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भाजपा के सीएम कैंडिडेट धूमल को हराने वाले विधायक का इंटरव्यू

'धूमल जी ने मुझ पर होटल में रेड डलवाई थी.'

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प्रेम कुमार धूमल (बाएं) और राजिंदर राणा
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विशाल
22 दिसंबर 2017 (Updated: 22 दिसंबर 2017, 07:31 AM IST) कॉमेंट्स
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सियासत में सब कुछ मुमकिन है. इस मुल्क ने विदूषकों को भी गद्दी पर बैठते देखा है. पर खूबसूरती यही है कि सब कुछ जनता ही तय करती है. अब हिमाचल को ही ले लीजिए. यहां दो ही बड़ी पार्टियां हैं- भाजपा और कांग्रेस. इस चुनाव में जनता ने दोनों पार्टियों के करीब एक दर्जन बड़े नेताओं को धूल फांकने के काम में लगा दिया. इनमें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती, सात बार के विधायक गुलाब सिंह और कांग्रेसी दिग्गज जीएस बाली और कौल सिंह जैसे नेता शामिल हैं.


सतपाल सिंह सत्ती (बाएं) और जीएस बाली
सतपाल सिंह सत्ती (बाएं) और जीएस बाली

पर सबसे ज्यादा चौंकाया प्रेम कुमार धूमल के नतीजे ने. पार्टी ने इन्हें सीएम कैंडिडेट बनाया, लेकिन नेताजी अपनी सीट नहीं निकाल पाए. और हारे भी तो किससे! सालों पुराने अपने शागिर्द से. इन्हीं शागिर्द राजिंदर सिंह राणा से दी लल्लनटॉप ने बात की, तो पहाड़ जैसे उतार-चढ़ाव भरे कई किस्से निकले. आप भी जानिए.

सुजानपुर के लोग बेतरतीबी से बताते हैं कि राजिंदर राणा सालों से उनके साथ खड़े हैं. राणा के पास हिसाब भी है. बताते हैं कि 16 सालों से क्षेत्र में काम कर रहे हैं. राजनीति तो बाद में की, लेकिन NGO 16 साल से चला रहे हैं. अब तक 5643 लड़िकयों की शादी में मदद कर चुके हैं. 580 महिला मंडल हैं, जिनकी महिलाओं को कुकर और चटाई जैसी चीजें देकर सम्मानित किया. यूथ क्लब को स्पोर्ट्स किट और खेलने के लिए टूर्नामेंट मिले. सब अच्छा-अच्छा.


राजिंदर राणा
राजिंदर राणा

पर इतना राणा भी समझते हैं कि वो सिर्फ अपने काम के बूते नहीं जीते. 'धूमल क्यों हारे' के जवाब में बताते हैं कि मुख्यमंत्री रहते उन्हें जो काम करवाने थे, वो उन्होंने नहीं कराए. पर इससे भी बड़ी वजह ये कि जब बीजेपी ने इन्हें सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया, तो इनके समर्थक लोगों को धमकाने लगे कि वोट नहीं दिया, तो नेताजी जीतने के बाद 'देख लेंगे'. यहां तो लोगों ने ही नेताजी को देख लिया.

ये बाद में देख लेने की बहसें कॉलेज के दिनों में अच्छी लगती थीं. उत्साही कहते थे कि बाद में देख लेंगे और अति-उत्साई कहते थे, 'नहीं बाद में क्यों, अभी देखो'. कॉलेज से याद आया, राणा ने पंजाब यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया है. चंडीगढ़ में इन्होंने स्टेशनरी का बिजनेस किया, लेकिन गांव से निकले नौकरी करने के मकसद से थे. कुछ दिन की भी. पर पैसा कमाया रियल एस्टेट से. चंडीगढ़ में. लोगों से बातचीत का तरीका अच्छा था, तो सियासत का रुख किया और लोगों ने स्वीकार कर लिया.


राणा और धूमल
राणा और धूमल

लोगों के साथ-साथ राणा को 2003 में धूमल ने भी स्वीकार किया. बीजेपी चुनाव जीती थी और धूमल सीएम बने थे. तो धूमल ने मीडिया अडवाइज़री कमेटी बनाई और राणा को उसका अध्यक्ष बनाया. राणा 10 महीने इस पद पर रहे. इसके बाद सियासत अपनी गति से चलती रही. 2009 तक. 2009 की बात करते ही राणा की आवाज़ में एक चहक आ जाती है. कहते हैं,

'धूमल जी ने 2009 में मेरे ऊपर रेड डलवा दी. वो शिमला होटल वाला मामला. मेरी कोई गलती नहीं थी. बाद में डीजीपी ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस करके कहा था कि कुछ था नहीं, बस मीडिया ट्रायल चल रहा था.' ये सब प्लान्ड था, तो राणा ने संगठन में अपने पद से इस्तीफा दे दिया. फिर धूमल ने सार्वजनिक जगहों पर राणा को अवॉइड करना शुरू कर दिया. SDM ऑफिस बनवाने को लेकर भी दोनों में ठनाठनी हुई.


हालांकि, राणा को ये तो पता था कि 2017 का चुनाव आसान नहीं होगा. वो बताते हैं, 'हमने इलाके में काम किया था, तो भरोसा था कि लोग जिताएंगे. लेकिन जब धूमल जी को सीएम कैंडिडेट घोषित कर दिया गया, तो हमारे ऊपर दबाव बढ़ गया. चुनाव मुश्किल हो गया था.'

वीरभद्र सिंह के साथ राणा
वीरभद्र सिंह के साथ राणा

राणा ने वीरभद्र के भी कुछ किस्से शेयर किए. वही वीरभद्र, जिन्होंने राणा को 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ाया था. हमीरपुर से धूमल के बेटे अनुराग ठाकुर के खिलाफ. राणा विधायकी छोड़कर ये चुनाव लड़ने आए और हार गए. विधानसभा उपचुनाव में खड़ी हुईं उनकी पत्नी भी हार गईं. ये एक विराम की तरह है, लेकिन राणा इसे दूसरी तरह से कहते हैं, 'इतनी बड़ी मोदी-लहर होने के बावजूद हमीरपुर में कांग्रेस को पहली बार इतने वोट मिले थे.' हालांकि, पत्नी को क्यों लड़ाया गया, इसका जवाब नहीं मिलता है.

ये उम्मीद है. उम्मीद पर दुनिया कायम है. दी लल्लनटॉप की हिमाचल चुनाव यात्रा का हासिल ये रहा कि वहां के लोग आक्रामक नहीं हैं, शांत हैं. वहां गला फाड़कर नारे लगाने वाले कम ही मिलते हैं. अपने काम से काम रखते हैं. हम भी उम्मीद करते हैं कि उन्हें उनके ही स्वभाव के नेता मिलें, जो उनके लिए काम करें. हिमाचल जैसा बाहर से दिखता है, वैसा नहीं है. पीने के पानी की समस्या है, प्रदूषण बढ़ रहा है, हालात मुश्किल हैं. सबको उम्मीद है कि एक दिन सब ठीक हो जाएगा.

ये उम्मीद बनी रहे.




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