शिवराज सिंह चौहान. एक नेता से ज्यादा एक शोमैन साबित हुए हैं, जो हर मौके को इवेंट में तब्दील करना बखूबी जानते हैं.
सीरीज़ की
पिछली कड़ी
में आपने पढ़ा था कि कैसे संघ और भाजपा ने शिवराज को नेतृत्व के लिए तैयार किया और कैसे शिवराज हर मौके को भुनाकर सीएम बने. इस कड़ी में बात उस शिवराज सिंह चौहान की, जो बाबूलाल गौर के जाने के बाद कुर्सी पर बैठा, तो फिर मोदी की नाराज़गी से लेकर भीषण भ्रष्टाचार के आरोप और किसानों पर चली गोलियां जैसे क्राइसिस को मैनेज करता रहा और अपनी कुर्सी पर जमा रहा.
शिवराज सिंह चौहान और कितने दिन तक भोपाल रह पाएंगे? । Part 2
भोपाल की लिंक रोड पर चौहत्तर बंगले हैं. इन बंगलों में खास इनकी संख्या नहीं है. और खास ये भी नहीं है कि यहां मध्यप्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री रहते हैं. खास है यहां का एक बी टाइप सरकारी बंगला. इसमें कभी दिग्विजय के सबसे करीबी सत्यनारायण शर्मा रहते थे. लेकिन एक नेता था जो लगातार जुगत में लगा था कि ये उसे अलॉट हो जाए. दिग्विजय सिंह,
जो उन दिनों मुख्यमंत्री थे,
तक बात पहुंची. और दिग्विजय ने बंगला दे दिया.
शिवराज एक बी टाइप बंगला चाहते थे और दिग्विजय सिंह ने वो बंगला शिवराज को दे दिया.
राजनीति में सौजन्य की मिसाल. लेकिन शायद दिग्विजय वो बंग्ला कभी न देते,
अगर उन्हें ये मालूम होता कि ये नेता उनका मध्यप्रदेश में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड तोड़ देगा. और फिर ये कहेगा कि ये बंगला शुभ है. दिग्विजय के दिलवाए बंगले को शुभ बताने वाले इस नेता का नाम था शिवराज सिंह चौहान. अंक – 1 पैदल चलते हुए चुनाव जीत लिया
शिवराज मुख्यमंत्री बन गए. विधायक बनने के लिए उन्हें बुधनी सीट से चुनाव लड़वाया गया.
29
नवंबर, 2005
को सीएम बनने के बाद शिवराज को विधायकी चाहिए थी. इसके लिए सीट चुनी गई बुधनी. जिसे शिवराज ने 14
साल पहले सांसदी के लिए छोड़ा था. यहां से विधायक राजेंद्र सिंह ने इस्तीफा दिया लेकिन कांग्रेस ने कसम खा ली कि शिवराज को जीतने नहीं देना है. चुनाव आयोग में शिकायत पर शिकायत होने लगी. कलेक्टर तक को शिवराज के साथ एक तस्वीर आने के बाद हटा दिया गया और तारीख आगे बढ़ा दी गई. बढ़ी हुई तारीख के कांग्रेस के नेता भोपाल जाकर बयान देने लगे. लेकिन शिवराज ने विधानसभा में पदयात्राएं निकालना शुरू कर दीं. चुनाव आयोग के पर्यवेक्षक इस यात्रा में पीछे-पीछे चलते. लोग जानते थे कि वो विधायक नहीं मुख्यमंत्री चुन रहे हैं. तो शिवराज आसानी से जीत गए.अंक – 2 एक वॉरंट उमा को खा गया था, एक शिवराज के लिए आया
एक वॉरंट की वजह से उमा भारती की कुर्सी चली गई थी. शिवराज के लिए भी एक वॉरंट आया था, लेकिन उनकी कुर्सी बच गई.
शिवराज सीएम बनने की खुशी पूरी तरह पचा भी नहीं पाए थे कि उनके खिलाफ 1997
के एक मामले में रायसेन की एक कोर्ट ने वॉरंट निकाल दिया. ऐसा ही एक वॉरंट उमा को खा गया था. सूबे के अधिकारियों की सांस अटक गई. कोर्ट में अर्जी दी गई कि लोकहित में मामला खारिज कर दिया जाए. संकट टले उससे पहले सरकार की याचिका को हाईकोर्ट में चुनौती मिल गई. हाईकोर्ट ने हालांकि इस चुनौती को खारिज कर दिया और शिवराज पर से गिरफ्तारी का संकट हटा.
शिवराज ने खुद को मध्यप्रदेश की राजनीति का सलमान खान बना लिया है.
इन दो शुरुआती चुनौतियों के बाद शिवराज वो जमे कि उनके लिए कद्दावर और दिग्गज जैसे उपमाएं काम नहीं करतीं. हमारे लिए शिवराज मध्यप्रदेश की राजनीति के सलमान हैं. जैसे असल सलमान नॉन एक्टिंग एक्टिंग स्टाइल के पीछे एक चतुर कलाकार और व्यवसायी हैं. वैसे ही शिवराज नॉन-पलिटिकल स्टाइल में राजनीति करने वाले नेता हैं. चुनाव सभा,
अखबार या टेलिविज़न. कहीं से भी हमें उस शातिर राजनेता की थाह नहीं मिलती,
जिसे एक कदम पीछे खींचो,
तो वो ढाई चाल आगे बढ़ जाता है. अंक - 3 शोमैन शिवराज
मुख्यमंत्री शिवराज शोमैन शिवराज बन गए और अपने तीन कार्यकाल इवेंट मोड में पूरे किए.
पिछले एपिसोड में हमने आपको बताया था कि शिवराज भारी कड़वाहट के बीच सीएम की कुर्सी तक पहुंचे. इसी दिक्कत को दूर करने के लिए मध्यप्रदेश भाजपा ने शिवराज के पहले शपथग्रहण को एक विशाल ईवेंट बनाया था. केंद्र से लेकर राज्य स्तर के सारे बड़े नाम भोपाल बुलाए गए. कोई खेमा हो,
हर कोई एक तस्वीर में. संदेश –
भाजपा संकट पीछे छोड़ चुकी है.शिवराज ने ये सूत्र पकड़ लिया. उन्होंने अपने तीनों कार्यकालों में सरकार ईवेंट मोड में चलाई. यात्राएं - सभाएं - कार्यक्रम. शिवराज कमोबेश हमेशा किसी बड़ी मुहिम के लिए प्रदेश घूमते रहे हैं. नर्मदा सेवा और जनआशीर्वाद हाल के उदाहरण हैं. जब शिवराज यात्रा नहीं कर रहे होते तो रोड शो कर रहे होते हैं. मध्यप्रदेश में लगभग हर विधानसभा में लोगों ने शिवराज को अपनी आंखों से देखा है. उनके जनता दरबार में अर्जी दी है. जनता और सीएम के बीच सीधा राबता.
कुंभ का तिरपाल गिरा तो शिवराज खुद पोल पर चढ़ गए और तिरपाल बांधी.
उज्जैन में लगने वाला कुंभ मध्यप्रदेश में हर मुख्यमंत्री के लिए परीक्षा होता है. कहते हैं कि जो सीएम कुंभ करवाता है,
उसकी कुर्सी नहीं बचती. 2016
में उज्जैन में सिंहस्थ हुआ. शिवराज ने तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ी. तूफान में पंडाल गिरा तो तिरपाल बांधने खुद सीढ़ी पर चढ़ गए.अंक 4 – कौटिल्य शिवराज
बाबूलाल गौर को शिवराज ने अपने मंत्रिमंडल में पद से लेकर विधानसभा अध्यक्ष और पार्टी अध्यक्ष तक बनने का ऑफर दिया. राज्यसभा में भी भेजने की बात हुई थी.
शिवराज के मध्यप्रदेश आने और टिकने में जितने लोगों की किस्मत पर ग्रहण लगा है वो लिस्ट अखबार जितनी लंबी हो सकती है. फिर शिवराज ने कइयों को रास्ते से भी हटाया. लेकिन इसके लिए उन्होंने कभी वो नहीं किया जिसे राजनीतिक वध की संज्ञा दी जाए. बाबूलाल गौर से जाने को कहा गया तो साथ में ये भी कहा गया कि जिसपर हाथ रख देंगे वो पद आपका. विधानसभा अध्यक्ष,
पार्टी अध्यक्ष या फिर कैबिनेट में वरिष्ठ मंत्री. राज्यसभा बोलें तो राज्यसभा.लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि शिवराज सिर्फ देना जानते हैं. जब कभी ये हवा चलती कि उमा भारती की '
वापसी'
हो सकती है,
शिवराज दिल्ली ये बात पहुंचा देते कि उमा के आते ही भानुमति का कुनबा फिर बिखर जाएगा. फिर खुद कुछ ऐसा करते कि पूरा नैरेटिव ही बदल जाता. एक बार शिवराज ने कह दिया कि भूमाफिया उन्हें हटाने की साज़िश कर रहे हैं. इससे केंद्र में भी शिवराज के पक्ष में माहौल बना रहता और सूबे में भी लोगों का ध्यान उमा से हटकर शिवराज पर आ जाता.
शिवराज सिंह चौहान से बड़ी आसानी से कैलाश विजयवर्गीय और सुमित्रा महाजन को अपने रास्ते से हटा दिया.
इसी तरह कैलाश विजयवर्गीय मुसीबत बने और अड़ भी गए तो तुरंत शहीद नहीं किए गए. पहले गोपाल भार्गव इंदौर के प्रभारी बनाए गए. उन्होंने जाते ही सुमित्रा महाजन और कैलाश विजयवर्गीय की लड़ाई पर तंज कस दिया-
'अब न ताई की चलेगी न भाई की. अब चलेगी भाजपाई की.'
विजयवर्गीय आखिर दिल्ली भेज दिए गए. बाद में राष्ट्रीय महासचिव का पद भी मिल गया. इस नीति से शिवराज के विरोधियों को पलटकर वार करने का न मौका मिलता है,
न बहाना.अंक – 5 नेता शिवराज 
शिवराज ने हर वर्ग के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है.
लालू बिहार में माई लेकर आए –
मुसलमानों और यादवों के नेता बने. लोहिया ने - सौ में पिछड़ा पावे साठ –
कहकर पिछड़ों को लामबंद किया. लेकिन शिवराज किसी एक वर्ग के नेता नहीं हुए. एक-एक व्यक्ति को उपकृत किया. उनकी योजनाएं वोटर और मुख्यमंत्री के बीच सीधी वफादारी पैदा करती हैं. मानसरोवर यात्रा के लिए आधा किराया,
तीर्थदर्शन के लिए टिकट या फिर लाड़ली लक्ष्मी. फिर शिवराज ने लगातार औरतों को ध्यान में रखकर काम किए हैं. खुद को सभी औरतों का भाई कहते हैं. और जननी सुरक्षा योजना के साथ-साथ मुख्यमंत्री कन्यादान / निकाह योजना चला देते हैं.अपना टार्गेट सेट कर चुके शिवराज को विशुद्ध नेतागिरी में भी महारत हासिल है. बाढ़ आती है तो वो बाढ़ के पानी में घुसते हैं. हो सकता है कि ऐसे में उनकी वो तस्वीर खिंच जाए जिसमें पुलिस कॉन्स्टेबल उन्हें गोद में लिए हुए हों,
लेकिन लोग ये देखते है कि सीएम साहब कीचड़ में खड़े हैं,
हवाई दौरा नहीं कर रहे. सरकार को कोसने वाला भी शिवराज को नहीं कोस पाता.
बाढ़ के दौरान शिवराज सिंह चौहान की एक तस्वीर.
मंदसौर में आंदोलन कर रहे किसानों पर गोली चली तो शिवराज ने खुद ही वो कर लिया जो विपक्ष को करना चाहिए था. उपवास पर बैठ गए. सरकार के मंत्री उन्हें उपवास तोड़ने के लिए मनाने लगे. फौरी तौर पर इसने पुलिस फायरिंग पर मचे शोर को दबा ही दिया था. कोलाहल खत्म होने के बाद शिवराज के पास दौरे-सभा-घोषणाओं के लिए पर्याप्त समय और संयम था. और यही उन्होंने किया भी.अंक 6 – एक मैनेजर दिग्विजय थे, एक शिवराज हैं
शिवराज सिंह की पत्नी साधना सिंह पर आरोप लगे कि उन्होंने डंपर लगवा लिए हैं.
शिवराज की पत्नी साधना सिंह के बारे में कहा जाता है कि वो सीएम आवास में लगने वाली लौकियों का भी हिसाब रखती हैं. लेकिन शिवराज पर भ्रष्टाचार का पहला इल्ज़ाम वाया साधना ही लगा. इल्ज़ाम कि साधना ने चार डंपर खरीदकर रीवा के जेपी सीमेंट प्लांट में लगा दिए. शिवराज और साधना,
दोनों पर इस मामले में कोई आंच नहीं आई. लेकिन इसमें मचे हल्ले ने शिवराज को पहली बार प्रेस के प्रति सतर्क किया. शिवराज ने इसके बाद दो काम किए –
राष्ट्रीय मीडिया से दूरी कायम की. और भोपाल के मीडिया को धीरे-धीरे अपने काबू में किया. पत्रकारों को अपना बना लिया. इसीलिए मध्यप्रदेश सरकार को लेकर नकारात्मक रिपोर्ट काफी छन-छनकर ही बाहर आती हैं.
शिवराज का सबसे ज्यादा नुकसान व्यापमं ने किया है.
इसका सबसे बड़ा फायदा शिवराज को मिला उनके राज में हुए सबसे बड़े घोटाले में –
व्यापमं. मध्यप्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल सूबे की लगभग हर परीक्षा करवाता था. मेडिकल एंट्रेंस से लेकर इंजीनियरिंग तक सब. इसमें पेपर देने कैंडिडेट की जगह दूसरे लोगों को बैठाने का इंतेज़ाम होता था. साथ में चीटिंग का भी. क्योंकि जो एग्ज़ाम देने आता,
वो दूसरों को अपना पेपर दिखाता. ये सब संभव होता रोलनंबर में सेटिंग से. तो जब मामला सामने आया तो कोई शुबहा नहीं था कि इसमें पूरा तंत्र ही शामिल है. लेकिन जब एक एक्सेल शीट मिली जिसमें कथित तौर पर पास कराए गए कैंडिडेट्स के नाम के आगे CM
लिखा था. कुछ दिन बाद कहा गया कि एक्सेल शीट बदल गई और सीएम के साथ-साथ उमा भारती समेत दीगर नेताओं के नाम भी आ गए.
व्यापमं में गवर्नर रामनरेश यादव के बेटे और उनके ओएसडी का भी नाम आ गया था.
व्यापमं दब जाने के हिसाब से बहुत बड़ी चीज़ थी. गवर्नर रामनरेश यादव के ओएसडी और बेटे तक का नाम उठल गया था. हारकर शिवराज ने सीबीआई जांच का आदेश दिया. बावजूद इसके शिवराज अपनी कुर्सी और अपनी छवि दोनों बचा ले गए. व्यापमं पर युवाओं का गुस्सा है और वो शिवराज को पूरी तरह बरी भी नहीं मानते. लेकिन तब शिवराज के काम आती है वो गुडविल जो उन्होंने इतने सालों में कमाई है. लैपटॉप और तरह-तरह की स्कॉलरशिप बांटकर.अंक 7 – मध्यप्रदेश का मोदी जो टोपी लगा लेता है
शिवराज रोजा इफ्तार में भी शामिल होते हैं. टोपी लगाने से भी परहेज नहीं करते हैं.
शिवराज की स्वीकार्यता के बारे में एक बात जो मार्के की है,
वो ये कि वो संघ की नर्सरी से आए और भाजपा के समर्पित नेता हुए. लेकिन उन्होंने त्रिपुंड लगाने के चक्कर में टोपी पहनने से इनकार नहीं किया. खुशी-खुशी तस्वीर भी खिंचा ली. क्रिसमस पर सीएम आवास में हर साल पार्टी होती है. धर्म के मामले में शिवराज वहीं खड़े हुए जहां अटल खड़े होते थे. झुकाव किधर है इसमें संशय नहीं. लेकिन दूसरों को चुभ जाए ऐसा भी कोई काम नहीं. 
भोजशाला को उमा भारती ने 2003 में राजनैतिक रंग दे दिया था. शिवराज इससे भी बखूबी निबटे.
इसका सबसे बड़ा सबूत है मध्यप्रदेश का अयोध्या –
भोजशाला. धार ज़िले की वो जगह जहां अलग-अलग वक्त से अवशेष मिले हैं. इनका संबंध जैन और हिंदू मान्यताओं से भी है और इस्लाम से भी. तो मुसलमानों के लिए ये जगह कमाल मौला मस्जिद है. 1901
में ये बात उठी कि ये दरअसल परमार राजा भोज के वक्त बना एक मंदिर है और यहां रखी वाग्देवी सरस्वाती की मूर्ति चोरी से लंदन भेज दी गई है. अब शुरू हुआ झगड़ा. संघ के लिए भोजशाला पूरे मालवा में हिंदुओं को लामबंद करने वाला मुद्दा है. दिसंबर 2003
में उमा भारती ने भोजशाला में अखंड ज्योति स्थापित की. इसने मामले को राजनीतिक बना दिया.
शिवराज से संघ नाराज हुआ, तो उन्होंने चित्रकूट के लिए राम वन गमन पथ का ऐलान कर दिया और फिर हो गया परफेक्ट बैलेंस.
भोजशाला में व्यवस्था थी कि शुक्रवार को मुसलमान नमाज़ पढ़ें और मंगल को हिंदू पूजा कर लें. बात फंसती है उस साल,
जब बसंत पंचमी शुक्रवार को पड़ जाती है. बसंत पंचमी को हिंदू संगठन दिन भर पूजा करने की ज़िद करते हैं. दिनभर पूजा मतलब मुसलमान नमाज़ अदा नहीं कर पाएंगे. शिवराज की सदारत में दो बार - 2006
और 2013
में ऐसी नौबत आई. दोनों बार शिवराज ने पूरे सूबे की पुलिस मालवा बुलाकर नमाज़ करवाई. क्या संघ नाराज़ हुआ?
हां. लेकिन फिर यही शिवराज ही तो हैं जो चित्रकूट जाकर ऐलान कर देते हैं कि राम वन गमन पथ बनेगा. पर्फेक्ट बैलेंस.अंक 8 – एक स्कीम की कीमत तुम क्या जानो शिवराज बाबू
भावांतर को लागू शिवराज ने किया था, लेकिन अब वो खुद ही इसका नाम नहीं लेते हैं.
शिवराज ने अपना राजपाट ज़्यादातर अधिकारियों के मार्फत चलाया है. तो उनकी राजनीतिक जीत में बाबुओं की चलाई स्कीम का बड़ा योगदान रहता है. लाड़ली लक्ष्मी. तीर्थ दर्शन. अन्नपूर्णा. लेकिन हाल के दिनों में शिवराज ने योजनाओं को चलाने से ज़्यादा भुगता है. भावांतर का नाम अब खुद शिवराज नहीं लेते. और संबल इतनी देर से आई है कि वो गेम चेंजर बनेगी,
इसपर सवाल हैं. किसान आज भाजपा से जितने नाराज़ हैं,
पहले कभी नहीं थे. और शिवराज के पास उन्हें देने को अब ज़्यादा चीज़ें बची नहीं हैं.
शिवराज सिंह चौहान के MP से दिल्ली जाने और लौटकर मुख्यमंत्री बनने की कहानी। Part 1