राजधानी लखनऊ में ऐसे कई पोस्टर लगाए गए हैं. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने इन्हें हटाने का आदेश दिया था लेकिन पोस्टर अभी हटे नहीं हैं. फोटो: ANI
उत्तर प्रदेश. राज्य सरकार ने लखनऊ में CAA प्रोटेस्ट के दौरान हुई हिंसा के आरोपियों के पोस्टर लगाए. इनमें नुकसान की भरपाई के लिए वसूली की बात थी. बवाल कटा. इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पोस्टर हटाने को कहा. पोस्टर नहीं हटे तो मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इसे बड़ी बेंच को भेजा. इस बीच यूपी सरकार ने एक अध्यादेश को मंजूरी दी है. सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की भरपाई के लिए. उत्तर प्रदेश रिकवरी ऑफ डैमेज टू पब्लिक एंड प्राइवेट प्रॉपर्टी अध्यादेश, 2020. राज्य के वित्त मंत्री सुरेश खन्ना ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अध्यक्षता में हुई बैठक में कैबिनेट ने ये अध्यादेश पारित किया. सुप्रीम कोर्ट में गुरुवार, 13 मार्च को दो जजों की बेंच ने कहा कि राज्य सरकार की कार्रवाई को आधार देने के लिए कोई कानून नहीं है.
'नुकसान की भरपाई होगी' इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, सुरेश खन्ना ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने कई याचिकाओं की सुनवाई के दौरान कहा था कि राजनीतिक जुलूसों, अवैध प्रदर्शनों, हड़तालों के दौरान पब्लिक और प्राइवेट प्रॉपर्टी का नुकसान होता है और इसके लिए एक सख्त कानून की ज़रूरत है. खन्ना ने बताया,
'कोर्ट ने कहा कि ऐसे प्रदर्शनों की वीडियोग्राफी होनी चाहिए और नुकसान की भरपाई के लिए प्रावधान होना चाहिए. इसी को ध्यान में रखते हुए ये अध्यादेश पारित किया गया है. ये अध्यादेश बताएगा कि संपत्ति के नुकसान की भरपाई कैसे की जाए.'
कैबिनेट मंत्री सिद्धार्थ नाथ सिंह ने कहा कि अब तक सरकार के पुराने आदेश के तहत भरपाई के लिए कदम उठाए जा रहे थे लेकिन अब ऐसा कानून के हिसाब से होगा. उन्होंने बताया, 'कोर्ट ने कहा कि कानून होना चाहिए. इसलिए कोर्ट के आदेश का पालन करते हुए ये अध्यादेश लाया गया है.'
क्या है पूरा मामला यूपी सरकार ने लखनऊ में 19 दिसंबर, 2019 को सड़कों पर CAA विरोधी प्रदर्शनों के दौरान तोड़-फोड़ करने के आरोपियों के पोस्टर लगाए थे. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 9 मार्च को यूपी सरकार को उन पोस्टरों को हटाने का आदेश दिया था. हाई कोर्ट ने अपने आदेश में कहा था कि इस कार्रवाई से संविधान के आर्टिकल 14 और 21 में दिए गए मौलिक अधिकार का हनन होता है. साथ ही इसे प्राइवेसी में दखल माना था. इन पोस्टरों में कांग्रेस नेता सदफ जाफर, पूर्व आईपीएस अधिकारी एसआर दारापुरी, रिहाई मंच के मोहम्मद शोएब के नाम भी शामिल थे.
सुप्रीम कोर्ट ने मामला बड़ी बेंच को भेजा इस आदेश को यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 12 मार्च को सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश पर रोक तो नहीं लगाई, लेकिन कोई आदेश भी नहीं दिया. इसे तीन जजों की बड़ी बेंच की तरफ भेज दिया. यूपी सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कोर्ट ने कहा कि मामला बेहद महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने पूछा कि क्या राज्य सरकार के पास ऐसे पोस्टर लगाने की शक्ति है? हालांकि कोर्ट ने ये भी कहा कि इसमें कोई शक नहीं है कि दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें सज़ा मिलनी चाहिए.
यूपी सरकार के वसूली वाले पोस्टर पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?