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बिहार, यूपी और झारखंड देश के सबसे गरीब राज्य, नीति आयोग ने जारी किए आंकड़े

और क्या कहते हैं ये आंकड़े?

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Niti Aayog की तरफ से जारी किए गए आंकड़ों के मुताबिक बिहार में कुपोषित लोगों की संख्या भी सबसे अधिक है. (सांकेतिक चित्र)
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27 नवंबर 2021 (Updated: 27 नवंबर 2021, 09:04 IST)
Updated: 27 नवंबर 2021 09:04 IST
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नीति आयोग (Niti Aayog) के पहले बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI) में बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश देश के सबसे गरीब राज्यों के तौर पर सामने आए हैं. वहीं केरल, गोवा और सिक्किम में सबसे कम गरीबी है. न्यूज एजेंसी PTI की रिपोर्ट के मुताबिक, नीति आयोग की तरफ से जारी किए गए इस इंडेक्स में सामने आया है कि बिहार की लगभग 52 फीसदी जनसंख्या गरीब है. झारखंड की 42 फीसदी और उत्तर प्रदेश की लगभग 38 फीसदी आबादी गरीबी का शिकार है. इन राज्यों के बाद मध्य प्रदेश और मेघालय का नंबर आता है. इंडेक्स के मुताबिक, मध्य प्रदेश में लगभग 37 फीसदी और मेघालयल में करीब 33 फीसदी लोग गरीब हैं. दूसरी तरफ, केरल में केवल 0.71 फीसदी लोग ही गरीब हैं. वहीं गोवा में करीब 4 फीसदी और तमिलनाडु में लगभग 5 फीसदी लोग गरीब हैं. बिहार में सबसे अधिक कुपोषित! इस इंडेक्स के मुताबिक, बिहार जहां एक तरफ सबसे गरीब राज्य हैं, वहीं यहां कुपोषित लोगों की संख्या भी सबसे ज्यादा है. कुपोषित लोगों के मामले में बिहार के बाद झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ का नंबर आता है. मूलभूत सुविधाएं ना मिलने के मामले में भी बिहार पहले स्थान पर है. वहीं उत्तर प्रदेश में शिशु एवं वयस्क मृत्यु दर सबसे अधिक है. साफ-सफाई ना होने के मामले में झारखंड सबसे ऊपर है. रिपोर्ट के मुताबिक, इस इंडेक्स को तैयार करने में ऑक्सफोर्ड पोवर्टी एंड ह्यूमन डेवलपमेंट इनिसिएटिव का इस्तेमाल किया गया है. यह इनिसिएटिव यूनाइटेड नेशंस डेवलपमेंट प्रोग्राम के तहत काम करता है. अलग-अलग परिवार जिन आभावों से गुजर रहे हैं, ये इनिसिएटिव इसकी भी रिपोर्ट तैयार करता है. नीति आयोग के इस सूचकांक में पूरे भारत की गरीबी रिपोर्ट भी तैयार की गई है. इस रिपोर्ट में प्रमुख तौर पर तीन पहलुओं स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर पर ध्यान दिया गया है. नीति आयोग का मानना है इस इंडेक्स से गरीबी दूर करने में सरकारी नीतियां बनाने में मदद मिलेगी. जिससे देश मिलेनियम डेवलपमेंट गोल हासिल करने की दिशा में तेजी से आगे बढ़ेगा. नीति आयोग के इस सूचकांक में राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण को संदर्भ के तौर पर इस्तेमाल किया गया है. नीति आयोग का कहना है कि यह सूचकांक देश में व्याप्त गरीबी को बिल्कुल सही ढंग से मापता है. कोई भी पीछे ना छूटे! साल 2015 में 193 देशों की तरफ से अपनाए गए  मिलेनियम डेवलपमेंट गोल ने दुनिया भर में विकास की प्रगति को मापने के लिए विकास नीतियों और सरकारी प्राथमिकताओं को फिर से परिभाषित किया है. नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने सूचकांक के बारे में बताया,
भारत के राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक का विकास एक सार्वजनिक नीति उपकरण स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण योगदान है. यह बहुआयामी गरीबी की निगरानी करता है, साक्ष्य-आधारित और केंद्रित हस्तक्षेप के बारे में बताता है, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि कोई भी पीछे न छूटे.
उन्होंने आगे कहा कि राष्ट्रीय MPI को 12 प्रमुख पहलुओं का उपयोग करके तैयार किया गया है जिसमें स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा और जीवन स्तर जैसे क्षेत्रों को शामिल किया गया है.

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