इस फिल्म की रिलीज पर बैन लगाने के पक्ष में जो तर्क दिए जा रहे हैं, अगर उन्हें मान लिया जाए तो 60 फीसद से ज्यादा साहित्य, यहां तक कि सबसे महान माने जाने वाले भारतीय साहित्य को भी नहीं पढ़ा जा सकेगा.करणी सेना का पुराना राग: फिल्म तो रिलीज नहीं होने देंगे सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद करणी सेना ने कहा है कि वो 'पद्मावत' रिलीज नहीं होने देंगे. उनके मुताबिक, करणी सेना जो कर रही है वो अपने 'पुरखों' की इज्जत के लिए कर रही है. इसके लिए उन्हें जो करना पड़ा, करेंगे. सुप्रीम कोर्ट जाएंगे. राष्ट्रपति का दरवाजा खटखटाएंगे. किसी भी कीमत पर फिल्म रिलीज नहीं होने देंगे. जिन चार राज्यों ने फिल्म की रिलीज को बैन किया था, उनके सामने अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला है. ये सुकून की बात है. मजबूरी में ही सही, लेकिन सरकारों को कोर्ट के फैसले के साथ जाना होगा. और करणी सेना जैसों के साथ सख्ती दिखानी होगी. ऐसा पहले ही होना चाहिए था. चीजों का जो सिस्टम तय है, उसमें बैन की जरूरत ही नहीं पड़नी चाहिए थी. सरकार किसी 'गुंडागर्दी' करने वाले संगठन के दबाव में बैन लगा रही है, ये तो सुनकर ही कलंक टाइप लगता है.
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ भंसाली के वकील हरीश साल्वे, CJI दीपक मिश्रा और सरकारों की ओर से दलील दे रहे अडिशनल सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच कैसी बहस हुई, इसका नमूना पढ़िए:
हरीश साल्वे: वो लोग कह रहे हैं कि हमने इतिहास के साथ खिलवाड़ किया है.
CJI दीपक मिश्रा: उसकी बात छोड़िए
ASG तुषार मेहता: इतिहास के साथ छेड़छाड़ की जा सकती है. जैसे ये कि गांधी जी शराब पीते थे. ये इतिहास के साथ खिलवाड़ है, जिसकी इजाजत ये देश कभी नहीं देगा.
भंसाली के वकील हरीश साल्वे ने 'पद्मावत' फिल्म के निर्माताओं की ओर से दलील रखते हुए कहा:
अगर राज्य सरकारें किसी फिल्म पर बैन लगा रही हैं, तो वो देश के संघीय ढांचे को बर्बाद कर रही हैं. ये बहुत गंभीर मसला है. अगर किसी को किसी चीज से दिक्कत है, तो उसकी शिकायत सही जगह, सही तरीके से की जानी चाहिए. राज्य सरकार किसी फिल्म के विषय को नहीं बदल सकती. उसके साथ छेड़छाड़ नहीं कर सकती.

'पद्ममावती' के एक सीन में शाहिद कपूर और दीपिका पादुकोण.
फिल्म पर बैन लगाने का फैसला शर्मनाक था 'पद्मावत' (जो पहले 'पद्मावती' थी) शुरुआत से ही विवादों में थी. शूटिंग के समय पहले इसके सेट पर मारपीट हुई. फिर इसके कंटेंट से जुड़ी अफवाहों को लेकर हो-हल्ला मचा. इसके बाद लोगों को फिल्म के नाम से आपत्ति होने लगी. फिर इसकी रिलीज़ पर बवाल मचा. लोगों ने धमकियां दीं. किसी ने कहा, दीपिका पादुकोण की नाक काट देंगे. किसी ने सिर काटने की धमकी दी. धमकी तो ये भी आई कि अगर फिल्म को रिलीज किया गया, तो राजपूत औरतें 'जौहर' कर लेंगी. ये तो लोगों का फैलाया रायता था. मगर फिर कई राज्य सरकारों ने भी इस फिल्म की रिलीज पर बैन लगाने जैसा शर्मनाक फैसला दिया. वो भी तब, जब कि सेंसर बोर्ड इसे रिलीज का सर्टिफिकेट दे चुकी थी. एक के बाद एक कई राज्यों ने इसकी रिलीज पर लाल झंडी दिखा दी. राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गोवा, जिन चार राज्यों ने इसके ऊपर बैन लगाया वहां बीजेपी की सरकार है. बैन करने का फैसला शर्मनाक था. एक खास वर्ग को सहलाने के लिए लिया गया था. ऐसा था कि कुछ फालतू लोगों ने धमकी दी और सरकार उनके आगे बिछ गई. जबकि सरकार का काम ये होना चाहिए था कि फिल्म के शांति-सुकून से रिलीज करने का इंतजाम करती. सिनेमाघरों को सुरक्षा मुहैया कराती. लोगों को आश्वासन देती कि फिल्म देखने आने वालों को कोई नुकसान नहीं पहुंचा सकेगा.
भंसाली ने बैन को चुनौती दी थी संजय लीला भंसाली ने 17 जनवरी को राज्य सरकारों के इस बैन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिका दाखिल हुई. अदालत ने सुनवाई के लिए 19 जनवरी की तारीख दी थी. सुनवाई वाले दिन वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने निर्माताओं का पक्ष रखा. साल्वे ने कहा, सेंसर बोर्ड की ओर से पूरे देश में फिल्म के प्रदर्शन के लिए सर्टिफिकेट मिला है. ऐसे में राज्यों का प्रतिबंध असंवैधानिक है. उसे हटाया जाए.
25 जनवरी को पूरे देश में रिलीज होनी है पद्मावत इसके जवाब में चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया वाली बेंच ने कहा कि राज्यों में कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी राज्यों की है. ये राज्यों का संवैधानिक दायित्व है. उनकी जिम्मेदारी ये भी है कि फिल्म देखने जाने वाले लोगों को सुरक्षित माहौल महैया कराएं. अटॉर्नी जनरल ने राज्यों का पक्ष रखने के लिए सोमवार का वक्त मांगा था, मगर कोर्ट ने पहले ही फैसला दे दिया. अब इसके मेकर्स 24 जनवरी को पेड प्रीव्यू रखेंगे. 'पद्मावत' 25 जनवरी 2018 को पूरे भारत में रिलीज़ होगी.
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