“लश्कर-ए-तैयबा में शामिल होने के बाद मुझे अपनी मां के इलाज के लिए 20 हजार रुपए दिए गए थे. मुझे ISI के हवाले कर दिया गया. बाद में कश्मीर में भेजे जाने के बाद मुझे 30 हजार रुपए और देने का वादा किया गया था."अली बाबर पात्रा ने ये भी बताया कि कैसे उसे जिहाद के नाम पर भड़काया गया. उसके मुताबिक, ट्रेनिंग के दौरान उसे जोर देकर बताया जाता था कि 'इस्लाम खतरे में है' और कश्मीर के मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़ुल्म हो रहे हैं. ऐसे टॉपिक प्रशिक्षण के दौरान उपदेश के मुख्य विषय होते थे. बाबर ने कहा,
"हमें बताया गया था कि भारतीय सेना कश्मीर में मुसलमानों के खिलाफ अत्याचार कर रही है. लेकिन मुझे यहां ऐसा कुछ नजर नहीं आया. मैंने यहां लोगों को खुश देखा. भारतीय सेना ने मेरे साथ अच्छा व्यवहार किया. उसने मुझे बिल्कुल प्रताड़ित नहीं किया."अली बाबर ने आत्मसमर्पण के बाद बोला कि उसे इस जिहाद की सच्चाई पता नहीं थी. उसने ये भी कहा इस तरह का जिहाद गलत है. बाबर ने बताया कि पाकिस्तानी सेना की मदद के बिना कोई भी बॉर्डर क्रॉस नहीं कर सकता. ये भी कहा कि उसके साथ 6 लोगों का समूह था. अली बाबर ने साफ कहा कि उसे बाकी आतंकियों के साथ पत्तन पहुंचने का निर्देश दिया गया था. ये इलाका जम्मू-कश्मीर के बारामूला जिले में पड़ता है. इन आतंकियों को हथियार और गोला-बारूद लेकर वहां जाना था. पाकिस्तान ने उन्हें अगले आदेश का इंतजार करने को कहा था. लगातार सर्च ऑपरेशन कर पकड़ा वहीं, भारतीय सेना को इन आतंकवादियों के बॉर्डर पार करने की सूचना मिल गई थी. इसके बाद उसने 18 सितंबर से लगातार सर्च ऑपरेशन चला रखा है. सेना ने बताया,
"गरीबी की वजह से उसे (अली बाबर) गुमराह कर लश्कर-ए-तैयबा में शामिल होने का लालच दिया गया. उसके परिवार में उसकी विधवा मां और एक बहन हैं. परिवार गरीबी से जूझ रहा है. गरीबी की वजह से उसने सातवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी. गरीबी से ही बचने के लिए उसने 2019 में गढ़ी हबीबुल्लाह कैंप में तीन सप्ताह की ट्रेनिंग ली."सेना ने दावा किया कि अली को ज्यादातर ट्रेनिंग आतंकियों से नहीं, बल्कि पाकिस्तानी सेना के जवानों से मिली. खुद अली ने भी इस बात को कबूल किया है. सेना ने ये जानकारी भी दी कि बीते एक हफ्ते में उसने कुल 7 आतंकवादियों को मार गिराया है.
(आपके लिए ये ख़बर हमारे साथी साजिद ने लिखी है.)