पिछले हफ्ते विच-हंटिंग के दो केस और आए. अजमेर की कन्या देवी (40) की मौत और 80 साल की औरत को मिली यातनाएं विच-हंटिंग के खिलाफ़ बने कानून का मज़ाक उड़ाती हैं. राजस्थान में 2015 में विच-हंटिंग एक्ट अमल में आया. इससे पहले झारखंड, बिहार, छत्तीसगढ़ और ओडिशा में ये कानून चल रहा है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अप्रैल, 2015 में ये कानून आया और सितम्बर 2016 तक 12 जिलों से 50 केस फाइल हुए. लेकिन अब तक एक में भी दोष सिद्ध नहीं हुआ और इसलिए किसी को सजा भी नहीं हुई.
कानून तो बहुत कुछ कहता है
इस एक्ट के तहत दोषी को एक से 5 साल की सज़ा हो सकती है और 50 हज़ार जुर्माना हो सकता है. साथ ही किसी औरत को चुड़ैल घोषित करने या ऐसी चीज़ खिलाने-पिलाने पर जो खाने लायक न हो या नग्न घुमाने या उसके शरीर को पेंट करने या इससे जुड़ा कोई काम करने पर तीन से सात साल की सज़ा मिल सकती है. अगर पीड़ित महिला की अप्राकृतिक तौर पर मौत हो जाए तो दोषी को सात साल या उम्र कैद या एक लाख जुर्माना या दोनों हो सकती है. इसके अलावा 'चुड़ैलों के डॉक्टरों' जिन्हें स्थानीय लोग भोपा या तांत्रिक कहते हैं, उनके लिए भी सज़ा तय की गई है.
कई मामलों में औरतों की जान चली जाती है.
कहां से आते हैं ज़्यादातर मामले
राजस्थान में ज़्यादातर मामले दक्षिणी और आदिवासी इलाकों से आ रहे हैं. 50 में से 39 केस दक्षिणी राजस्थान के हैं. भीलवाड़ा के 18, डूंगरपुर के 10 और उदयपुर के 6 मामले पता चले हैं. इनमें वो जिले शामिल हैं जो पढ़ाई-लिखाई के मामले में सबसे ज़्यादा पिछड़े हैं. भीलवाड़ा के एसपी प्रदीप मोहन मानते हैं कि विच-हंटिंग के लिए बना कानून बहुत राहत नहीं दे पा रहा है. इंडियन एक्सप्रेस को दिए बयान में वो कहते हैं,'ये इस इलाके के सामाजिक समस्या है. कानून को सही तरह से लागू करने की ज़िम्मेदारी किसी एक की नहीं है. जब तक इस मामले के बारे में लोगों को ठीक तरह से जानकारी नहीं होगी, तब तक इस कानून का कोई मतलब नहीं होगा.'
राजस्थान में विच-हंटिंग के लिए 2015 में कानून आया था.
सोशल एक्टिविस्ट भी बोले हैं
सोशल एक्टिविस्टों का मानना है कि कानून की सीमित जानकारी की वजह से इसका मकसद पूरा नहीं हो पा रहा है. भीलवाड़ा में विच-हंटिंग पर काम कर रही तारा अाहलूवालिया का कहना है,'ये एक सामाजिक दिक्कत है, सिर्फ इसलिए इससे डरा नहीं जा सकता. ऐसे तो मर्डर, रेप और दहेज़ भी समाज से जुड़ी दिक्कतें हैं. कानून मज़बूत है मगर उसे अमल में लाने में कोताही हो रही है. दिक्कत ये है कि लोगों के बीच जागरूकता ही नहीं है. प्रशासन और पुलिस को ये देखना चाहिए कि लोगों को जानकारी हो. जांच करने वाली एजेंसियां भी इन मामलों को गंभीरता से नहीं लेतीं. यही वजह है कि किसी आरोपी का दोष सिद्ध नहीं होता, जबकि मामले कई सारे आते हैं.'
धर्म से जुड़ा है मामला
भीलवाड़ा के सोशल एक्टिविस्ट भंवर मेघवंशी ने इन मामलों को बेहद करीब से देखा है. उनका कहना है कि पुलिस अब ही विच-हंटिंग और उससे जुड़े कानून को समझती नहीं है. केस दर्ज भी होते हैं तो धाराएं इस कानून के तहत नहीं लगाई जातीं. जांच में अक्सर पैसा चलता है. लोगों की संवेदना शून्य है. आरोपी पकड़े जाते हैं और जमानत पर छूट जाते हैं. सबसे ज़्यादा मामले शनिवार-रविवार को सामने आते हैं क्योंकि इन दिनों को धर्म से जोड़ दिया जाता है और इन्हीं दिनों में औरतों के 'भूत' भगाए जाते हैं.
औरतों को जलते अंगारों पर चलाया जाता है.
कई अड्डे हैं इसके
धर्म के नाम पर कुछ भी कर दो. कोई सवाल नहीं उठेगा. ईश्वरीय शक्ति का आदेश कहकर किसी की जान तक लेने का लाइसेंस मिल जाता है लोगों को. राजस्थान में ऐसे कई मंदिर और दरगाह हैं जहां औरतों के 'भूत' पकड़े और भगाए जाते हैं. और इस 'नेक' काम में कई औरतों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है. भंवर ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि अजमेर के केकड़ी थाना क्षेत्र के कादेड़ा गांव में 2 अगस्त 2017 की रात 11 बजे से सुबह 4 बजे तक एक औरत के साथ हैवानियत हुई. ये औरत विधवा थी. उसे डायन बताकर नाली का गन्दा पानी पिलाया गया, जबरन मानव मल खिलाया गया, उसके हाथ तोड़ दिए, एक आंख फोड़ दी और जलते हुए अंगारे उसके हाथों पर रखे गए. अंगारों पर चलाया. बुरी तरह मारा-पीटा गया. इसके बाद जान बच जाती तो हैरत होती. लेकिन उस औरत ने 3 अगस्त की शाम तक़रीबन 7 बजे दम तोड़ ही दिया और इस तरह उसका भूत भाग गया.नहाने के बाद पाप धुल गए
5 अगस्त को खाप पंचायत के पंच पटेलों ने इस 'नेक' काम को परिवार का आपसी मामला बताया. दोषियों को पुष्कर स्नान करने और जानवरों को चारा डालने की सजा देकर 'पाप मुक्त' कर दिया. लेकिन हर बार की तरह यहां कहानी खत्म नहीं हुई. उस औरत के बच्चों ने केस दर्ज करा दिया. मीडिया कवरेज मिली तो केस फाइल हो गया. जब दोषियों से पूछताछ हुई तो उन्होंने कहा कि ये सब तो 'चलानिया भैरोनाथ' ने कराया है. चलानिया भैरोनाथ इस तरह के आदेश देने का अड्डा बन गया है. भीलवाड़ा में ही चलानिया गांव में है चलानिया भैरोनाथ का मंदिर. यहां तक पहुंचना अपने आप में एक यातना है. यहां शराब का भोग चढ़ाया जाता है और उसी का प्रसाद बंटता है. लोग यहां का नाम लेकर किसी भी औरत में भूत देख लेते हैं और फिर उसका भूत जान लेकर छुड़ा दिया जाता है. भंवर बताते हैं कि राजस्थान में ऐसे कई अड्डे हैं. इनमें मेहंदीपुर का बालाजी मंदिर, भीलवाड़ा का पंचा रानी मंदिर और चलानिया भैरोनाथ, चित्तौड़ की दरगाह जैसी धार्मिक जगहें शामिल हैं.
चलानिया भैरोनाथ मंदिर.
मामले हैं, केस है, जांच एजेंसियां हैं, पुलिस-प्रशासन है, कानून है, आरोपी हैं मगर दोषी कोई नहीं है. एक औरत को उसके रिश्तेदार ही चुड़ैल कह-कहकर पीटते हैं, बाल नोचते हैं, गंदगी खिलाते हैं और आखिरकार मार डालते हैं. उसके बच्चे अनाथ हो जाते हैं, दाने-दाने को तरसते हैं लेकिन इतने पर भी दोषी कोई नहीं मिलता. एक औरत को कई दिन भूखा रखा जाता है, उसके मुंह में ऊंटपंटाग चीज़ें ठूंसी जाती हैं, उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाता है, ज़िंदगी बर्बाद हो जाती है मगर दोषी कोई नहीं है. ये वैसी ही बात है कि 'नो वन किल्ड जेसिका'. यहां न जाने कितनी जेसिका और जमुना तबाह हो जाती हैं मगर दोषी कोई नहीं है. ऐसे झउआ भर के कानून बन जाएं और किताबों में दफ़्न रहें तो क्या. किसका भला करने के लिए बनाए जाते हैं कानून? विच-हंटिंग की ऐसी खबरें हर बार परेशान करती हैं.
सबसे ज़्यादा जो बात परेशान करती है, वो ये कि हर बार ये 'भूत-प्रेत' सिर्फ औरतों को क्यों पकड़ते हैं. कभी किसी भूत को कोई आदमी क्यों पसंद नहीं आता. क्या ये भी पुरुषों में बचपन से मौजूद 'समझदारी' का एक हिस्सा है. या ये भी हो सकता है कि औरतों को शिकार बनाना अब भी बाएं हाथ का खेल है. उनकी जान सस्ती है. उनकी तादाद इतनी ज़्यादा है कि उनके मरते रहने से कोई फर्क़ नहीं पड़ता. सवाल बहुत सारे हैं जिनके जवाब हम सबको देने हैं.
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