एक हेल्थ इंश्योरेंस कर्मचारी ने अपनी कंपनी के ऊपर केस कर दिया है. क्योंकि कंपनी ने उसे ये कहकर नौकरी से निकाल दिया कि उसकी प्रोडक्टिविटी में कमी आ गई है. कंपनी ने जब ऐसा कहा, तब कर्मचारी ‘कीमोथेरेपी’ करवा रहा था. कैंसर से जूझ रहे इस व्यक्ति को इलाज और आराम की सख्त जरूरत थी. लिहाजा उसने कंपनी से 'रिमोट वर्क' यानी कि ऑफिस से दूर रहकर काम करने की अनुमति मांगी. लेकिन कंपनी ने इसकी भी अनुमति नहीं दी.
कैंसर मरीज ने घर से काम करने की अनुमति मांगी, कंपनी ने नौकरी से निकाल दिया
इस कंपनी का पूरा कारोबार ही हेल्थ इंश्योरेंस का है. लेकिन वो कैंसर झेल रहे अपने ही एक कर्मचारी के लिए मानवता नहीं दिखा सके. पीड़ित ने दूसरे लोगों को सलाह दी कि कभी भी किसी भी कंपनी के लिए वफादारी मत दिखाना.

पीड़ित ने अमेरिका की एक इंश्योरेंस कंपनी को तीन साल से ज्यादा का समय दिया. उन्होंने अपने इस समय को अपने जीवन का सबसे अमानवीय अनुभव बताया है. उन्होंने 'रेडिट' पर लिखा है,
कुछ समय पहले पता चला कि मुझे स्टेज 2 लिंफोमा (एक प्रकार का कैंसर) है. शुरू-शुरू में मुझे सदमा लगा. हेल्थप्लस इंश्योरेंस कंपनी में मैं 3 साल से ज्यादा समय से क्लेम एनालिस्ट था. मैंने अपने मैनेजर के साथ बैठकर अपने इलाज के बारे में बात की. मेरे डॉक्टर ने इंफेक्शन के खतरे को कम करने के लिए मुझे सलाह दी कि मैं ऑफिस से दूर रहकर ही काम करूं. मेरे पास कागजात, डॉक्टर का नोट, सबकुछ था. जबतक इस बातचीत में एचआर शामिल नहीं हुआ, तब तक लगा कि मेरा 'डायरेक्ट मैनेजर' मुझे सपोर्ट करेगा.
शख्स ने आगे लिखा,
इलाज के दौरान भी काम करता रहा कैंसर मरीजउन्होंने (कंपनी) ने जवाब दिया किया कि रिमोट वर्क एक विशेषाधिकार है, ये कोई सुविधा नहीं है. उन्होंने दावा कर दिया कि मैं अपना काम ऑफिस से दूर रहकर नहीं कर सकता. जबकि कुछ समय पहले कोविड के दौरान पूरा डिपार्टमेंट घर से काम कर रहा था. उन्होंने समझौते के तौर पर ऑफर दिया कि कीमो के लिए मुझे 'अनपेड लीव' दिया जाएगा (छुट्टियों के लिए पैसा कटेगा), लेकिन बाकी सभी दिन मुझे ऑफिस आना होगा. मैंने उनसे कहा कि ये तो ‘अमेरिकी विकलांगता अधिनियम’ (ADA) का उल्लंघन है. इस पर उनके एचआर डायरेक्टर ने ये तक कह दिया कि उनके यहां 49 लोग काम करते हैं, उनको ADA के बारे में सोचने की जरूरत नहीं.
यूजर ने आगे लिखा कि उसने कंपनी की बात मान ली और उनके बताए तरीके से ही काम करने की कोशिश की. लेकिन कीमो के दौरान उसे थकान और मतली जैसी दिक्कतें होती थीं. फ्लू के मौसम में भी समस्याएं आतीं. पीड़ित ने आगे लिखा,
इन सबके बावजूद मैं ऑफिस जाता और काम करता, जाहिर है इस स्थिति में मेरे काम पर भी असर पड़ा. सेकेंड राउंड कीमो के बाद, उन्होंने मुझे कहा कि मेरे नंबर्स (टारगेट) में कमी है. और फिर ‘परफॉर्मेंस इम्प्रूवमेंट प्रोग्राम’ (PIP) में रख दिया. दो सप्ताह बाद, कंपनी ने कहा कि मेरी प्रोडक्टिविटी ठीक नहीं है. इसके बाद उन्होंने मुझे नौकरी से निकाल दिया. तब मेरे खून में ‘वाइट ब्लड सेल्स’ (WBC) की संख्या एकदम नीचे चली गई थी.
कंपनी ने एक कैंसर मरीज को अपमानिता करने का सिलसिला यहीं नहीं छोड़ा. यूजर ने बताया कि उन्होंने ये दावा पेश किया कि वो बेरोजगार हो गए हैं (संभवत: सरकारी सुविधा के लिए). इस पर कंपनी ने कहा कि वो बेरोजगार नहीं हुए हैं बल्कि एक कारण से नौकरी से निकाले गए हैं. पीड़ित ने एक वकील से संपर्क किया और कंपनी के खिलाफ केस कर दिया.
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यूजर ने कहा कि इस कंपनी का पूरा कारोबार ही हेल्थ इंश्योरेंस का है. लेकिन वो कैंसर झेल रहे अपने ही एक कर्मचारी के लिए मानवता नहीं दिखा सके. उन्होंने दूसरे लोगों को सलाह दी कि कभी भी किसी भी कंपनी के लिए वफादारी मत दिखाना. ऐसा कभी मत करना.
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