुआ क्या था?
मुंबई. 20 अक्टूबर. रात के 10:30 बज चुके थे. अंबोली बार एंड किचेन में डिनर के बाद दोस्तों का एक ग्रुप वापस लौट रहा था. इस ग्रुप में सात लोग थे. चार लड़के, तीन लड़कियां. नाम- कीनन सांटोस, रूबेन फर्नांडीज, अविनाश सोलंकी, बेंजामिन फर्नांडीज, प्रियंका फर्नांडीज और दो और लड़कियां.
डिनर के बाद वह पास की एक पान शॉप पर पहुंचे. यहां वे खड़े हुए बातचीत कर ही रहे थे, तभी चार लफंगों ने उनके साथ की लड़कियों पर कुछ कमेंट किए. 24 साल के कीनन सांटोस ने इसका विरोध किया. गर्मागर्मी हुई तो लफंगे वहां से चले गए. सबको लगा कि छोटी सी बात थी, यहीं खत्म हो गई.
लेकिन वे लफंगे करीब 20 लोगों को साथ लेकर लौटे. उनके हाथों में डंडे और चाकू थे. उन्होंने सबसे पहले कीनन पर हमला बोला. उस पर कई वार करके मार डाला. 29 साल का रूबेन आगे आया तो उस पर भी हमला हुआ. रूबेन को गहरी चोटें आईं और 10 दिन अस्पताल में जूझने के बाद उसने भी दम तोड़ दिया.
हमला इतना अचानक हुआ तो कि कीनन-रूबेन और उनके दोस्तों को रिएक्ट करने का वक्त ही नहीं मिला. रूबेन के भाई बेंजामिन ने ‘द हिंदू’ को बताया था, ‘उन्होंने पहले कीनन पर हमला किया. तब रूबेन आगे आया. मुझे उन्होंने बांस के एक डंडे से सिर पर मारा. मैं गिर गया. मैंने कीनन को गिरते देखा. एक हमलावर ने कीनन को अपने घुटनों से दबा दिया और उसकी आंखों में देखते हुए उसकी छाती पर ताबड़तोड़ वार किए. उन्हीं वारों ने कीनन की जान ले ली.’

सफाई कर्मचारी का काम करते थे दोषी
इस केस में 4 मुख्य आरोपी थे. जितेंद्र राणा, सतीश दुगरास, सुनील बोथ और दीपक पिसवल. स्पेशल जज वृशाली जैन ने चारों को हत्या का दोषी माना और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई. सुनील, सतीश और दीपक लोखंडवाला कॉम्प्लेक्स में सफाई कर्मचारी थे. उन्होंने अपने बयान में कहा कि वो उसी कॉलोनी में एक बर्थडे पार्टी में थे, तभी जितेंद्र वहां पहुंचा और कहा कि चार लोगों ने उसे मारा है. इसके बाद वे चारों वहां के लिए निकल लिए. वहीं एक नारियल वाले के दो बड़े चाकू सतीश ने लिए और उसमें से एक जितेंद्र को दिया. सुनील और दीपक ने स्टंप और हॉकी स्टिक साथ ले ली.
जितेंद्र और सतीश सीधे कीनन के पास पहुंचे और उस पर चाकू से कई वार किए. इस घटना के वक्त पास के रेस्तरां में 20-25 लोग मौजूद थे. मगर एक वेटर को छोड़ कोई भी कीनन और रूबेन की मदद के लिए नहीं आया. उनके दोस्तों का कहना है कि पुलिस भी मौके पर देर से पहुंची थी.
2016 में फैसले के बाद कीनन के पिता वेलेरियन सांटोस ने कहा था, ‘काफी दर्द सहने के बाद वो फैसला आ गया, जो हम चाहते थे. मैं फैसले से खुश हूं. उन्हें अपनी जिंदगी का हर पल कीनन और रूबेन के बारे में सोचते हुए बिताना चाहिए. लेकिन सफर यहां खत्म नहीं हुआ है. आगे की लड़ाई बाकी है. आरोपी ऊंची कोर्ट में जाएंगे, यह उनका हक है.’
कीनन के पिता ने कहा, ‘अगर वे ईश्वर की शरण में भी जाएंगे तो मैं वहां भी खड़ा होऊंगा और अपने बेटे के लिए इंसाफ मांगूंगा.’
कीनन-रूबेन केस एक समय देश के बहुचर्चित मामलों में रहा. ये दोनों लड़के उस साहस के प्रतिनिधि बन गए जिसकी चर्चा हम महिलाओं के खिलाफ हुए हर अपराध के बाद करते हैं. वे हमारे आदर्श समझे गए. लेकिन जैसा उनके साथ हुआ, उनकी कहानी हमारे सिस्टम के बारे में क्या बताती है? जब किसी लड़की पर हमला होता है तो हम किस पक्ष में खड़े होते हैं? और जो हिम्मत जुटाकर पक्ष लेते हैं, सिस्टम उनके साथ क्या करता है?
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