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भारत और चीन के सैनिक झड़प में लाठी-डंडों से क्यों लड़ते हैं, गोली क्यों नहीं चलाते?

ऐसे कई वीडियो सामने आए हैं, जिनमें सैनिक डंडों से हमला करते हुए दिखाई दे रहे हैं.

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लाठी-डंडों से लड़ते भारत और चीन के सैनिक. (फोटो: स्क्रीनग्रैब)

अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) में भारत और चीन के बीच बीते 9 दिसंबर को झड़प (India China Clash) होने की खबर के बाद सोशल मीडिया पर कुछ पुराने वीडियो वायरल हुए हैं, जिसमें दोनों तरफ के सैनिक एक-दूसरे को लाठी-डंडों से पीटते हुए दिख रहे हैं. ये वीडियो भारत-चीन सीमा पर हुईं पुरानी झड़पों के हैं. खास बात ये है कि इनमें से कोई भी सैनिक बंदूक से हमला करता हुआ नहीं दिख रहा है. दोनों तरफ के सैनिक डंडों से ही एक दूसरे को पीट रहे हैं या फिर पीछे धकेल रहे हैं. सवाल उठता है- ऐसा क्यों?

दरअसल, भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर 1996 और 2005 में दो समझौतों पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें ये प्रावधान है कि अगर किसी क्षेत्र में गतिरोध या झड़प की स्थिति उत्पन्न होती है, तो कोई भी पक्ष हथियारों से फायरिंग नहीं करेगा.

ये एक प्रमुख प्रोटोकॉल है, जिसका पालन दोनों देशों की सेनाओं को करना पड़ता है. यही वजह है कि झड़प होने पर भारत और चीन के सैनिक लाठी-ड़ंडों से लड़ते दिखाई देते हैं. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक 1996 के समझौते के अनुच्छेद VI(1) में कहा गया है, 

'भारत-चीन सीमा क्षेत्र में खतरनाक सैन्य गतिविधियों को रोकने के लिए वास्तविक नियंत्रण रेखा से दो किलोमीटर के भीतर कोई भी पक्ष फायरिंग नहीं करेगा. इसके साथ ही क्षेत्र में खतरनाक रसायनों का उपयोग, ब्लास्ट ऑपरेशन या बंदूकों से कोई शिकार नहीं किया जाएगा. यह प्रतिबंध छोटे रेंज में रूटीन फायरिंग पर नहीं होगा.'

इसी संबंध में एक अनुच्छेद VI(4) भी है. जिसमें कहा गया है,

'यदि किसी वजह से दोनों तरफ के सैनिक आमने-सामने आ जाते हैं, तो उन्हें खुद पर अंकुश लगाना होगा और स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिए हरसंभव कदम उठाने होंगे. इसके तुरंत बाद दोनों पक्षों को कूटनीतिक या अन्य माध्यम से बातचीत शुरु करनी होगी, जिसमें स्थिति पर विचार किया जाएगा और भविष्य में ऐसी कोई स्थिति उत्पन्न न हो, इसके लिए जरूरी कदम उठाए जाएंगे.'

1996 समझौते में कहा गया है कि यह एग्रीमेंट तभी लागू किया जा सकेगा, जब दोनों पक्ष वास्तविक नियंत्रण रेखा संबंधी मामलों पर एकमत होंगे. यानी कि भारत-चीन के बीच की रेखा का जल्द सत्यापन और पुष्टि की जाए. इसी तरह साल 2005 के समझौते के अनुच्छेद 1 में कहा गया है,

'दोनों पक्ष शांतिपूर्ण और मैत्रीपूर्ण विचार-विमर्श के माध्यम से सीमा के सवाल का समाधान करेंगे. कोई भी पक्ष किसी भी तरह से दूसरे पक्ष के खिलाफ बल का प्रयोग या धमकी नहीं देगा.'

सीमा रक्षा सहयोग पर 2013 के समझौते में यह भी कहा गया है कि कोई भी पक्ष दूसरे के खिलाफ अपनी सैन्य क्षमता का इस्तेमाल नहीं करेगा.

भारत और चीन के बीच की सीमा रेखा (3488 किमी.) दुनिया के सबसे कठोतरम बॉर्डर्स में से एक है. यह पृथ्वी की शीर्ष पर्वत श्रृंखलाओं से होकर गुजरती है. यह बहुत ज्यादा टेढ़ी-मेढ़ी भी है, इसलिए इसका सत्यापन भी करना कई बार मुश्किल हो जाता है, नतीजन कई क्षेत्रों पर दोनों देशों के अपने-अपने दावे हैं.

सीमा विवाद का समाधान करने के लिए भारत और चीन के बीच पिछले कई सालों से विभिन्न स्तरों पर बातचीत चल रही है, लेकिन बार-बार झड़प या गतिरोध की घटनाएं हो रही हैं. इसकी वजह से अभी तक सीमा संबंधी मामलों का समाधान नहीं हो सका है.

तवांग में भारतीय-चीन झड़प के बाद सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो पुराना है?