ये कभी-कभी होता है कि राहुल गांधी कोई ऐसा बयान दे दें, जो सोशल मीडिया पर वायरल हो जाए. पर राहुल गांधी ने ऐसा कर दिखाया अपने 'अरहर मोदी' से. ऐसा पिछली बार उनके सूट-बूट वाली सरकार के बयान पर हुआ था. पर राहुल जी माफ कीजिएगा. आपको थोड़ा सुधारना चाहेंगे. क्योंकि अगर कंपेरिटिवली माने तुलना करके देखें, तो राहुल को अरहर मोदी का नहीं चना-चना मोदी का नारा देना चाहिए था. इंडियन एक्सप्रेस के लिए ये लेख हरीश दामोदरन ने लिखा है. समझो कैसे?
उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय की ओर से अरहर का एवरेज खुदरा दाम - जिस पर ज्यादा से ज्यादा खरीद हो रही है - शुक्रवार को 140 रुपये था. ये पिछले साल इसी दिन को 110 रुपये था. यानी इसका रेट तबसे बढ़ा 27 परसेंट. हालांकि साल 2016 की शुरूआत के 160 रुपये के मुकाबले यह दाम कम है. इसके आगे ठीक होने के ही चांसेस हैं. उस वक्त भी ये बिहार इलेक्शन वगैरह के चलते बढ़े हुए थे. वक्त की असली चिंता अरहर नहीं, चना है. जो कि आज-कल 100 रुपये किलो बिक रहा है. ये पिछले साल के इसी वक्त के मुकाबले दो-तिहाई से ज्यादा महंगा हो चुका है. 2016 की शुरुआत में चना दाल का दाम 60 रुपये था. जो बढ़कर 100 रुपए तक पहुंच चुका है.
इस लेख के हिसाब से मॉनसून अच्छा होने के चलते अरहर के दाम बढ़ने की उम्मीद नहीं है. बढ़ते चना दामों को लेकर परेशान होने की जरूरत है. क्योंकि इसका यूज बेसन बनाने में होगा. बेसन को कंज्यूम करने वाले बहुत से हैं. पकौड़े, ढोकले और लड्डू बनाने वालों को भी इसकी जरूरत होती है. पानी केवल पौधे के उगने वाली स्टेज में ही प्रॉब्लम करता है. कानपुर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पल्स रिसर्च के डायरेक्टर नरेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि इस बार हो रही भारी बारिश से फसल को नुकसान नहीं होगा, बल्कि इसके मुकाबले पानी अच्छा मिलने से फसल और अच्छी होगी. यहां तक कि जब मध्य प्रदेश में भी बड़ी तादाद में सोयाबीन की जगह इस बार खेती हुई है तो इन सारी बातों से साफ है कि असली समस्या अरहर नहीं, बल्कि चना है.
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राहुल गांधी का 'अरहर मोदी' का नारा गलत था
अरहर से बड़ी चिंता है चना. 2016 की शुरुआत में चना दाल 60 रुपये थी. अब 100 रुपए तक पहुंच चुकी है.
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फोटो - thelallantop
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