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बजट में FD को लेकर बैंकों की ये बात मानी गई तो आप और सरकार दोनों की मौज आ जाएगी!

जानेंगे बैंक FD में क्यों घट रही है लोगों की दिलचस्पी.

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बैंक में भुगतान की सांकेतिक तस्वीर- साभार :आजतक
19 जनवरी 2022 (Updated: 19 जनवरी 2022, 13:25 IST)
Updated: 19 जनवरी 2022 13:25 IST
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कभी आम आदमी का पसंदीदा निवेश जरिया रहे बैंक एफडी यानी फिक्स्ड डिपॉजिट के दिन अच्छे नहीं चल रहे. एक तो बीते कुछ वर्षों से लगातार एफडी पर ब्याज दरें गिरती आई हैं. उस पर से जो लोग टैक्स बचाने के मकसद से लंबी अवधि की एफडी किया करते थे, वे अब पोस्ट ऑफिस स्कीमों और म्युचुअल फंडों की तरफ भाग रहे हैं. ऐसे में बैंकों की टेंशन बढ़ गई है. उन्हें फंड की किल्लत का खतरा सता रहा है. ऐसे में बैंकों ने सरकार से एफडी को इन्वेस्टर फ्रेंडली बनाने की गुहार लगाई है.
इंडियन बैंक्स एसोसिएशन (IBA) ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भेजे प्री-बजट सिफारिशों में मांग की है कि इनकम टैक्स एक्ट के सेक्शन 80C के तहत टैक्स छूट के लिए एफडी की लॉकइन अवधि 5 साल से घटाकर 3 साल की जाए. उन्होंने दलील दी है कि ज्यादातर इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीमों (equity-linked savings scheme-ELSS) में टैक्स छूट के लिए लॉकइन पीरियड 3 साल है. लॉकइन पीरियड का मतलब है कि इस अवधि से पहले पैसा नहीं निकाला जा सकता. एसोसिएशन ने कहा है कि अगर सरकार ने तीन साल के एफडी पर टैक्स छूट देनी शुरू की तो इसमें निवेशकों का रुझान बढ़ेगा और बैंकों को अतिरिक्त फंड हासिल हो जाएगा.
Taxpayers
सांकेतिक तस्वीर ( साभार: आजतक)
कैसे मिलती है 80C की छूट? सेक्शन-80C नौकरीपेशा या आम आदमी के लिए इनकम टैक्स में छूट का सबसे बड़ा जरिया माना जाता है. इसके तहत ढाई लाख रुपये तक की बेसिक एग्जेम्शन लिमिट के बाद भी कर योग्य आय (Taxable income) में 1.5 लाख तक कटौती पाई जा सकती है. इसके लिए जरूरी है कि कुछ खास स्कीमों में डेढ़ लाख रुपये तक निवेश किया गया हो या कुछ तय खर्चों में शामिल हो. मसलन, पब्लिक प्रॉविडेंट फंड (PPF), एम्प्लॉयी प्रोविडेंट फंड (EPF), नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट (NSC), इंश्योरेंस प्रीमियम, म्युचुअल फंडों के यूनिट लिंक्ड इंश्योरेंस प्लान (ULIP ) या इक्विटी लिंक्ड सेविंग स्कीमें (ELSS) इसके दायरे में आती हैं.
इसके अलावा बैंकों में टर्म डिपॉजिट या फिक्स्ड डिपॉजिट पर भी डेढ़ लाख रुपये तक का डिडक्शन लिया जा सकता है. बशर्ते कि यह डिपॉजिट कम से कम पांच साल के लिए हो. लेकिन म्युचुअल फंडों के लिए न्यूनतम समयसीमा 3 साल ही है. ऐसे में टैक्स सेविंग के मकसद से ज्यादातर लोग अब एफडी से कटने लगे हैं. 5 साल के FD पर कम ब्याज बैंकों में वैसे भी 5 साल के मुकाबले कम अवधि यानी एक दो साल के डिपॉजिट पर ज्यादा ब्याज मिलता है. पिछले तीन-चार सालों में ब्याज दरें घटने से फिलहाल एफडी निवेश के लिए आकर्षक नहीं रह गया है. देश के सबसे बड़े बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) में 5 साल की एफडी पर ब्याज दर 5.30 फीसदी है. सीनियर सिटिजन के लिए यह 5.8 फीसदी है. एचडीएफसी बैंक में भी दरें इतनी ही हैं. इंडसइंड बैंक में 6.5 फीसदी और यस बैंक में 6.7 फीसदी हैं. चूंकि महंगाई दर भी इस दौरान 5 फीसदी के आसपास ही रही है. ऐसे में जमा पर मिलने वाला ब्याज एक तरह से निल या नाम मात्र ही रह जाता है. ऐसे में रिटर्न के मामले में यह निवेशकों के लिए आकर्षण नहीं रह गया है. क्या कहते हैं एक्सपर्ट ? टैक्स एक्सपर्ट भी सरकार से टैक्स एग्जेम्शन लॉकइन को घटाने की मांग करते रहे हैं. सीए सुधीर हालाखंडी ने दी लल्लनटॉप को बताया-
"फिलहाल एफडी टैक्स सेविंग के लिहाज से बहुत लोकप्रिय नहीं रह गया है. इसमें 5 साल का लॉकइन बड़ा बाधक है. अगर सरकार इसे तीन साल का करती है, तो निश्चित तौर पर यह दूसरी स्कीमों के मुकाबले आकर्षक हो जाएगा. चूंकि आम आदमी बचत का ज्यादातर पैसा बैंकों में ही रखता है, ऐसे में निवेश के लिए किसी बाहरी स्कीम के बजाय बैंक में ही पैसा लगाना उसके लिए सुविधाजनक रहता है. एफडी को आकर्षित बनाना सरकार के लिए भी राहत भरा होगा. बड़े पैमाने पर पब्लिक मनी बैंकों में जमा होगी तो सरकार को रीकैपिटलाइजेशन (बैंकों में फंड की किल्लत दूर करने के लिए पैसा डालना) के बोझ से राहत मिलेगी."
ब्याज पर टैक्स भी हटेएफडी से लोगों के छिटकने के पीछे एक वजह ब्याज पर लगने वाला टीडीएस भी है. सीए विपिन जैन ने हमसे बातचीत में कहा-
"एफडी पर लॉकइन घटाने के लिए जिस तरह सरकार पर जोर पड़ रहा है, ऐसा लगता है कि आगामी बजट में ऐसा कुछ होगा. लेकिन एफडी को निवेशकों के अनुकूल बनाने के लिए जरूरी है कि सरकार इस पर मिलने वाले ब्याज पर भी इनकम टैक्स में छूट दे. अगर एक या कई फिक्स्ड डिपॉजिट मिलाकर आपको 40,000 से ज्यादा रिटर्न मिला है, तो 10 फीसदी तक टीडीएस काटने का प्रावधान है. यह सीमा बुजुर्गों के लिए 50,000 से ज्यादा रिटर्न पर लागू होती है."
विपिन जैन के मुताबिक यही कारण है कि लोग एफडी के बजाय पीपीएफ, एनएससी या दूसरी स्कीमों की ओर भागते हैं, जहां रिटर्न भी टैक्स फ्री होता है.

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