केरल के पत्रकार सिद्दीक़ कप्पन. यूपी के हाथरस कांड में पीड़िता के घरवालों से मिलने जा रहे थे. 5 अक्टूबर को यूपी पुलिस ने उन्हें और अन्य तीन लोगों को हिरासत में ले लिया. UAPA का चार्ज. आज यानी 16 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में ज़मानत याचिका पर सुनवाई होनी थी. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की तारीख़ टाल दी. और यूपी सरकार को नोटिस जारी कर दिया.
सिद्दीक़ कप्पन को ज़मानत देने के लिए केरल यूनियन फ़ॉर वर्किंग जर्नलिस्ट्स ने याचिका दायर की थी. यूनियन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल कोर्ट में पेश हुए. इसके पहले 12 नवंबर को इसी याचिका पर सुनवाई करते हुए CJI एसए बोबड़े, एएस बोपन्ना और वी रामासुब्रमण्यम की बेंच ने यूनियन से आदेश दिया था कि पहले वो इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दायर करें. 16 नवंबर को सुनवाई के समय कोर्ट ने पूछा कि आदेश के मुताबिक़, आप इलाहाबाद हाईकोर्ट क्यों नहीं गए?
इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि कप्पन को वकीलों से मिलने नहीं दिया जा रहा है. हमें मामले को समझने के लिए उनसे मुलाक़ात करनी होगी.
इस पर एसए बोबड़े ने कहा कि कोर्ट संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत आने वाली याचिकाओं को हतोत्साहित करना चाहती है. इस पर कपिल सिब्बल ने कहा कि कोर्ट ने पहले भी अनुच्छेद 32 के तहत मामलों की सुनवाई की है. कोर्ट ने कहा कि उसे आर्टिकल 32 के तहत अपने अधिकार पता हैं.
इस पर कपिल सिब्बल ने कहा,
“ये एक अपवाद से भरा मामला है. ये मामला एक पत्रकार से जुड़ा हुआ है, जो जेल में है.”
12 नवंबर की सुनवाई में कोर्ट ने आदेश दिया था कि याचिका में कुछ बदलाव किए जाएं. 16 नवंबर की सुनवाई में कोर्ट ने पूछा कि क्या याचिका में बदलाव किए गए हैं? कपिल सिब्बल ने जवाब दिया, ‘हम कप्पन से मिल भी नहीं सके हैं. हम कैसे परिवर्तन कर सकते हैं?”
अपनी जिरह में कपिल सिब्बल ने कहा,
“FIR में कप्पन का नाम तक नहीं है. उनके द्वारा किए गए अपराध का कहीं कोई ज़िक्र नहीं है. वो 5 अक्टूबर से जेल में हैं. मजिस्ट्रेट कहते हैं कि मिलना है तो जेल जाइए. और जेल प्रशासन कहता है कि मजिस्ट्रेट से मिलिए.”
जिरह के बाद बेंच ने यूपी सरकार को नोटिस जारी किया और केस की सुनवाई को 20 नवंबर तक के लिए मुल्तवी कर दिया.
आर्टिकल 32 का मामला
आर्टिकल 32 क्या है? ये सुप्रीम कोर्ट का अधिकार है, जिसके तहत कोर्ट मूलभूत अधिकारों के हनन के मामले में दख़ल दे सकता है. अपने बयान में बेंच ने कहा है कि आर्टिकल 32 की बहुत सारी याचिकाएं इस समय कोर्ट के सामने लम्बित पड़ी हैं. इसलिए वे इस तरह की याचिकाओं को डिस्करेज करना चाहते हैं.
पाठक इसका ये मतलब निकाल सकते हैं कि अगर कम याचिकाएं आयेंगी, तो पुरानी याचिकाओं का निबटारा किया जा सकेगा.
हाथरस केस में पीड़ित परिवार से पुलिस की कही बातें, कई सवाल खड़े करती हैं