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फिल्म रिव्यू: सुपर 30

'सुपर 30' को देखते वक्त अलग-अलग समय पर आप अलग-अलग तरह के भाव महसूस करेंगे. लेकिन अगर समूचे फिल्म की बात करें, तो इसका फील पॉज़िटिव है.

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ऋतिक रौशन, मृणाल ठाकुर, आदित्य श्रीवास्तव और पंकज त्रिपाठी स्टारर इस फिल्म को विकास बहल ने डायरेक्ट किया है.
ऋतिक रौशन की अगली फिल्म 'सुपर 30'. बिहार बेस्ड मैथेमटिशियन आनंद कुमार की बायोपिक. आनंद कुमार गरीब बैकग्राउंड से आने वाले 30 बच्चों को हर साल फ्री आईआईटी कोचिंग देते हैं. उनके इंस्टिट्यूट का नाम है 'सुपर 30'. उसी संस्थान के नाम पर इस फिल्म का नाम रखा गया है. फिल्म में क्या है? कैसा है? है कि नहीं? जैसी बातें हम आपको नीचे बता रहे हैं.
कहानी
हम असलियत को किनारे पर धर के ये बता देते हैं कि फिल्म किस बारे में है. एक परिवार है दो बेटे और मां-बाप. पापा पोस्टमैन हैं और मां पापड़ बना लेती हैं. उससे घर चल जाता है. बड़े लड़के का नाम है आनंद. मैथेमैटिक्स में उसका बड़ा मन लगता है. वो आदमी हर हफ्ते पटना से बनारस जाता है विदेशों में छपने वाले मैथ्स जर्नल को सॉल्व करने. लिखते-लिखते ब्लैकबोर्ड के अलावा दीवार भी भर देता है. उनकी एक गर्लफ्रेंड है, जिसकी सुंदरता भी वो मैथेमैटिकल तरीके से मापते हैं. आनंद का एडमिशन कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में हो जाता है. माली हालत इतनी खराब थी कि कैब्रिज का ख्वाब छोड़ना पड़ा. फिर घटनाक्रमों के बाद आनंद एक बड़ा कोचिंग क्लास जॉइन कर लेते हैं. पैसे पीट के रख देते हैं. लेकिन सिनेमाई तरीके से ज़िंदगी एक बार फिर बदलती है और बनता है 'सुपर 30'. इस सुपर 30 में पढ़ने आए बच्चों के पास रहने की छत नहीं है, खाने को खाना नहीं है. लेकिन इन बच्चों की भूख खाने की नहीं अच्छी शिक्षा की है. गरीबी और पिछड़ेपन से निकलकर बेहतर ज़िंदगी की है. ये सब कुछ कैसे संभव हो पाता है? हो पाता है कि नहीं? ये बातें आपको सिनेमाघर जाकर पता चलेंगी.
फिल्म के एक सीन में आनंद कुमार के रोल में ऋतिक रौशन.
फिल्म के एक सीन में आनंद कुमार के रोल में ऋतिक रौशन.


एक्टिंग
फिल्म में ऋतिक रौशन आनंद कुमार के किरदार में उनके जैसे लगे तो नहीं हैं. लेकिन इसे एक रियल से अलग एक पैरलल स्टोरी के तौर पर देखें, तो ऋतिक का काम अच्छा है. आनंद के किरदार में उनकी मेहनत, सिंसियरिटी दिखती है. ये चीज़ें किरदार के काम आईं कि नहीं ये अलग बात है लेकिन वो हर सीन में कोशिश करते हुए तो दिखाई दिए हैं. आदित्य श्रीवास्तव लल्लन नाम के एक कोचिंग इंस्टिट्यूट के हेड के रोल में हैं. उनका किरदार काफी बचकाना और कॉमेडी फिल्मों के विलेन जैसा है. जो चाहे कुछ कर ले हीरो का बाल तो बांका नहीं ही कर पाएगा. लेकिन आदित्य ने इस रोल के साथ गंभीरता बरती है. मृणाल ठाकुर ने फिल्म में ऋतिक की गर्लफ्रेंड का किरदार निभाया है. लेकिन उनका किरदार और आगे उनसे जुड़े सीक्वंस सिनेमा वाले हिसाब से गढ़े हुए से लगते हैं. काफी फिक्शनल टाइप. मृणाल का रोल फिल्म में बहुत लंबा नहीं है. लेकिन जब वो आता-जाता है, तब अजीब नहीं लगता. इसलिए आप मृणाल से 'लव सोनिया' जैसा कुछ नहीं एक्सपेक्ट कर सकते. बाकी बचते हैं पंकज त्रिपाठी. किरदार है शिक्षा मंत्री का. बिहारी शिक्षा मंत्री का, जो कोचिंग बिज़नेस में है. उनसे आप जितना उम्मीद करते हैं, वो उससे ज़्यादा देते हैं. तिस पर वो इस बार होमग्राउंड पर खेल रहे थे. और खेल भी कर दिया है. उनका कैरेक्टर छोटा है और कुछ खास ज़रूरी भी नहीं. बावजूद इसके इस फिल्म से उनके डायलॉग्स और हरकतें आपको याद रहेंगी.
मृणाल ने फिल्म में सुप्रिया नाम की लड़की का रोल किया है, जो पैसे वाले घर की लड़की हैं, जो क्लासिकल डांस सीखती है.
मृणाल ने फिल्म में सुप्रिया नाम की लड़की का रोल किया है, जो पैसे वाले घर की लड़की हैं, जो क्लासिकल डांस सीखती है.


म्यूज़िक-बैकग्राउंड स्कोर
फिल्म की शुरुआत में एक गाना आता है 'जुगराफिया' (जॉग्रफी). इसे आप फिल्म को क्रिएटिव फ्रीडम के नाम पर जाने देते हैं. ऊपर से वो एक छोटी सी लव स्टोरी दिखाकर चला जाता है. कुछ ही देर बाद अगला गाना 'पैसा'. गरीबों का आइटम नंबर. इस गाने का फिल्म का कोई ताल मेल नहीं है. यहां अपना टीचर दारू पीके बार में नाच रही डांसर के साथ नाच रहा है. इस गाने से फिल्म ये बताना चाहती है पैसा आने के बाद लोग क्या-क्या करते हैं. लेकिन ये हरकतें, तो हम बाकी सीन में भी देख चुके थे. जब आप फिल्म के म्यूज़िक से उम्मीद छोड़ते हैं, ठीक उसी समय 'क्वेस्चन मार्क' नाम का एक गाना आता है. वो भले ही लाउड है और आपको ऑलमोस्ट झपकी से खींचकर ले जाता है, उसके लिरिक्स बहुत मारक हैं. बैकग्राउंड म्यूज़िक काफी भारी है. एक टाइम तक ढोने के बाद फिल्म के भी कंधे थक जाते हैं. हालांकि कुछ सीन्स में ये वैल्यू एडिशन भी करती है. लेकिन वो सीन्स उंगलियों पर गिन लिए जाने भर से भी कम हैं. फिल्म के डायलॉग्स खालिस बिहारी तो नहीं है. लेकिन फिर भी फिल्म में 'मउगा' जैसा शब्द सुनने को मिलता है. ये खांटी बिहारी शब्द है, जिसके लिटरल मीनिंग पर नहीं जाएंगे लेकिन इसका इस्तेमाल किसी को डरपोक या फट्टू बुलाने के लिए किया जाता है. फिल्म का गाना 'क्वेस्चन मार्क' आप यहां सुन सकते हैं:

फिल्म के साथ दिक्कतें
ये एक अपनी तरह की बायोपिक फिल्म है, जो कई जगहों पर इतनी फिक्शनल हो जाती है कि पकड़ी जाती है. ऋतिक रौशन के चेहरे को ब्राउन मेकअप लपेटकर मेकर्स पता नहीं क्या साबित करना चाहते हैं. आप कंफ्यूज़ होते हैं कि इस मेकअप से क्लास की बात रही है, कास्ट की बात हो रही है या क्षेत्रवाद की बात हो रही है? फिल्म में एक सीन है जहां आनंद अपनी गर्लफ्रेंड के पापा से मिलते हैं. आनंद ने बताया कि वो कैंब्रिज जा रहे हैं. भावी ससुर उनकी जाति और आर्थिक दिक्कतों को लूप में लेते हुए एक सवाल पूछते हैं. और जवाब मिलने के बावजूद मन ही मन में हंसते हुए हेय दृष्टि से देखकर चले जाते हैं. लेकिन जब आनंद कोचिंग जॉइन कर पैसे बनाने लगते हैं, तो पापा को कोई दिक्कत नहीं आती है. सामाजिक दिक्कतों को चलती फिल्म में पीछे के दरवाजे से निकाल दिया जाता है.
फिल्म के एक सीन में पैसे वाले आनंद के साथ जाती सुप्रिया और नेपथ्य में बाय-बाय करते पापा जी.
फिल्म के एक सीन में पैसे वाले आनंद के साथ जाती सुप्रिया और नेपथ्य में बाय-बाय करते पापा जी.


फिल्म की अच्छी बात
फिल्म में एक गाना है 'बसंती नो डांस'. ये सिर्फ एक गाना नहीं है, ये पूरा सीक्वेंस फिल्म की आत्मा है. गांवों के गरीब परिवारों से आए बच्चे बड़े कोचिंग इस्टिट्यूट के बच्चों के साथ घुल-मिल नहीं पाते. उन्हें डर लगता है उनकी बराबरी में बैठने से. अच्छे साफ कपड़े और इंग्लिश बोलने वाले बच्चों के बीच में सुपर 30 के स्टूडेंट्स का दिमाग काम करना बंद कर देता है. उनके बीच वो नर्वस हो जाते हैं. आनंद कुमार इस समस्या का जो समाधान निकालते हैं, वो है 'बसंती नो डांस'. ये सीन खत्म भी नहीं होता कि आप फीलगुड से भर जाते हैं. हर बच्चा पूरी शिद्दत से रोता हुआ अपने भीतर की सारी इंग्लिश उन इंग्लिश बोलने वाले बच्चों के सामने निकाल देता है, जिसके बाद उनका मन हल्का होता है. 'बसंती नो डांस' आप यहां देख-सुन सकते हैं:

ओवरऑल एक्सपीरियंस
'सुपर 30' को देखते वक्त अलग-अलग समय पर आप अलग-अलग तरह के भाव महसूस करेंगे. लेकिन अगर समूची फिल्म की बात करें, तो इसका फील पॉज़िटिव है. थकान के बीच आपको ये बहुत अच्छा तो फील नहीं करवाती. लेकिन उसी स्थिति में एक बार फिर से खड़े होने में मदद करती है. साल खत्म होने के बाद जब बीते साल की बेहतरीन फिल्मों की बात होगी, तो उस लिस्ट में आपको 'सुपर 30' का नाम ज़रूर मिलेगा. ऋतिक रौशन को देखने जा रहे हैं, तो मत जाइए वो नहीं दिखेंगे. लेकिन फिल्म देखने जा रहे हैं, तो जाइए बहुत कुछ दिखेगा. बस आंख-कान खुला रखिएगा.


वीडियो देखें: फिल्म रिव्यू- सुपर 30

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