लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र के बाद सबसे बड़ा झटका राजस्थान में लगा. पार्टी पिछले चुनाव में 24 सीटों के मुकाबले 14 पर पहुंच गई. 2019 के चुनाव की तुलना में राज्य में बीजेपी का वोट पर्सेंट भी करीब 10 फीसदी घट गया. राजस्थान में पार्टी का ये हाल तब हुआ, जब 6 महीने पहले ही विधानसभा चुनाव में बहुमत पाकर राज्य में बीजेपी ने सरकार बनाई. राज्य में कांग्रेस शून्य से 8 सीटों पर पहुंच गई. वहीं कांग्रेस के सहयोगी दलों ने भी तीन सीटों पर जीत दर्ज की. इसलिए बीजेपी को हुए इस नुकसान पर खूब विश्लेषण हो रहे हैं. एक्सपर्ट्स हार के कारणों को कई फैक्टर्स में ढूंढ रहे हैं.
राजस्थान में BJP कहां-कहां चूकी जिससे पार्टी 24 से 14 सीटों में सिमट गई?
बीजेपी को राज्य में सबसे बड़ा झटका शेखावटी और पूर्वी राजस्थान के इलाकों में लगा है. इलाके की ज्यादातर जाट सीटों पर कांग्रेस गठबंधन की जीत हुई है.

बीजेपी को राज्य में सबसे बड़ा झटका शेखावटी और पूर्वी राजस्थान के इलाकों में लगा है. इलाके की ज्यादातर जाट सीटों पर कांग्रेस गठबंधन की जीत हुई है. INDIA गठबंधन के 11 सांसदों में से पांच जाट समुदाय के हैं. गठबंधन को चुरू, सीकर, झुंझुनू और नागौर में जीत मिली है. कहा जा रहा है कि बीजेपी को जाट, गुर्जर और मीणा समुदाय की नाराजगी झेलनी पड़ी है.
क्या जाटों की नाराजगी भारी पड़ी?चुरू से बीजेपी ने अपने सांसद राहुल कस्वां का टिकट काट दिया था. जाट समुदाय से आने वाले राहुल कस्वां के परिवार की यह परंपरागत सीट रही है. 2014 से पहले उनके पिता राम सिंह कस्वां यहां से चार बार बीजेपी सांसद रहे थे. इसके बाद से राहुल कस्वां इस सीट से सांसद बनते रहे. लेकिन टिकट कटते ही राहुल कांग्रेस में शामिल हो गए. अब वे कांग्रेस के टिकट पर सांसद बन गए हैं. कस्वां और उनके समर्थकों ने चुनाव से पहले आरोप लगाया था कि राजेंद्र राठौड़ के कारण उन्हें टिकट नहीं दिया गया था. राठौड़ राजपूत समुदाय से आते हैं.
इंडिया टुडे से जुड़े शरत कुमार की रिपोर्ट के मुताबिक, चुरू में इस नाराजगी का असर पूरे शेखावटी बेल्ट पर पड़ा. इससे पहले सतीश पूनिया को हटाकर सीपी जोशी को बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था. इससे भी जाट समुदाय में नाराजगी बढ़ी थी. दूसरी तरफ, कांग्रेस ने शेखावटी इलाके से जाट नेता गोविंद सिंह डोटासरा को प्रदेश अध्यक्ष बनाया था. कम्युनिस्ट पार्टी में भी ज्यादातर जाट नेता हैं. सीकर में माकपा से गठबंधन का फायदा कांग्रेस को कई सीटों पर मिला.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट बताती है कि विधानसभा चुनाव के बाद मुख्यमंत्री या डिप्टी सीएम का पद जाट समुदाय को मिलने की उम्मीद थी. लेकिन नहीं मिली. इसके अलावा केंद्र की अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) की लिस्ट में भरतपुर और धौलपुर के जाटों को नहीं जोड़े जाने के कारण भी जाट नाराज थे.
मीणा और गुर्जर समुदाय भी नाराज हुआ?शरत कुमार की रिपोर्ट की मानें तो मीणा समुदाय भी इस बार बीजेपी से नाराज नजर आया. राज्य में परंपरागत रूप से मीणा कांग्रेस के वोटर रहे हैं. लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में पेपर लीक और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों को लेकर मीणा समुदाय ने कांग्रेस के खिलाफ वोट किया. इसकी बड़ी वजह BJP के सीनियर नेता डॉक्टर किरोड़ी लाल मीणा भी थे. लेकिन सरकार में आने के बाद किरोड़ी लाल मीणा को कोई बड़ा मंत्रालय नहीं मिला. इसके कारण मीणा समाज में नाराजगी रही.
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रिपोर्ट बताती है कि विधानसभा चुनाव में गुर्जर समुदाय ने कांग्रेस के खिलाफ वोट दिया था. उनकी नाराजगी इस बात से थी कि अशोक गहलोत के कारण सचिन पायलट राजस्थान के मुख्यमंत्री नहीं बन पाए. गुर्जर वोट से BJP सत्ता में वापस आई. लेकिन इस समुदाय से एक भी कैबिनेट मंत्री या स्वतंत्र प्रभार का राज्य मंत्री नहीं बन पाया. जबकि कांग्रेस सरकार में समुदाय से दो कैबिनेट मंत्री थे.
इसलिए लोकसभा चुनाव में सचिन पायलट के करीबी नेताओं के पक्ष में गुर्जर समुदाय ने वोट किया. सचिन पायलट के कारण पूर्वी राजस्थान में मीणा और गुर्जर समाज ने एक साथ वोटिंग की. ये दोनों समुदाय अगर एक साथ वोट करतें हैं, तो पूर्वी राजस्थान की सीटें कोई भी पार्टी अकेले जीत सकती है. कांग्रेस के जीते उम्मीदवारों में पांच पायलट समर्थक माने जाते हैं.
पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस को गठबंधन का फायदाजाट बहुल इलाकों के अलावा कांग्रेस गठबंधन को पूर्वी राजस्थान में भी फायदा हुआ. टोंक-सवाई माधोपुर से हरीश चंद्र मीणा, दौसा से मुरारी लाल मीणा, करौली-धौलपुर में भजन लाल जाटव और भरतपुर से संजना जाटव को जीत मिली. इस क्षेत्र को सचिन पायलट का मजबूत गढ़ माना जाता है.
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2014 और 2019 के मुकाबले कांग्रेस ने तीन सीटें सहयोगियों को दी थीं और तीनों गठबंधन के हिस्से आ गईं. नागौर से राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के हनुमान बेनीवाल, सीकर से माकपा के अमरा राम और बांसवाड़ा से भारत आदिवासी पार्टी के राज कुमार रोत की जीत हुई. गठबंधन के कारण इन तीनों पार्टियों का वोट भी कांग्रेस को मिला.
सेना में भर्ती के लिए नई अग्निपथ योजना को भी नाराजगी का एक बड़ा कारण माना जा रहा है. शेखावटी इलाके से हर साल बड़ी संख्या में युवा सेना में चुने जाते हैं.
शरत कुमार की मानें तो इस इलाके में किसान आंदोलन भी बीजेपी के खिलाफ गया है. श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ के इलाके पंजाब से सटे हुए हैं. इसलिए यहां भी सिख समुदाय ने बड़ी संख्या में इस बार कांग्रेस को वोट दिया. जबकि यहां पर सिख समुदाय परंपरागत रूप से BJP का वोटर रहा है.
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