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कुख्यात दुर्लभ कश्यप की मौत के बाद कैसे सोशल मीडिया ने उसे ज़िंदा कर दिया?

काली शर्ट, आंखों में काजल, माथे पर टीका, क्या है इस गैंगस्टार की कहानी?

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20 साल की उम्र और 11 मुकदमों वाला दुर्लभ कश्यप गैंगवॉर में मारा गया. (फोटो - आजतक)

काली शर्ट पहने हुए लड़का. आंखों में काजल. माथे पर ‘अलग तरह का’ टीका. कंधे पर पंछा, या कहें गमछा. और एक नाम, दुर्लभ कश्यप. फेसबुक पर तलाशेंगे, तो इस नाम के कई अकाउंट्स, पेज और ग्रुप सामने आ जाएंगे. लेकिन सबसे जरूरी बात. दुर्लभ कश्यप नाम का ये लड़का, जो अब दुनिया में नहीं है. गैंगवॉर में मारा जा चुका है. मरने के बाद उसकी इतनी फैन फॉलोइंग क्यों? उज्जैन के रहने वाले दुर्लभ का नाम चल जाने के पीछे का किस्सा क्या है? एक-एक कर सारे पन्नों को पलटते हैं.

हाथ उठाया और सोशल मीडिया पर ‘हिट’ हो गया

साल 2018 की बात है. दो महीने बाद मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव थे. उज्जैन के तत्कालीन SP सचिन अतुलकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. सचिन अतुलकर, जो अपनी तस्वीरों और फिटनेस के चलते सोशल मीडिया पर खुद भी आए दिन वायरल होते रहते हैं. लेकिन वो किसी और के वायरल होने का दिन था. दुर्लभ और उसके कुछ साथियों की मीडिया के सामने परेड कराई गई. सचिन अतुलकर की कोशिश थी कि चुनाव से पहले पेशेवर अपराधियों को नियंत्रण में कर लिया जाए. उस वक्त दुर्लभ 18 साल का भी नहीं था. मीडियावाले उसके चेहरे से अनजान थे. प्रेस कॉन्फ्रेंस में से एक पत्रकार ने सवाल किया, ‘इन लड़कों में से दुर्लभ कौन है?’ अतुलकर का जवाब आया, ‘वो खुद हाथ उठाकर बताएगा’. फिर फटी शर्ट वाले दुर्लभ ने बहुत अलग अंदाज में अपना हाथ ऊपर उठाया. यह वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. यह वही वक्त था जिसके साथ दुर्लभ सोशल मीडिया पर लोगों के बीच पहचान हासिल करने में सफल हो गया.

दुर्लभ और उसकी गैंग के साथियों को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून यानी NSA के तहत सूबे की अलग-अलग जेलों में भेज दिया गया. दुर्लभ को शुरुआत में जबलपुर जेल भेजा गया. उस वक़्त वह नाबालिग था. बालिग होने में कुछ महीने बचे थे. दुर्लभ ने इस बात का फायदा उठाया. पुलिस ऐक्शन के खिलाफ जबलपुर हाई कोर्ट में अपील कर दी. अप्रैल 2019 में हाई कोर्ट ने दुर्लभ के पक्ष में फैसला देते हुए उसे बाल सुधार गृह भेजने का आदेश दिया.

2017 में पहला मुक़दमा और 2018 में पहली हत्या का मुक़दमा (फोटो - आजतक)

2019 की बात है. विशेष सुधार गृह से निकलकर दुर्लभ और उसके कुछ दोस्तों ने इंदौर में एक फ्लैट किराए पर ले लिया था. दुर्लभ का एक दोस्त था. नाम था, राजदीप मंडलोई. उसके मुताबिक, अब तक दुर्लभ काफी बदल चुका था. नशा करना लगभग बंद कर चुका था. अपना बिजनेस शुरू करने की प्लानिंग कर रहा था. लेकिन कुछ महीनों बाद लॉकडाउन लग गया. फिर सभी को उज्जैन लौटना पड़ा.

सितंबर 2020 में लॉकडाउन खुल गया. नाइट कर्फ्यू जारी था. इसी महीने की 6-7 तारीख को दुर्लभ ने अपने साथियों को अपने घर बुलाया. खाने के लिए. खाने-पीने के बीच उसके दोस्तों की सिगरेट खत्म हो गई. रात में चलने वाले चाय के ठीहे भी बंद हो चुके थे. इसी बीच दुर्लभ का एक दोस्त बोला कि मैं हेलावाड़ी इलाके से आ रहा हूं. वहां एक चाय की दुकान रातभर खुली रहती है. बस दुर्लभ और उसके साथी बाइक पर सवार होकर हेलावाड़ी निकल लिए. हेलावाड़ी, उज्जैन का वो इलाका है जहां हेला मुस्लिम समुदाय के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं. यहां दुर्लभ का एक विरोधी गैंग भी सक्रिय हुआ करता था. इस गैंग ने अपना नाम रखा था ‘कुत्ता कमीना चीज’. शॉर्ट फॉर्म खुद को इस गैंग के सदस्य KKC ग्रुप कहते थे. इस गैंग का लीडर था रमीज. हेलावाड़ी की जिस दुकान में दुर्लभ अपने दोस्तों के साथ चाय पीने गया, उसका मालिक था अमन उर्फ़ भूरा. रमीज का भाई, भूरा. दुर्लभ इन दिनों तक कुख्यात हो चुका था. भूरा ने दुर्लभ को पहचान लिया. इसके बाद दुर्लभ और विरोधी गैंग के बीच झड़प हुई. कुछ घंटों बाद जब पुलिस मौके पर पहुंची, तो यहां दुर्लभ की अधनंगी लाश मिली.

पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट के मुताबिक, दुर्लभ को 30 से ज्यादा बार चाकू से गोदा गया था. दुर्लभ की मौत के बाद उसकी अंतिम यात्रा सोशल मीडिया पर एक इवेंट की शक्ल ले चुकी थी. जो लोग अबतक दुर्लभ से मिले भी नहीं थे, वो उसकी अंतिम यात्रा में शामिल हुए. सोशल हैंडल्स से अंतिम यात्रा का लाइव किया गया. सोशल मीडिया पर दुर्लभ का वजन कुछ इतना बढ़ा दिया गया कि उसकी असली इमेज ही छिप गई. 

उज्जैन के जीवाजीगंज थाने के अधीक्षक गगन बादल कहते हैं,

"वो एक सामान्य अपराधी था. आप उस पर लगे मुकदमे देख लीजिए. ज्यादातर चाकूबाजी और मारपीट के हैं. लेकिन सोशल मीडियो ने उसे गैंगस्टर बना दिया."

कैसे बना ‘कुख्यात’?

इन सबके बीच एक ज़रूरी सवाल. जो आपके मन में भी आ रहा होगा. दुर्लभ कश्यप के साथ ‘कुख्यात’ जुड़ा कैसे? साल 2001 में पैदा हुए दुर्लभ का बचपन बहुत अच्छे माहौल में नहीं बीता. दुर्लभ के पिता मनोज कश्यप और मां के बीच संबंध ठीक नहीं थे. मां-बाप दोनों एक दूसरे से अलग रहते थे. दुर्लभ अपनी मां के साथ रहता था. उज्जैन के एक नामी स्कूल में पढ़ रहा दुर्लभ दसवीं तक आते-आते नई राह की खोज में जुट गया. नतीजा ये हुआ कि उसका पढ़ाई में मन नहीं लगता. 10वीं में फेल हो गया. 

साल था 2016. उज्जैन में सिंहस्थ का आयोजन था. यहीं से दुर्लभ का उभार शुरू हुआ. उज्जैन के फ्रीगंज से हर साल 26 जनवरी को दुपहिया वाहन रैली निकाली जाती है. दुर्लभ भी इस रैली में शामिल हुआ था. डीजे, खाने-पीने के इंतजाम की जिम्मेदारी दुर्लभ पर थी. गणतंत्र दिवस की शुभकामना वाले पोस्टर भी छपवाए गए थे, जिसमें दुर्लभ की फोटो थी. पॉपुलैरिटी के बीच एक सनक जिंदा हो रही थी. स्थानीय बदमाशों में अलग दिखने की. दुर्लभ ने हर-छोटे बड़े बदमाश से मेल-जोल बढ़ाना शुरू कर दिया था. मुलाकात हुई हेमंत उर्फ बोखला से. फिर दुर्लभ अपराध के रास्ते पर चल पड़ा.

फोटो खिंचवाने का शौकीन था दुर्लभ (फोटो - आजतक)

फरवरी 2017 में दुर्लभ पर पहली बार पुलिस ने मामला दर्ज किया था. तब दुर्लभ ने अपने साथियों के साथ मिलकर 18 साल के एक लड़के पर चाकू से हमला किया था. इस घटना में सामने वाले लड़के को कोई खास चोट नहीं आई थी. पुलिस के मुताबिक, उज्जैन का दानी गेट इलाका डागर और टाक परिवार के बीच दबदबे की लड़ाई का गवाह रहा है. इस लड़ाई की मुख्य वजह है उज्जैन में कार्तिक मेले में उठने वाला पार्किंग का ठेका. हेमंत बोखला के जरिए दुर्लभ डागर परिवार के करीबी राहुल किलोसिया के कॉन्टैक्ट में आया था. किलोसिया को अपना कारोबार चलाने के लिए लड़कों की जरूरत थी. दुर्लभ और उसके साथियों को पनाह दी जाने लगी. किलोसिया ने उज्जैन के बाहरी इलाके में मौजूद एक फार्म हाउस को दुर्लभ और उसके साथियों के खोल दिया था. गैंग के लड़के यहां आते और शराब-गांजे के नशे में डूब जाते. बदले में ये लड़के किसी भी वारदात को अंजाम देने के लिए तैयार रहते थे.

दुर्लभ पर जनवरी 2018 में पहली बार हत्या का मुकदमा हुआ था. 11-12 जनवरी की दरमियानी रात दुर्लभ और उसके साथियों का आमना-सामना टाक परिवार से जुड़े कुछ लड़कों से हुआ. कई घायल हुए. दोनों गुट अपने-अपने साथियों को लेकर उज्जैन के सिविल अस्पताल पहुंचे. यहां फिर से दोनों गैंग आपस में टकरा गए. दुर्लभ गैंग के लड़कों ने अर्पित उर्फ कान्हा पर चाकू से हमला किया. 13 जनवरी को उसकी मौत हो गई. इस मामले में दुर्लभ और उसके साथियों को आरोपी बनाया गया. दुर्लभ और उसका साथी राजदीप उस वक्त नाबालिग थे. जिसकी वजह से उन्हें उज्जैन के बाल सुधार गृह भेज दिया गया. चार महीने काटने के बाद दोनों को इस केस में जमानत मिल गई. दुर्लभ का साथी रह चुका एक लड़का बताता है,

“दुर्लभ को फोटो खिंचवाने का बहुत शौक था. वह उज्जैन के अलग-अलग पेशेवर फोटोग्राफर्स से अपनी फोटो खिंचवाता था.”

दुर्लभ और उसके साथी दानी गेट इलाके में उस जगह बैठा करते थे, जहां दाह-संस्कार किया जाता था. दाह-संस्कार करने वाले कुछ लोग काला पंछा, यानी गमछा कंधे पर डाला करते थे. वजनी दिखने के लिए इस गैंग के लोगों ने भी गमछा डालना शुरू किया. पंछा और टीका दुर्लभ गैंग की पहचान बन गया.

दुर्लभ कश्यप ज़िंदा है?

20 साल की उम्र और 11 मुकदमों वाला दुर्लभ कश्यप गैंगवॉर में मारा गया. क्या वाकई वो मर चुका है? या कहीं जिंदा है? अगर नहीं, तो फिर उसके नाम पर कत्ल क्यों हो रहे हैं? क्यों फेसबुक से वो अबतक लापता नहीं हुआ?

मध्य प्रदेश के सागर में 60 साल के शिवकुमार दुबे, 57 साल के कल्याण लोधी, मंगल अहिरवार की सिर कुचलकर हत्या की गई. अगले दिन सोनू वर्मा नाम के युवक का भी मर्डर हो गया. एक बात कॉमन थी. ये सभी चौकीदार थे. कत्ल में एक नाम खुला. 19 साल के शिव प्रसाद धुर्वे का. उसे भोपाल के कोह-ए-फिजा इलाके के बस स्टैंड से अरेस्ट किया गया. शिव प्रसाद धुर्वे ने जो नाम लिया वो सुन पुलिस चौंक गई. उसने बताया, 'दुर्लभ कश्यप की तरह मशहूर होना चाहता था'.

गिरफ्तारी के दौरान धुर्वे पुलिस से हंसते हुए बोला,

‘एक और को निपटा दिया. काम के वक्त सोना मुझे पसंद नहीं. जितने भी चौकीदारों की हत्या की गई वे सब काम के वक्त सो रहे थे.’

दुर्लभ गैंग का एक और सदस्य. चयन बोहरा. 14 जुलाई 2022 को इंस्टाग्राम पर लाइव देखा गया. चयन और उसके साथी पार्टी कर रहे थे. इस पार्टी से दो रोज पहले ही चयन और उसके एक साथी ने इंदौर में अनिल दीक्षित नाम के एक हिस्ट्रीशीटर पर गोलियां दागी थीं. जिस रोज चयन इंस्टाग्राम पर लाइव था, उसी दिन अनिल की मौत हुई. चयन ने इस वारदात को अंजाम देने से पहले इंस्टाग्राम पर ऐलान तक किया था. पुलिस ने इन पर 30 हजार रुपये का इनाम घोषित किया. दोनों को 10 दिनों के भीतर अरेस्ट किया गया. पुलिस दावा करती है कि दुर्लभ कश्यप मर चुका है, लेकिन कई राज्यों में उसके नाम की मौजूदगी सुनाई देती है.

आज भी सुदूर हत्या की घटनाओं में दुर्लभ का नाम आता है (फोटो - आजतक)

उज्जैन से 500 किलोमीटर दूर महाराष्ट्र का औरंगाबाद. फरवरी 2022 पुलिस को शिकायत मिली कि शुभम नाम के युवक पर हमला किया गया है. शुभम के पिता मनगटे अपने घर से कुछ ही दूरी पर किराने की दुकान चलाते हैं. 6 फरवरी, रात का वक्त. कुछ लड़कों ने मनगटे से सिगरेट देने को कहा. मनगटे बोले़ कि आधी रात का वक्त हो गया है और अब दुकान बंद कर रहे हैं. ये सुन सिगरेट मांग रहे युवकों ने लोहे की रॉड और धारदार हथियार से मनगटे और उनके 22 साल के बेटे शुभम पर लोहे की रॉड से हमला कर दिया. शुभम पर हमला करने वाले लड़कों ने खुद को दुर्लभ कश्यप गैंग का बताया. जानकारी इस बात की भी मिली की इस गैंग के लोग दुकानदारों से मुफ्त सामान लेते हैं और आने-जाने वाले लोगों को परेशान करते हैं. दिलचस्प यह है कि दुर्लभ अपनी जिंदगी में कभी औरंगाबाद नहीं आया. फिर ये गैंग खुद को दुर्लभ के साथ कैसे जोड़ रहे हैं.

वहीं, एसपी उज्जैन सत्येंद्र कुमार शुक्ला कहते हैं,

“दुर्लभ कश्यप गैंग अब खत्म हो चुकी है. मेरा नौजवान पीढ़ी से बस यही कहना है कि अगर वह सोशल मीडिया के जरिए दुर्लभ से प्रभावित हैं तो उसका अंजाम भी देख लें.”

 

(ये स्टोरी इंडिया टुडे के रिपोर्टर विनय सुल्तान ने लिखी है.)

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