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FCRA को लेकर केंद्र से मिली राहत का फायदा मदर टेरेसा की संस्था को क्यों नहीं मिलेगा?

FCRA गैर सरकारी संस्थाओं की विदेशी फ़ंडिंग लेने का एक ज़रिया है.

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हाल ही में मदर टेरेसा द्वारा बनाई गई संस्था मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के FCRA पंजीकरण को रिन्यू करने से केंद्र सरकार ने इंकार कर दिया था. (सांकेतिक फोटो-PTI)
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31 दिसंबर 2021 (Updated: 31 दिसंबर 2021, 13:04 IST)
Updated: 31 दिसंबर 2021 13:04 IST
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गृह मंत्रालय ने फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेग्युलेशन) एक्ट (FCRA) के तहत गैर सरकारी संगठनों (NGO) को जारी पंजीकरण प्रमाणपत्रों की वैधता अगले साल मार्च तक बढ़ा दी है. मंत्रालय की ओर से जारी नए नोटिस के मुताबिक,
केंद्र ने जनहित में गैर सरकारी संगठनों को जारी पंजीकरण प्रमाणपत्रों की वैधता को 31 मार्च 2022 तक या उनके नवीनीकरण संबंधी आवेदन के निपटान की तारीख तक बढ़ाने का फैसला किया है. इसका फायदा ऐसे NGO को होगा जिनके पंजीकरण की मान्यता 29 सितंबर 2020 और 31 मार्च 2022 के बीच खत्म हो रही है और जिन्होंने प्रमाणपत्रों की वैधता समाप्त होने से पहले नवीनीकरण के लिए FCRA पोर्टल पर आवेदन दिए हैं.
मदर टेरेसी की संस्था को अब भी राहत नहीं हाल ही में केंद्र सरकार ने मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी के FCRA पंजीकरण को रिन्यू करने से इंकार कर दिया था. मिशनरीज ऑफ चैरिटी एक धार्मिक गैर सरकारी संस्था है जिसे 1950 में समाजसेवी मदर टेरेसा ने स्थापित किया था. पश्चिम बंगाल समेत देश की अन्य राज्य सरकारों ने केंद्र के इस फैसले पर आपत्ति जताई थी. वहीं केंद्र की ओर से कहा गया था कि आवेदन की पात्रता शर्तों को पूरा नहीं करने के कारण ऐसा किया गया. हालांकि नए नोटिस के बाद कई NGO को राहत मिली है. लेकिन मदर टेरेसा के मिशनरीज ऑफ चैरिटी और ऐस अन्य संगठनों को अब भी राहत नहीं मिलने वाली. क्योंकि नए नोटिस में गृह मंत्रालय ने कहा है कि जिन NGO के FCRA रजिस्ट्रेशन के नवीनीकरण के लिए आए आवेदनों को पहले ही खारिज कर दिया गया है, उनके प्रमाणपत्रों को रिफ्यूजल डेट से ही समाप्त माना जाएगा. नोटिस के मुताबिक ऐसे NGO ना तो फॉरेन फंड प्राप्त कर पाएंगे और ना ही पहले से प्राप्त ऐसी राशि का इस्तेमाल कर पाएंगे. क्या है FCRA? FCRA के तहत रजिस्ट्रेशन गैर सरकारी संस्थाओं के लिए विदेशी फ़ंडिंग लेने का एक ज़रिया है. एनजीओ को विदेशी रकम हासिल करने के लिए FCRA के तहत पंजीकरण कराना अनिवार्य है. इसके तहत कुल 22 हजार 762 गैर सरकारी संगठन पंजीकृत हैं. 1976 में पहली बार देश में FCRA क़ानून लाया गया था. तब देश की प्रधानमंत्री रहीं इंदिरा गांधी की सरकार विदेशी फंडिंग को रोकने के लिए ये कानून लाई थी. FCRA के तहत – NGO के सभी प्रमुख लोगों के पास आधार कार्ड होना जरूरी है. – सरकार द्वारा बताए बैंक की शाखा में ही विदेशी अंशदान लिया जा सकेगा. – NGO 20 प्रतिशत से अधिक पैसा खुद पर खर्च नहीं कर सकते. – विदेशी अंशदान लेने के बाद इसे किसी और को ट्रांसफर नहीं किया जा सकेगा. 2010 से 2019 के बीच विदेशों से आने वाले पैसे की मात्रा काफी बढ़ गई थी. इनकी जांच में पाया गया कि जिस काम के लिए पैसा लिया जा रहा था, वो उसमें नहीं लगाया जा रहा. इसी जांच के बाद, ‘राष्ट्रीय और आर्थिक हितों’ के लिए FCRA 2020 लाया गया. सरकार ने कथित तौर पर धर्म परिवर्तन कराने वाले 6 NGO का लाइसेंस भी निलंबित कर दिया. इन NGO पर आरोप था कि इन्होंने विदेशों से अंशदान के रूप में मिले पैसे का इस्तेमाल धर्म परिवर्तन कराने के लिए किया था. FCRA के नियमों में 2020 में हुए बदलावों की वजह कई NGO को नवीनीकरण को लेकर परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है. मिशनरीज़ ऑफ़ चैरिटी उनमें से एक है. हालांकि इसके FCRA पंजीकरण के रिन्यूअल से केंद्र के इंकार के बाद ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आगे आए हैं. उन्होंने अपने सभी जिलाधिकारियों को ये सुनिश्चित करने के निर्देश दिए कि राज्य में कार्यरत ‘मिशनरीज आफ चैरिटी’ की किसी भी इकाई को काम करने में दिक्कत और कोष का संकट ना हो. नवीन पटनायक ने कहा कि जरूरत पड़े तो मुख्यमंत्री राहत कोष का भी इस्तेमाल किया जा सकता है.

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