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जब सोनी ने कपड़ों के आर-पार देख सकने वाले कैमरे बेच दिए

ये गलती थी, लेकिन फिर जो हुआ उसकी सोनी ने भी उम्मीद न की होगी.

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दर्पण
20 जून 2018 (Updated: 20 जून 2018, 12:05 PM IST)
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अतीत में कम्पनियां अपने प्रॉडक्ट-रिकॉल करती आई हैं. ‘प्रॉडक्ट-रिकॉल’ मतलब मार्केट से अपने प्रॉडक्ट को वापस मंगवाना.
लेकिन कंपनी प्रॉडक्ट-रिकॉल करती क्यूं हैं? वो इसलिए क्यूंकि जो प्रॉडक्ट वो मार्केट में बेच रही होती है, उसमें कुछ दिक्कतें आने लग जाती हैं. और ये दिक्कतें एक-दो नहीं बहुत ज़्यादा संख्या में सुनाई और दिखाई देने लग जाती हैं.
इन दिक्कतों से ग्राहकों को जान-माल तक का नुकसान होने लगता है. ग्राहक अपनी असंतुष्टि, अरुचि, विरोध या गुस्सा उस प्रॉडक्ट के ऊपर व्यक्त करते हैं और कई बार कंपनियां अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए और ज़्यादातर मज़बूरी में अपने प्रॉडक्ट को वापस मंगवा लेती हैं यानी रिकॉल कर लेती हैं.
Sony Cyber-shot DSC-F717 (2001 में लॉन्च हुआ ये कैमकॉर्डर 1998 में लॉन्च हुए उसी F717 सीरीज़ का अपडेट है, जिससे कपड़ों के आर-पार दिखाई देता था.
सोनी साइबर शॉट DSC-F717 (2001 में लॉन्च हुआ ये कैमकॉर्डर 1998 में लॉन्च हुए उसी F717 सीरीज़ का अपडेट है, जिससे कपड़ों के आर-पार दिखाई देता था.

ऐसा ही एक प्रॉडक्ट-रिकॉल हाल ही में सैमसंग ने किया था, जब उसके गैलेक्सी नोट 7 की बैटरी में विस्फोट होने लगा था और उसे फ़ोन वापस मंगवाने पड़े.
इन सभी प्रॉडक्ट-रिकॉल में एक बात कॉमन होती है, वो ये कि ग्राहकों का उस प्रॉडक्ट से असंतुष्ट होना, त्रस्त होना. लेकिन इतिहास में एक ऐसा भी मौका आया है जब प्रॉडक्ट अपने ग्राहकों को ‘अपेक्षा से कहीं ज़्यादा’ (एक्सिडिंग एक्सपेक्टेशन) दे रहा था, और फिर भी, प्रॉडक्ट रिकॉल करवाना पड़ा. कई ग्राहकों में गुस्सा नहीं, ख़ुशी मिश्रित आश्चर्य था, फिर भी प्रॉडक्ट रिकॉल करवाना पड़ा. हम इस पोस्ट में इसी रोचक ‘प्रॉडक्ट-रिकॉल’ की बात करेंगे.
प्रोडक्ट रिकॉल का लेटेस्ट उदाहरण
प्रॉडक्ट रिकॉल का लेटेस्ट उदाहरण

साल 1998 में सोनी को अपने नाइट विज़न कैमकॉर्डर (कैमरा और वीडियो रिकॉर्डर) को मार्केट से वापस लेना पड़ा. वो भी सौ-हज़ार नहीं, सत्तर हज़ार से अधिक.
दरअसल इस कैमकॉर्डर का एक फीचर था – नाइट शॉट. यानी ये घुप्प अंधेरे में भी फोटो खींच सकता था. इसके लिए ये इन्फ्रारेड का उपयोग करता था. लेकिन इन्फ्रारेड के उपयोग से दूसरी प्रॉब्लम होने लगी थी. दरअसल कुछ चीज़ें इन्फ्रारेड को एब्ज़ोर्ब (अवशोषित) कर लेती थीं और उनके पार की चीज़ें दिखने लग जाती थीं. जैसे पतले या किसी विशेष मटेरियल से बने कपड़े. इसके चलते कई बार कपड़े पहने हुए लोग भी जब इस कैमरे से देखे जाते, तो वस्त्रहीन लगते थे. होने को इस कैमरे से चीज़ें इतनी स्पष्ट नहीं दिखती थीं, और हर वस्त्र के लिए भी पारदर्शिता वाली बात सही नहीं थी लेकिन फिर भी ये लोगों के लिए एक नई बात थी. जब दसियों वेबसाइट और अन्य ऑफलाइन जगहों (अख़बार, मैगज़ीन आदि) पर ये बात फैली तो सोनी को आनन-फानन में प्रॉडक्ट रिकॉल करना पड़ा.
हैंडीकैम 717 सीरीज़ के इस कैमकॉर्डर के बारे में एक ग्राहक के कहा था – भला किस तरह का लूज़र ऐसे कैमरे को खरीदना चाहेगा?
लेकिन कुछ लोगों, खासकर शरारती तत्वों के बीच इसका बहुत क्रेज़ हो चुका था. इसी के चलते मार्केट में इसके कुछ ‘लोकल’ वर्ज़न बिकने लग गए. उधर रिकॉल हुए कैमकॉर्डर भी ब्लैक मार्केट में अपनी वास्तविक कीमत से दुगनी कीमत में बिक रहे थे.

कुछ लोगों का मत था कि सोनी ने जान-बूझकर ऐसा किया है. लेकिन ऐसा संभव नहीं लगता क्यूंकि कोई कंपनी पब्लिसिटी (अच्छी हो या बुरी) इसलिए करती है कि प्रॉडक्ट बिके. लेकिन यहां पर तो पब्लिसिटी के चलते प्रॉडक्ट रिकॉल करना पड़ रहा है. वैसे तो अमेरिका में एक ही स्टोर से एक ही दिन में तीस कैमरे बिक गए थे, लेकिन इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं मिली कि सोनी ने कितने कैमरे बेचे, रीकॉल करीब 70 हजार कैमरों को किया गया.
नीचे वाली वीडियो दिखाती है कि सोनी के उस 'कुख्यात' कैमकोडर से किस तरह की वीडियो बनती थीं या किस तरह की फोटो खींचती थीं.



आइए अब थोड़ा इन्फ्रारेड और नाइट विज़न को समझने के लिए रंगों को समझ लेते हैं. दरअसल जब सूरज की किरण प्रिज़्म से गुज़रती है तो सात रंग बनते हैं. सबसे पहला रंग लाल और सबसे अंतिम रंग बैंगनी होता है. ये रंग दरअसल इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज़ हैं. लेकिन केवल ये रंग ही इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज़ नहीं हैं. एक्स-रे भी एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव है, रेडियो वेव्ज़ और माइक्रोवेव भी इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज़ हैं. लेकिन हमें केवल वही इलेक्ट्रोमैग्नेटिक दिखती हैं जिनके प्रति हमारी आंखें संवेदनशील होती हैं. लाल से ठीक नीचे वाली वेव्ज़ को इन्फ्रारेड और बैंगनी से ठीक ऊपर वाली वेव को अल्ट्रावॉयलट वेव्ज़ कहते हैं. ये दोनों ही वेव्ज़ हमें नहीं दिखती क्यूंकि इनके ठीक पहले ही हमारी आंखों की संवेदनशीलता का स्पेक्ट्रम समाप्त हो जाता है.
रात को रोशनी के न होने से रंग तो हमें दिखते नहीं. लेकिन अच्छी बात ये है कि चीज़ों में से रंगों के अलावा और भी कई इलेक्ट्रोमैग्नेटिक वेव्ज़ निकलती हैं. जैसे कि इन्फ्रारेड. और मज़े की बात ये कि हर वस्तु अलग-अलग मात्रा में इन्फ्रारेड उत्सर्जित करती है.
एक इन्फ्रारेड व्यू जिसमें अदृश्य वायु प्रदूषण साफ़ दिखता है.
एक इन्फ्रारेड व्यू जिसमें अदृश्य वायु प्रदूषण साफ़ दिखता है.

अब इस पैटर्न को पढ़कर और उसे आंखों के लिए सेंसटिव बनाकर अंधेरे में भी आस-पास की चीज़ों का एक चित्र देखा, खींचा और शूट किया जा सकता है. बस यही होता है नाइट विज़न कैमरा में.


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