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POCSO पर सुप्रीम कोर्ट का अहम फैसला, 'टच' के बिना भी यौन उत्पीड़न माना जाएगा

POCSO एक्ट का मकसद बताते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को बदला.

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सुप्रीम कोर्ट. (तस्वीर- पीटीआई)
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18 नवंबर 2021 (Updated: 18 नवंबर 2021, 13:22 IST)
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सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया है जिसमें कहा गया था कि POCSO (Protection of Children from Sexual Offences) के तहत यौन उत्पीड़न अपराध के लिए 'स्किन टू स्किन' टच जरूरी है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यूयू ललित, जस्टिस एस रवींद्र भट और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की बेंच ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अटॉर्नी जनरल ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय महिला आयोग और महाराष्ट्र राज्य द्वारा दायर याचिका पर फैसला सुनाया. बेंच ने अपने फैसले में कहा-
पॉक्सो की धारा 7 के तहत टच और फिजिकल कॉन्टैक्ट को स्किन टू स्किन तक सीमित करना बेतुका है. इससे इस कानून का उद्देश्य ही खत्म हो जाएगा, जिसे हमने बच्चों को यौन उत्पीड़न से बचाने के लिए लागू किया था. POCSO की धारा 7 के तहत टच और फिजिकल कॉन्टैक्ट को "स्किन टू स्किन टच" तक सीमित करना न केवल संकीर्ण होगा, बल्कि प्रावधान की बेतुकी व्याख्या भी होगी.
कोर्ट ने कहा कि अगर इस तरह व्याख्या की जाएगी तो कोई व्यक्ति जो ऐसा करते समय दस्ताने या किसी अन्य सामग्री का उपयोग करता है, उसे अपराध के लिए दोषी नहीं ठहराया जाएगा. ये एक बेतुकी स्थिति होगी. लाइव लॉ की खबर के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि कानून का उद्देश्य अपराधी को कानून के जाल से बचने की अनुमति देना नहीं हो सकता है. अधिनियम टच या फिजिकल कॉन्टैक्ट को परिभाषित नहीं करता. इसलिए अर्थ को शब्दकोश के हिसाब से माना गया है. कोई भी टच यदि सेक्शुअल इंटेशन के साथ किया जाता है तो ये अपराध होगा. सबसे बड़ी बात सेक्शुअल इंटेशन (यौन अपराध करने की मंशा) है ना कि स्किन टू स्किन कॉन्टैक्ट. जब कानून ने स्पष्ट इरादा व्यक्त किया है, तो अदालतें प्रावधान में अस्पष्टता पैदा नहीं कर सकती हैं. जस्टिस एस रवींद्र भट ने कहा कि हाई कोर्ट के विचार ने एक बच्चे के प्रति अस्वीकार्य व्यवहार को वैध बनाया. हाई कोर्ट का तर्क असंवेदनशील है. ये बच्चों की गरिमा को कम करता है. जस्टिस भट ने कहा कि हाई कोर्ट ने इस तरह के निष्कर्ष पर आने में गलती की है. हाई कोर्ट का क्या फैसला था? सुप्रीम कोर्ट न बॉम्बे हाई कोर्ट की (नागपुर बेंच) के जिस फैसला को पलटा है, उसमें एक आरोपी को ये कहते हुए बरी कर दिया गया था कि एक नाबालिग लड़की के स्तनों को उसके कपड़ों के ऊपर से टटोलना POCSO के तहत अपराध नहीं है. फैसला सुनाया था हाई कोर्ट की जस्टिस पुष्पा वी गनेड़ीवाला ने. उन्होंने नाबालिग के यौन उत्पीड़न के आरोपी को POCSO अधिनियम की धारा 8 के तहत बरी कर दिया था. हालांकि, न्यायालय ने सेक्शन 354 के तहत सजा को बनाए रखा. भारतीय दंड संहिता की ये धारा स्त्री की लज्जा भंग करने के मकसद से उस पर हमला या आपराधिक बल का प्रयोग के आरोप में लगाई जाती है.

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