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अब केरल हाई कोर्ट ने नाबालिग से रेप के दोषी पादरी की सजा कम कर दी!

हाल में इलाहाबाद और बॉम्बे हाई कोर्ट इसी तरह के फैसले दे चुके हैं.

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पूर्व पादरी रॉबिन वडक्कमचेरी, जो नाबालिग लड़की के रेप का दोषी है.
पूर्व पादरी रॉबिन वडक्कमचेरी, जो नाबालिग लड़की के रेप का दोषी है केरल हाईकोर्ट ने उसकी सजा कम कर दी है. (फाइल फोटो)
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1 दिसंबर 2021 (Updated: 1 दिसंबर 2021, 13:20 IST)
Updated: 1 दिसंबर 2021 13:20 IST
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रेप या यौन उत्पीड़न के एक और दोषी की सजा कम किए जाने का मामला सामने आया है. खबर केरल से है. यहां हाई कोर्ट ने नाबालिग से रेप के दोषी पूर्व पादरी की सजा घटा दी है. पूर्व कैथोलिक पादरी रॉबिन वडक्कमचेरी को POCSO कोर्ट ने 20 साल जेल की सजा सुनाई थी. साथ ही 3 लाख रुपये का जुर्माना भी लगाया था. लेकिन केरल हाई कोर्ट ने 20 साल की सजा को घटाकर आधा यानी 10 साल कर दिया है. वहीं जुर्माने की राशि भी 3 लाख से घटाकर एक लाख कर दी है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक पूर्व पादरी की रिव्यू पिटिशन पर केरल हाई कोर्ट के जस्टिस नारायण पिशारदी की बेंच ने ये फैसला सुनाया. POCSO कोर्ट ने दोषी को आईपीसी की धारा 376 (2) के तहत 20 साल की सजा दी थी. लेकिन केरल हाई कोर्ट इसे बदलकर 376 (1) के तहत 10 साल की सजा कर दी. 2017 में गिरफ्तारी के बाद रॉबिन वडक्कमचेरी जेल में है और 5 साल की सजा काट चुका है. क्या है मामला? घटना केरल के कन्नूर जिले के कोट्टियूर में घटी थी. यहां केरल का साइरो-मालाबार चर्च (कैथलिक चर्च की एक शाखा) स्कूल और कई दूसरे शिक्षण संस्थान चलाता है. इसी चर्च के एक स्कूल में पढ़ने वाली लड़की ने 2017 में एक बच्चे को जन्म दिया. लड़की की उम्र उस वक़्त 16 साल थी. यानी वो नाबालिग थी. बच्चे के जन्म के बाद सवाल उठे कि आखिर लड़की प्रेग्नेंट कैसे हुई? जांच के दौरान लड़की के पिता ने खुद पर इल्ज़ाम ले लिया. पिता को हिरासत में लिया गया. लेकिन पुलिस ने जांच में पाया कि लड़की के पिता के बयानों में विरोधाभास है. पूछताछ के दौरान लड़की के पिता ने स्वीकार किया कि उसने पुलिस को गलत जानकारी दी. तब उसने नाम लिया रॉबिन वडक्कमचेरी का. वो पादरी, जो इस स्कूल को मैनेज करता था. चर्च में ये विकर (Vicar) के पद पर था, यानी बिशप के रिप्रेजेंटेटिव के तौर पर वहां अपनी ड्यूटी निभा रहा था. पीड़िता के पिता के बयान के बाद मामला कोर्ट में गया. थलासेरी की पॉक्सो अदालत ने नाबालिग का रेप कर उसे प्रेग्नेंट करने के अपराध में रॉबिन वडक्कमचेरी को दोषी पाया और 20 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई. साथ ही 3 लाख रुपये जुर्माने के तौर पर देने को भी कहा. इसी बीच रॉबिन को पादरी के पद से भी हटा दिया गया. जुलाई 2020 में रॉबिन वडक्कमचेरी ने केरल हाई कोर्ट में एक याचिका डाली. कहा कि वो रेप सर्वाइवर लड़की से शादी करना चाहता है और उसकी बच्ची का ख्याल रखना चाहता है. रॉबिन ने कोर्ट से शादी की तैयारियों के लिए दो महीने की ज़मानत की भी मांग की. साथ ही शादी के बदले सज़ा को निलंबित करने की भी मांग की. लेकिन केरल हाई कोर्ट ने ये याचिका खारिज कर दी थी. तब कोर्ट ने कहा था कि दोषी की याचिका में कोई दम नहीं है. ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ के मुताबिक, जस्टिस सुनील थॉमस ने कहा कि ट्रायल कोर्ट ने अपनी सुनवाई में ये पाया था कि घटना के दौरान लड़की नाबालिग थी, इसलिए शादी की परमिशन देने से ऐसा लगेगा कि शादी को लीगल अप्रूवल मिला है. हाई कोर्ट में याचिका खारिज होने के बाद 53 बरस के रॉबिन ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. केरल हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी. शादी की परमिशन मांगी. इसके अलावा रेप सर्वाइवर ने भी सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन डाला और रॉबिन से शादी करने की परमिशन मांगी. कहा कि उसकी बच्ची की उम्र स्कूल जाने लायक हो गई है, इसलिए स्कूल एडमिशन फॉर्म में पिता का नाम लिखाना होगा, इसलिए वो रॉबिन से शादी करना चाहती है. वो अपने बच्चे को वैधता देना चाहती है. लेकिन इसी साल अगस्त में सुप्रीम कोर्ट ने भी इन याचिकाओं और आवेदन को खारिज कर दिया था. हालांकि अब केरल हाई कोर्ट ने दोषी की सजा को कम जरूर कर दिया है. इलाहाबाद और बॉम्बे HC ने दिया था इसी तरह का फैसला कुछ दिन पहले कुछ इसी तरह का मामला उत्तर प्रदेश में देखने को मिला था. यहां इलाहाबाद हाई कोर्ट ने POCSO ऐक्ट से जुड़े एक मामले में दोषी की सजा ये कहते हुए कम कर दी थी कि “ओरल सेक्स अति गंभीर श्रेणी वाला अपराध नहीं है.” खबरों के मुताबिक निचली अदालत से दोषी को 10 साल की सजा मिली थी जिसे हाई कोर्ट ने घटाकर 7 साल कर दिया था. इस व्यक्ति को 10 साल के बच्चे को 20 रुपए का लालच देकर उसके साथ ओरल सेक्स करने का दोषी पाया गया था. इसी तरह हाल में बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी चर्चित शक्ति मिल गैंगरेप के 3 दोषियों की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. कोर्ट ने कहा कि उसने बहुमत के खिलाफ फैसला दिया, लेकिन संवैधानिक अदालतों को प्रक्रिया का पालन करना होगा. इन दोषियों को आईपीसी की धारा 376ई के तहत फांसी की सजा दी गई थी. इसे पलटते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि धारा 376ई बार-बार अपराध करने वालों के खिलाफ लगाई जाती है. और क़ानून अनिवार्य रूप से मृत्युदंड का प्रावधान नहीं करता है, या ये भी नहीं बताता कि अभियुक्त केवल मृत्युदंड का हकदार है.

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