हरियाणा के मुख्यमंत्री कार्यालय ने 23 अक्टूबर 2020 को एक ट्वीट किया था. इसका विषय था- एनीमिया मुक्त भारत कार्यक्रम. ट्वीट में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की एक ‘गौरवान्वित’ टाइप तस्वीर लगाते हुए हरियाणा CMO ने लिखा था,
‘केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और यूनिसेफ (UNICEF) की पहल पर शुरू किए गए एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) कार्यक्रम में हरियाणा ने देश के 29 राज्यों को पछाड़कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है.’
केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय और यूनिसेफ की पहल पर शुरू किए गए एनीमिया मुक्त भारत (एएमबी) कार्यक्रम में हरियाणा ने देश के 29 राज्यों को पछाड़कर प्रथम स्थान प्राप्त किया है। pic.twitter.com/bJ7U2qviNi
— CMO Haryana (@cmohry) October 23, 2020
हालांकि हकीकत यह है कि हरियाणा में 6 से 59 महीने के 70.4 फीसदी बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं. वहीं 15 से 49 साल की 60.4 फीसदी महिलाएं और 18.9 फीसदी पुरुष इस कंडीशन से पीड़ित हैं.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के पांचवें राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5) के जरिये ये आंकड़े सामने आए हैं. हालांकि यह स्थिति सिर्फ हरियाणा राज्य की नहीं है. रिपोर्ट के मुताबिक देश में सभी उम्र वाले लोगों में एनीमिया के मामले बढ़ें हैं, फिर चाहे नवजात हों, छोटे बच्चे हों, युवा, पुरुष या महिलाएं हों.
क्या कहती है रिपोर्ट?
साल 2019-21 के बीच कराए गए इस सर्वे के मुताबिक भारत में 6 से 59 महीने के 67.1 फीसदी बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं. इससे पहले साल 2015-16 में कराए गए चौथे एनएफएस सर्वे में यह आंकड़ा 58.6 फीसदी था. इस तरह करीब नौ फीसदी बच्चों में एनीमिया के मामले बढ़ गए हैं.
यह समस्या सिर्फ बच्चों तक सीमित नहीं है. 15-49 उम्र की 57 फीसदी महिलाएं और 25 फीसदी पुरुष एनीमिया से ग्रसित हैं. वहीं 15-19 उम्र की 59.1 फीसदी महिलाओं और 31.1 फीसदी पुरुषों में यह समस्या व्याप्त है. ये सभी आंकड़े पिछले सर्वे यानी की NFHS-4 की तुलना में अधिक हैं.
मानव के शरीर में खून का एक बहुत जरूरी अंश हीमोग्लोबिन होता है. जब खून में हीमोग्लोबिन की मात्रा उपयुक्त मात्रा से कम हो जाती है, तो उसे एनीमिया या खून की कमी कहते हैं. पुरुषों में इसकी (हीमोग्लोबिन) मात्रा 12 से 16 फीसदी और महिलाओं में 11 से 14 फीसदी के बीच होनी चाहिए.
जिन लोगों के खून में हीमोग्लोबिन की कमी होती है वे बहुत जल्दी थक जाते हैं, किसी काम को करते हुए उनकी जल्दी सांस फूलने लगती है, हाथ-पैरों में दर्द रहता है और चिड़चिड़ापन आ जाता है.
‘एनीमिया मुक्त भारत’ को झटका?
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय ने साल 2018 में महिलाओं, बच्चों और किशोरों में एनीमिया कम करने के लिए ‘एनीमिया मुक्त भारत’ (AMB) की शुरुआत की थी. इसके तहत एनीमिया को हर वर्ष तीन फीसदी की दर से कम करने का प्रावधान किया गया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 सितंबर 2018 को कहा था,
‘एनीमिया हर वर्ष सिर्फ एक प्रतिशत की दर से घट रही है. सरकार ने तय किया है कि राष्ट्रीय पोषण अभियान के तहत इस गति को तीन गुना किया जाए. एनीमिया मुक्त भारत के इस संकल्प को आप सभी पूरी ताकत से पूरा करने वाले हैं. एनीमिया से मुक्ति का मतलब लाखों गर्भवती महिलाओं और बच्चों को जीवन दान.’
हालांकि NFHS-5 के आंकड़ों से साफ होता है कि हम पीछे की ओर जा रहे हैं और एनीमिया घटने के बजाय बढ़ रहा है.
किस राज्य में क्या स्थिति है?
रिपोर्ट के मुताबिक एनीमिया की सबसे बड़ी समस्या गुजरात में है. यहां 6 से 59 महीने के 80 फीसदी बच्चे इससे ग्रसित हैं. इसके बाद मध्य प्रदेश में 73 फीसदी, राजस्थान में 72 फीसदी और पंजाब में 71 फीसदी बच्चे एनीमिया की समस्या से जूझ रहे हैं.
वहीं केंद्रशासित प्रदेशों को देखें तो लद्दाख में इस श्रेणी (6-59 महीने) के सबसे ज्यादा 94 फीसदी बच्चे एनीमिया से पीड़ित हैं. बच्चों में सबसे कम एनीमिया की दिक्कत केरल में दर्ज की गई है. यहां के 39 फीसदी बच्चे इससे पीड़ित है. इसके बाद अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह में 40 फीसदी और नगालैंड तथा मणिपुर में 43-43 फीसदी बच्चे एनीमिया की चपेट में हैं.
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