मालिक ने कहा था- चाहे तो फेंक देना
नीलामी कर्ता एंड्रयू स्टोव ने बताया कि किसी ने चश्मे को लिफाफे में डालकर लेटर बॉक्स में डाल दिया था. उन्होंने कहा,
कुछ सप्ताह पहले एक सोमवार की सुबह हमें लेटर बॉक्स में एक लिफाफा मिला. इसमें एक चश्मा था और एक कागज लिखा था. इस पर लिखा था, ये गांधी से जुड़े हैं. मुझे फोन करना. कुछ घंटों बाद हमने फोन किया. चश्मे के मालिक के चश्मे के बारे में पहले शब्द थे, 'यदि वे किसी काम के नहीं हैं तो उन्हें फेंक देना.'50 साल तक ड्रॉवर के अंदर पड़ा था चश्मा
स्टोव के अनुसार, चश्मे का मालिक इंग्लैंड के ब्रिस्टल इलाके में रहता है. उसके चाचा 1920 के दशक में दक्षिण अफ्रीका में काम करते थे. वहां पर उनकी मुलाकात महात्मा गांधी से हुई. तभी गांधी ने चश्मा दिया था. तब से यह चश्मा उसके परिवार के पास था. करीब 50 साल तक यह चश्मा ड्रॉवर के अंदर पड़ा था.
मैंने पहली बार में सोचा था कि यह चश्मा 20-25 हजार रुपये का होगा. लेकिन जांच के बाद पता चला कि यह 15-20 लाख रुपये तक में बिक सकता है.
दुनिया के कई देशों से बोली में आए लोग
ऑनलाइन लिस्ट करने के 24 घंटे में ही इस पर करीब 40 लाख रुपये तक बोली आ गई. बाद में फोन कॉल के जरिए बोली की कार्रवाई आगे बढ़ाई गई. इसमें एक अमेरिकी संग्रहकर्ता ने छह मिनट की बोली के बाद ढाई करोड़ रुपये में चश्मा अपने नाम कर लिया. बोली में दुनिया के कई देशों से लोग शामिल हुए. भारत से भी कई लोगों ने रुचि दिखाई. इसके अलावा कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, यूरोप, आइसलैंड से भी लोग शामिल हुए थे.
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