दक्षिण अफ्रीका का केपटाउन शहर. प्राकृतिक नजारों से भरा हुआ. क्रिकेट प्रेमियों की ज़ुबान पर रहने वाला शहर. ये शहर पिछले कुछ सालों एक अलग वजह से ख़बरों में है. ख़बर ये कि शहर में पानी की भारी किल्लत हो गई है. शहर में पानी की समस्या इतनी भयानक है कि 2018 में जब भारतीय क्रिकेट टीम केपटाउन में खेलने गई थी तो टीम के हर सदस्य को एक हिदायत दी गई. वो ये कि 2 मिनट से ज़्यादा नहीं नहाना है. ऐसा शायद पहली बार हुआ, जब किसी क्रिकेट टीम को नहाने को लेकर कोई एडवाइजरी दी गई हो.
शहर में पानी की समस्या को देखते हुए वैज्ञानिकों ने एक बेहद अजीब सुझाव दिया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर हम शहर पर पड़ रहे सूरज की रोशनी को कम कर पाएं तो शहर में पानी की समस्या को कुछ समय के लिए टाला जा सकता है. सुनने में बेशक ये अजीब लग रहा हो लेकिन वज्ञानिकों के मुताबिक ऐसा मुमकिन है.
सूरज की तपिश कम करने के लिए क्या किया जाएगा?
वैज्ञानिकों का कहना है कि केपटाउन को पूरी तरह सूखने से बचाने के लिए, सल्फर डाइऑक्साइड गैस को बड़ी मात्रा में शहर के आसमान के ऊपर छोड़ा जाएगा. इस गैस से शहर के ऊपर ढ़ेर सारे बादल बन जाएंगे. इन बादलों के कारण सूरज की रोशनी नीचे कम आएगी. और अगर प्रयोग सफल रहा तो इससे प्राकृतिक जलाशयों में पानी को सूखने से बचाया जा सकता है. यानि डे-जीरो को कुछ सालों तक और टाला जा सकता है.
क्या है “डे-जीरो”?
केपटाउन के जल संकट की जब चर्चा होती है तो डे जीरो शब्द बार-बार आता है. आइये जानते हैं क्या है ये डे-जीरो. डे-जीरो का अर्थ है वो दिन जब पानी की सप्लाई शहर में बंद हो जाएगी. यानी जब शहर का निगम हाथ खड़े कर के ये कह दे कि अब हमारे पास सप्लाई करने के लिए पानी नहीं है. केपटाउन कई सालों से इस डर से जूझ रहा है.
डे-जीरो के दिन क्या हो सकता है?
अनुमान है कि डे-जीरो के दिन शहर के जलाशयों में उसकी क्षमता का केवल 13.5% जल बचा होगा. अस्पतालों और अतिआवश्यक सेवाओं के लिए ही सिर्फ़ पानी सप्लाई की सुविधा होगी. लोगों के घरों में होने वाले सप्लाई को पूरी तरह बंद कर दिया जाएगा. लोग केवल 200 सार्वजनिक जगहों से पानी ले सकते हैं. वो भी एक दिन के लिए सिर्फ़ 25 लीटर प्रति व्यक्ति पानी मिलेगा.
शोधकर्ताओं का मानना है कि सूरज की रौशनी को कम करने वाली तकनीक का इस्तेमाल करके इस डे-जीरो वाले संकट को साल 2100 तक लगभग 90% तक टाला जा सकता है. हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि ऐसा करना पर्यावरण के लिए ख़तरनाक साबित हो सकता है.
मुंबई के जुहू बीच पर आधी रात को क्यों ब्लू लाइट मारने लगा समुद्र का पानी?