महाराष्ट्र में 15 जनवरी से ग्राम पंचायत चुनाव होने वाले हैं. और चुनाव के पहले ही सीटों की नीलामी हो रही है. अब इस पर प्रूफ़ वग़ैरह के साथ चुनाव आयोग से शिकायत की गयी, तो चुनाव आयोग ने महाराष्ट्र की दो ग्राम पंचायतों- नाशिक के उमराने गांव और नंदरबार के कोंडमाली गांव- में चुनाव कैंसिल कर दिया. इंडियन एक्सप्रेस में छपी ख़बर बताती है कि नाशिक के ग्राम पंचायत की बोली लगी थी 2 करोड़ और नंदरबार के ग्राम पंचायत की बोली लगी थी 42 लाख.
इंडियन एक्सप्रेस के हवाले से ख़बर बता रहे हैं. एक्सप्रेस ने पुणे के तीन ग्राम पंचायतों का दौरा किया. अपनी ख़बर में एक्सप्रेस में बताया है कि अधिकतर ग्राम पंचायतों में पंचायत सदस्यों का चुनाव निर्विरोध हो जा रहा है. सवाल उठता है कि ये कैसे? जवाब है कि इन ग्राम पंचायतों में गांव वाले आपस में सलाह-मशविरा करके पंचायत सदस्य का उम्मीदवार खड़ा करते हैं. उम्मीदवार सीट की बोली लगाता है. जिसकी बोली ज़्यादा और कारगर, वो प्रत्याशी. और बाक़ी कोई प्रत्याशी खड़ा नहीं होता है. ऐसे में निर्विरोध चुना जाना तय मानिए.
एक्सप्रेस ने पुणे के मोई गांव से सदस्य किरण गवारे का बयान छापा है. दावा किया है कि किरण गवारे निर्विरोध चुनी जाने वाली हैं. किरण गवारे ने कहा है,
“पब्लिक से बातचीत के बाद हमने ऐसे प्रत्याशी खड़े किए जो बिना किसी विरोध के पंचायत सदस्य चुने जायेंगे. और ये तय हुआ कि चुनाव प्रचार में जो पैसा लगता, उसे गांव में मंदिर बनाने में इस्तेमाल किया जाएगा.”
हालांकि किरण ने ये बताने से इनकार कर दिया कि उन्हें प्रत्याशी बनाने के लिए किसने पैसा दिया. एक्सप्रेस ने दावा किया है-
> नंदरबार की 87 में से 22 ग्राम पंचायतों में प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिए जायेंगे.
> बीड़ जिले की 129 में से 18 ग्राम पंचायतों में प्रत्याशी निर्विरोध चुन लिए जायेंगे.
> कोल्हापुर की 433 में से 47 ग्राम पंचायतों के विजेता तय कर लिए गए हैं.
> और लातूर की 401 ग्राम पंचायतों में 25 के विजेता तय हो चुके हैं.
चुनाव आयोग की नज़र में बात आयी
4 जनवरी को राज्य चुनाव आयुक्त यूपीएस मदान ने मीडिया में आयी रिपोर्ट्स, शिकायतों और वीडियो का संज्ञान लिया. इनको देखने के बाद ज़िला कलेक्टरों को आदेश दिया गया कि वो जांच करें. इसके बाद 13 जनवरी को चुनाव आयोग ने दो ग्राम पंचायतों में चुनाव रद्द करने का आदेश जारी कर दिया.
चुनाव आयोग के सामने एक और मुसीबत है. प्रत्याशियों की नीलामी में भाग लेने वाले कभी ख़ुद चुनाव में नहीं खड़े होते हैं. कुछ जांच अधिकारियों ने एक्सप्रेस से बताया है कि अक्सर नीलामी में बोली और पैसा लगाने वाले लोग अपने घर के लोगों को चुनाव में खड़ा कर देते हैं. जिससे जांच में उनकी संलिप्तता सामने नहीं आ पाती है.
कहां जाते हैं नीलामी के पैसे?
ये भी क़यास लगाए जा रहे हैं कि जिन जिलों या ग्राम पंचायतों से नीलामी के साक्ष्य सामने नहीं आ सके हैं, वहां पर भी ऐसी बोली लगी होगी. और चूंकि इन नीलामियों का कोई काग़ज़-पतरा होता नहीं है, न कोई रिकार्ड होता है, ऐसे में इन नीलामियों का पता भी नहीं चलता है.
और अमूमन नीलामी के पैसे गांव में किसी कल्याणकारी या लोकोपयोगी काम में लगा दिए जाते हैं. जैसे कोई प्रत्याशी जीत गया, तो ट्यूबवेल लगवा दिया, या मंदिर बनवा दिया या स्कूल बन गया.
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