''रांची के एसएसपी कुलदीप द्विवेदी ने धान के खेत में नंगे पैर दौड़ लगाकर तीन सुपारी किलर्स को पकड़ा.''
IPS कुलदीप द्विवेदी का दिल 'सिंघम' से भी बड़ा है
नंगे पांव AK-47 लेकर सुपारी किलर्स के पीछे दौड़ लगाने के लिए इनकी खूब तारीफ हो रही है.

कुलदीप द्विवेदी (बीच में) के नंगे पांव अपराधियों के पीछ दौड़ जाने के बाद की ये तस्वीर काफी वायरल हुई थी
15 अक्टूबर को सोशल मीडिया पर एक तस्वीर अपलोड हुई. एक पुलिस पार्टी की. बीच में एक सीनियर अफसर है. एसएसपी रैंक का. उसके दाएं हाथ में एक AK 47 है. लेकिन पैर में जूते नहीं है. पैंट घुटने तक मिट्टी में सनी हुई है, लेकिन चेहरा सख्त बना हुआ है. इस तस्वीर के साथ जो कैप्शन चला, वो कुछ यूं था -
इसके बाद ये तस्वीर सोशल मीडिया पर वायरल हो गई. ट्विटर पर कई लोगों ने कुलदीप को 'रीयल सिंघम' कहा. आईपीएस जैसी बड़ी परीक्षाएं क्वालिफाई करने के बाद कितने ही लोग साहब हो जाते हैं. लेकिन यहां एक एसएसपी नंगे पांव हथियार लेकर धान के खेत में दौड़ लगा रहा था, ताकि उसकी टीम की मेहनत बेकार न जाए. इसे हम कहते हैं लल्लनटॉप स्टोरी. तो हमने तय किया कि कुलदीप से बात की जाए और उनकी कहानी आपसे कही जाए.

कुलदीप द्विवेदी 2005 बैच के IPS अफसर हैं
पुलिस में आए कि किसी की धौंस न सहनी पड़े
1979 में पैदा हुए कुलदीप एक मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं. वही मिडिल क्लास जो सबसे ज़्यादा शिद्दत से सपने देखती है और उन्हें पूरा करने में खुद को झोंके रहती है. पिता उत्तर प्रदेश के अकाउंटेट जनरल ऑफिस में असिस्टेंट अकाउंटेट थे और मां घर का ध्यान रखती थीं. पढ़ाई इलाहाबाद के सेंट जोज़फ कॉलेज में चलती थी, लेकिन गांव आना-जाना लगा रहता था. गांव में उन्होंने दबंगों को गुंडई करते देखा था. तब उन्हें 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' मुहावरे को चरितार्थ होते देखा था. वहीं से उनके दिमाग में ये बात आई कि ज़िंदगी में ऐसा कुछ करना है कि कल को उन्हें कोई दबा न पाए. किसी और को ज़ोर कसते हुए देखें तो उसे भी रोक सकें.
लगातार टॉप करने के बाद सिविल सर्विस का आइडिया आया
कभी टॉप करने पर खास ज़ोर न देने वाले कुलदीप ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई करते हुए दो साल लगातार टॉप किया. तब उन्हें लगा कि क्यों न आईएएस की तैयारी की जाए. अच्छा करियर ऑप्शन भी है और कुछ करने का मौका भी मिलेगा. तो 2005 में कुलदीप ने सिविल सर्विसेज़ का पेपर दिया. फर्स्ट अटैम्प्ट में 117 रैंक मिली. आईपीएस मिल गया. वर्दी का रुतबा पसंद था ही, तो फिर दोबारा पेपर नहीं दिया. आईपीएस जॉइन कर लिया.
पहली पोस्टिंग से माओवादियों के खिलाफ लड़ रहे हैं
ट्रेनिंग के बाद मिला झारखंड काडर. बोकारो में प्रोबेशन के बाद पहली पोस्टिंग मिली बतौर एएसपी सदर गिरिडीह. गिरिडीह में तब माओवादियों का ज़ोर था. पोस्टिंग के दो महीने के भीतर CPI के माओवादियों से मुठभेड़ होने लगी. कुलदीप के करियर का बड़ा हिस्सा माओवादी इलाकों में ही कटा.

माओवादी नेता कुंदन पाहन से कुलदीप की कई मुठभेड़ें हुईं
कुलदीप ने 2008 में कमांडो ट्रेनिंग पूरी की. रांची देहात के एसपी बनाए जाने के बाद उनके ऑपरेशन माओवादी नेता कुंदन पाहन के खिलाफ होने लगे. कुंदन पर झारखंड सरकार में मंत्री रह चुके विधायक रमेश मुंडा और एक डीएसपी को मारने सहित सौ से ऊपर इल्ज़ाम थे. कुंदन ने मई 2017 में सरेंडर कर दिया.
2009 में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने थे. चुनाव माओवादियों के लिए गड़बड़ करने का सबसे बढ़िया मौका होते हैं. सरकार इसे अच्छे से समझती थी. उन्हीं दिनों माओवादियों ने एक ट्रेन को अगवा कर दिखा दिया कि इलाके पर उनकी पकड़ कितनी है. इसलिए सरकार ने तय किया कि माओवाद से निपटने में किसी अनुभवी अफसर को लातेहार का एसपी बनाया जाए. ऐसे वक्त में याद किया गया कुलदीप द्विवेदी को. कुलदीप बताते हैं,

कुलदीप द्विवेदी को CM गैलेंट्री अवॉर्ड मिल चुका है
जब टाइगर मोबाइल चलाने वाले को अरेस्ट किया
माओवादियों से निपटने के अलावा कुलदीप को ऑर्गनाइज़्ड क्राइम (संगठित अपराध) से निपटने का भी अच्छा अनुभव है. 2011 में एसपी बोकारो रहते हुए उन्होंने आइरन ओर माफिया इलियास चौधरी पर कार्रवाई की. इलियास की ओर स्मग्लिंग में तूती बोलती थी. कुलदीप बताते हैं,
कुलदीप एक्टिव पुलीसिंग में विश्वास रखते हैं. विवाद का अंदेशा हो तो पहले ही दोनों गुटों की बातचीत करवा देते हैं
कुलदीप के बोकारो में रहते इलियास पर पुलिस ने इतना दबाव बनाया कि वो बंगाल भाग गया. झारखंड पुलिस बंगाल गई और इलियास को गिरफ्तार किया गया. इलियास के बंद होने के बाद बोकारो में उसका खौफ कम हुआ और लोगों की राय पुलिस को लेकर बदली. यही कुलदीप की स्ट्रैटेजी रही है. वो कहते हैं,
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कुलदीप ने अपनी बात शुरू ही यहां से की कि धान के खेत में पूरी पुलिस पार्टी दौड़ी थी और तब जाकर सारे बदमाश पकड़ में आए थे. हां, जूता ज़रूर बस उनका ही निकला था, जिसकी परवाह करने का उनके पास वक्त नहीं था. हमें सुन कर अच्छा लगा.

कुलदीप द्विवेदी 2005 बैच के IPS अफसर हैं
पुलिस में आए कि किसी की धौंस न सहनी पड़े
1979 में पैदा हुए कुलदीप एक मिडिल क्लास फैमिली से आते हैं. वही मिडिल क्लास जो सबसे ज़्यादा शिद्दत से सपने देखती है और उन्हें पूरा करने में खुद को झोंके रहती है. पिता उत्तर प्रदेश के अकाउंटेट जनरल ऑफिस में असिस्टेंट अकाउंटेट थे और मां घर का ध्यान रखती थीं. पढ़ाई इलाहाबाद के सेंट जोज़फ कॉलेज में चलती थी, लेकिन गांव आना-जाना लगा रहता था. गांव में उन्होंने दबंगों को गुंडई करते देखा था. तब उन्हें 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' मुहावरे को चरितार्थ होते देखा था. वहीं से उनके दिमाग में ये बात आई कि ज़िंदगी में ऐसा कुछ करना है कि कल को उन्हें कोई दबा न पाए. किसी और को ज़ोर कसते हुए देखें तो उसे भी रोक सकें.
लगातार टॉप करने के बाद सिविल सर्विस का आइडिया आया
कभी टॉप करने पर खास ज़ोर न देने वाले कुलदीप ने इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से पॉलिटिकल साइंस की पढ़ाई करते हुए दो साल लगातार टॉप किया. तब उन्हें लगा कि क्यों न आईएएस की तैयारी की जाए. अच्छा करियर ऑप्शन भी है और कुछ करने का मौका भी मिलेगा. तो 2005 में कुलदीप ने सिविल सर्विसेज़ का पेपर दिया. फर्स्ट अटैम्प्ट में 117 रैंक मिली. आईपीएस मिल गया. वर्दी का रुतबा पसंद था ही, तो फिर दोबारा पेपर नहीं दिया. आईपीएस जॉइन कर लिया.
पहली पोस्टिंग से माओवादियों के खिलाफ लड़ रहे हैं
ट्रेनिंग के बाद मिला झारखंड काडर. बोकारो में प्रोबेशन के बाद पहली पोस्टिंग मिली बतौर एएसपी सदर गिरिडीह. गिरिडीह में तब माओवादियों का ज़ोर था. पोस्टिंग के दो महीने के भीतर CPI के माओवादियों से मुठभेड़ होने लगी. कुलदीप के करियर का बड़ा हिस्सा माओवादी इलाकों में ही कटा.

माओवादी नेता कुंदन पाहन से कुलदीप की कई मुठभेड़ें हुईं
कुलदीप ने 2008 में कमांडो ट्रेनिंग पूरी की. रांची देहात के एसपी बनाए जाने के बाद उनके ऑपरेशन माओवादी नेता कुंदन पाहन के खिलाफ होने लगे. कुंदन पर झारखंड सरकार में मंत्री रह चुके विधायक रमेश मुंडा और एक डीएसपी को मारने सहित सौ से ऊपर इल्ज़ाम थे. कुंदन ने मई 2017 में सरेंडर कर दिया.
2009 में झारखंड में विधानसभा चुनाव होने थे. चुनाव माओवादियों के लिए गड़बड़ करने का सबसे बढ़िया मौका होते हैं. सरकार इसे अच्छे से समझती थी. उन्हीं दिनों माओवादियों ने एक ट्रेन को अगवा कर दिखा दिया कि इलाके पर उनकी पकड़ कितनी है. इसलिए सरकार ने तय किया कि माओवाद से निपटने में किसी अनुभवी अफसर को लातेहार का एसपी बनाया जाए. ऐसे वक्त में याद किया गया कुलदीप द्विवेदी को. कुलदीप बताते हैं,
इलाके में माओवाद की शुरुआत होने के बाद से 2009 वो पहला साल था, जब चुनावों के दौरान लातेहार में कोई बड़ी घटना नहीं हुई थी.लेकिन 2009 ही वो साल भी बना, जब कुलदीप माओवादियों के किए एक आईईडी ब्लास्ट में बाल-बाल बचे. इस हमले में उनके 6 साथी शहीद हुए. लेकिन कुलदीप माओवादियों के खिलाफ ऑपरेशन चलाते रहे. साल 2010 में उन्हें माओवादियों के खिलाफ चलाए ऑपरेशन 'तूफान' के लिए सीएम का गैलेंट्री अवॉर्ड मिला. ऑपरेशन तूफान के बाद ही साल 2010 में झारखंड में पहली बार पंचायती राज चुनाव भी कराए गए.

कुलदीप द्विवेदी को CM गैलेंट्री अवॉर्ड मिल चुका है
जब टाइगर मोबाइल चलाने वाले को अरेस्ट किया
माओवादियों से निपटने के अलावा कुलदीप को ऑर्गनाइज़्ड क्राइम (संगठित अपराध) से निपटने का भी अच्छा अनुभव है. 2011 में एसपी बोकारो रहते हुए उन्होंने आइरन ओर माफिया इलियास चौधरी पर कार्रवाई की. इलियास की ओर स्मग्लिंग में तूती बोलती थी. कुलदीप बताते हैं,
बोकारो स्टील प्लांट की चारदीवारी के अंदर इलियास ने एक पूरा गांव बसा रखा था जिसमें ज़्यादातर ऐसे लोग रहते थे जो उसके लिए स्मग्लिंग का काम करते थे. उन दिनों बोकारो में 'टाइगर मोबाइल' घूमा करती थी. ये चौधरी के गुंडों की टीम होती थी. ये चौधरी के लिए वही काम करती थी, जो सरकार के लिए पुलिस करती थी. बोकारो के लोगों में खौफ था.

कुलदीप एक्टिव पुलीसिंग में विश्वास रखते हैं. विवाद का अंदेशा हो तो पहले ही दोनों गुटों की बातचीत करवा देते हैं
कुलदीप के बोकारो में रहते इलियास पर पुलिस ने इतना दबाव बनाया कि वो बंगाल भाग गया. झारखंड पुलिस बंगाल गई और इलियास को गिरफ्तार किया गया. इलियास के बंद होने के बाद बोकारो में उसका खौफ कम हुआ और लोगों की राय पुलिस को लेकर बदली. यही कुलदीप की स्ट्रैटेजी रही है. वो कहते हैं,
आज से आठ-नौ साल पहले ये हाल था कि झारखंड के अंदरूनी इलाकों में माओवादियों के समर्थन में मशाल मार्च निकलते रहते थे. इसलिए हमने लोगों को समझाया कि सरकार उनकी दुश्मन नहीं है. स्कूल और सड़क से दूर रहकर उनका कोई भला नहीं होने वाला. तब जाकर धीरे-धीरे झारखंड में माओवादियों के काडर में भर्ती कम हुई.दी लल्लनटॉप से कुलदीप की जितनी बातचीत हुई, उसमें हमें वो एक साफ सोच वाले अफसर लगे. साफ कहते हैं कि रांची आकर हमने एक लिस्ट बनाई टॉप 10 बदमाशों की, जिन्हें पुलिस ने टार्गेट किया. एक्टिव पुलिसिंग में यकीन रखते हैं. उन्हीं के शब्दों में,
मेरी मां ये कहती थी कि डिप्लोमैटिक रहने में कोई फायदा नहीं है. अगर तुम किसी चीज़ में विश्वास करते हो तो उसके लिए स्टैंड लो. तो मेरा भी मानना है कि पुलिस को लोगों का दोस्त होना चाहिए. लेकिन जो लोग कानून का पालन नहीं करते, उनमें एक तरह का फीयर साइकोसिस होना चाहिए पुलिस को लेकर.
दो जांबाज़ पुलिसवाले, एक ने वीरप्पन को मारा, एक ने ददुआ कोः
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