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कॉलेज ने कैदी को एडमिशन देने से मना किया, कोर्ट ने कहा, ‘ऑनलाइन पढ़ेगा कैदी’

जज ने कहा कि कैदियों के पढ़ने के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए. साथ ही समाज के हितों और कैदियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए.

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कोर्ट ने अल्पसंख्यक संचालित शिक्षण संस्थान द्वारा की गई आपत्तियों को खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया. (फोटो- ट्विटर)

केरल हाई कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए आजीवन कारावास की सजा काट रहे दोषी को लॉ कोर्स की ऑनलाइन क्लासेज़ अटेंड करने की अनुमति दे दी (Kerala High Court lets convict pursue law course). कोर्ट ने अल्पसंख्यक संचालित शिक्षण संस्थान द्वारा की गई आपत्तियों को खारिज करते हुए ये फैसला सुनाया.

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दरअसल, करुवंगदान मुक्थार उर्फ ​​मुथु नाम का आरोपी एक मर्डर केस में दोषी पाया गया था. जिसके बाद मुथु को आजीवन कारावास की सजा हुई थी. इंडियन एक्सप्रेस में छपी शाजू फिलिप की रिपोर्ट के मुताबिक मुथु ने पिछले साल मल्लापुरम स्थित KMCT लॉ कॉलेज से लॉ का कोर्स करने के लिए अप्लाई किया था. लेकिन कॉलेज ने उन्हें एडमिशन देने से मना कर दिया. जिसके बाद मुथु ने कोर्ट में याचिका दाखिल की.

मुथु ने अपनी सजा के दौरान ही तीन साल के लॉ कोर्स का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर किया. जिसके बाद उन्हें 11 अक्टूबर को कॉलेज पहुंचने के लिए कहा गया. पर वो कॉलेज नहीं पहुंच पाए. कॉलेज ने मुथु को एडमिशन देने से इनकार करते समय ये तर्क दिया कि वो अल्पसंख्यक संचालित संस्थान है. कोर्ट ने संस्थान के इसी तर्क को खारिज करते हुए अपना फैसला दिया.

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जज बेचू कुरियन थॉमस की बेंच ने मामले की सुनवाई की. बेंच ने कहा कि दोषी का पुनर्वास उसके सुधार के मार्ग को प्रशस्त कर सकता है. साथ उसे नागरिक समाज में वापस ला सकता है. बेंच ने आगे कहा,

“इस संदर्भ में अनिवार्य शिक्षा को स्वैच्छिक शिक्षा के विपरीत देखा जाना चाहिए. अनिवार्य शिक्षा असंतोष ला सकती है, जबकि स्वैच्छिक शिक्षा व्यक्ति के सुधार का मार्ग प्रशस्त कर सकती है. इसलिए, जब एक कैदी ने एक कोर्स करने की इच्छा व्यक्त की है, विशेष रूप से लॉ का, तो ये व्यक्ति को सुधारने का अवसर पैदा करता है. साथ ही उसे समाज में वापस आने में सक्षम बना सकता है. इसलिए जब कैदी ने एक कोर्स करने की इच्छा व्यक्त की और उसने एंट्रेंस एग्जाम भी पास किया, तो कॉलेज द्वारा उठाई गई आपत्ति को स्वीकार नहीं किया जा सकता है.”

सुनवाई करते हुए जज ने कहा कि दोषियों के पढ़ने के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिए. साथ ही समाज के हितों और दोषियों के अधिकारों के बीच संतुलन बनाया जाना चाहिए.

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