पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल MM नरवणे (General MM Naravane) की नई किताब इन दिनों चर्चा में है. संस्मरण (Memoir) का नाम है 'फोर स्टार्स ऑफ डेस्टिनी'. इस किताब में जनरल ने गलवान घाटी विवाद को लेकर अपने विचार और अनुभव खुलकर शेयर किए हैं. उस दौरान गृह मंत्री के साथ हुई बातचीत के किस्से भी हैं. खबर है कि भारतीय सेना किताब का रिव्यू कर रही है. रिव्यू पूरा होने तक पब्लिशर पेंगुइन रैंडम हाउस को किताब का कोई भी हिस्सा या कॉपी शेयर करने से भी मना किया गया है.
जनरल नरवणे ने अपनी किताब में गलवान पर ऐसा क्या लिखा जो सेना को रिव्यू करना पड़ गया?
सेना में सर्व कर रहे अधिकारी और नौकरशाहों के लिए किताब छापने को लेकर नियम तय किए गए हैं. केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना कुछ जानकारी पब्लिश नहीं की जा सकती.

बुक इसी महीने रिलीज भी होने वाली थी. मामले पर इंडियन एक्सप्रेस ने जनरल नरवणे से बात की. उन्होंने बताया कि स्क्रिप्ट कई महीने पहले ही पब्लिशर्स को सौंप दी गई थी. इस बात को लेकर जानकारी नहीं मिली कि रिलीज में देरी आर्मी के रिव्यू के चलते हो रही है या किसी और वजह से.
पिछले दिनों न्यूज एजेंसी PTI ने किताब ने किताब के कुछ हिस्से छापे थे. उसमें जनरल नरवणे और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के बीच 31 अगस्त, 2020 को हुई बातचीत की जानकारी थी. लिखा था,
मैंने रक्षा मंत्री को स्थिति की गंभीरता से अवगत कराया जिन्होंने कहा कि वो लगभग साढ़े दस बजे तक मुझसे संपर्क करेंगे जो उन्होंने किया. उन्होंने PM से भी बात की थी और ये पूरी तरह से एक सैन्य निर्णय था. PM ने कहा था कि जो उचित समझो वो करो. जिम्मेदारी पूरी तरह से मेरे ऊपर थी. मैंने एक गहरी सांस ली और कुछ मिनट तक चुपचाप बैठा रहा.
किताब में गलवान घाटी में हुई झड़प के बारे में डीटेल दी गई है. जनरल लिखते हैं,
16 जून शी जिनपिंग का जन्मदिन है. ये ऐसा दिन नहीं है जिसे वो जल्द ही भूल जाएंगे. दो दशकों में पहली बार चीनी सेना को नुकसान झेलना पड़ा.
जनरल नरवणे ने लिखा कि जब भारतीय जवान चीनी सेना के हाथों में थे तब उन्होंने वहां कई चीनी सैनिकों के शवों को नदी से बाहर निकलते देखा था. उनके साथ मारपीट भी की गई. इस किताब में अग्निपथ योजना के बारे में भी कई बातें लिखी गई हैं.
नियम क्या कहते हैं?बता दें, सेना में काम कर रहे अधिकारी और नौकरशाहों के लिए किताब छापने को लेकर नियम तय किए गए हैं. जैसे कि सेना नियम, 1954 की धारा 21 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति किसी राजनीतिक सवाल या सर्विस से जुड़े किसी भी मामले को किसी भी रूप में पब्लिश नहीं करेगा या इस पर सीधे या अप्रत्यक्ष रूप से प्रेस से बात नहीं करेगा. केंद्र सरकार की पूर्व मंजूरी के बिना इस तरह की जानकारी किताब, चिट्ठी या डॉक्यूमेंट के जरिए पब्लिश नहीं की जा सकती.
रिटायर्ड सरकारी कर्मचारियों जिन्होंने खुफिया या सुरक्षा-संबंधी संगठनों में सेवा की है, उन्हें भी बिना पूर्व अनुमति के संगठन से संबंधित कोई भी जानकारी पब्लिश करने से रोका गया है. हालांकि ये नियम उन पर लागू नहीं होते जो अपने काम से जुड़े या साहित्यिक या कलात्मक प्रकृति की किताब लिखना चाहते हों.
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