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फर्जी सर्टिफिकेट से सरकारी नौकरी पाने की आईं 1,084 शिकायतें, पता है कितनों पर एक्शन हुआ?

एक RTI से पता चला है कि 9 साल में सरकार को फर्जी जाति प्रमाण पत्र (Fake Caste Certificate) के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल करने की 1,084 शिकायतें मिली हैं. इनमें Railway ने सबसे ज्यादा 349 शिकायतें दर्ज की, वहीं डाक विभाग ने 259, शिपिंग मंत्रालय ने 202 और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने 138 शिकायतें दर्ज की.

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9 साल में फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी पाने की 1,084 शिकायतें मिली. (फाइल फोटो)

हाल के दिनों में पूजा खेडकर (Puja Khedkar case) का नाम काफी चर्चा में रहा है. पूजा खेडकर पर कथित तौर पर फर्जी जाति और विकलांगता सर्टिफिकेट (Fake Certificate) देकर नौकरी पाने का आरोप था. अब एक RTI से पता चला है कि 9 साल में सरकार को फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर सरकारी नौकरी हासिल करने की 1,084 शिकायतें मिली हैं.  ये आंकड़ें साल 2019 तक के हैं. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) के रिकॉर्ड के मुताबिक, इनमें से 92 कर्मियों को सेवा से बर्खास्त कर दिया गया है.

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सरकार के अधीन 93 मंत्रालयों और विभागों में से 59 ने इस RTI के लिए डेटा उपलब्ध कराया. RTI से मिले डेटा के मुताबिक, फर्जी जाति प्रमाण पत्र के मामले में रेलवे ने सबसे ज्यादा 349 शिकायतें दर्ज कीं, वहीं डाक विभाग ने 259, शिपिंग मंत्रालय ने 202 और खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग ने 138 शिकायतें दर्ज कीं. कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, इनमें से कई मामले अलग-अलग अदालतों में भी लंबित हैं.

जुलाई में हुए पूजा खेडकर विवाद के बाद इंडियन एक्सप्रेस ने एक RTI दायर की थी. जिसके जवाब में ये आंकड़े मिले हैं. कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने तत्कालीन भाजपा सांसद रतिलाल कालिदास वर्मा की अध्यक्षता में SC/ST कल्याण के लिए बनी संसदीय समिति की सिफारिश के बाद 2010 से ऐसी शिकायतों का डेटा इकट्ठा करना शुरू किया था.

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समिति ने बहुत ही मजबूती के साथ ये प्रस्ताव दिया था कि कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग सभी मंत्रालयों, सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों, बैंकों, स्वायत्त निकायों और राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों से फर्जी जाति प्रमाण पत्रों के मामलों के बारे में नियमित रूप से सूचना प्राप्त करे. ताकि इस समस्या से निपटने के लिए जरूरी कार्य योजना बनाई जा सके.

इस संबंध में कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DoPT) ने 28 जनवरी 2010 को सभी मंत्रालयों को पहला संदेश जारी किया. जिसमें कहा गया कि वे अपने प्रशासनिक नियंत्रण के अंतर्गत आने वाले सभी संगठनों से उन मामलों के बारे में जानकारी एकत्र करें, जहां उम्मीदवारों ने फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षित पदों पर नियुक्ति प्राप्त की. या कथित तौर पर ऐसा करने का आरोप है. इसके लिए 31 मार्च, 2010 तक की समय-सीमा दी गई थी.

DoPT के मुताबिक, इस तरह के डेटा की मांग करने वाला अंतिम संदेश 16 मई 2019 को जारी किया गया था. 8 अगस्त 2024 को आरटीआई के जवाब में DoPT ने बताया कि आज की तारीख में इन विभागों में ऐसे किसी डेटा का कोई रिकॉर्ड नहीं रखा जाता है.

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रोजगार के लिए सरकार द्वारा तय किए गए आरक्षण कोटे के अनुसार, अनुसूचित जाति के उम्मीदवारों को 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति को 7.5 प्रतिशत, अन्य पिछड़ा वर्ग को 27 प्रतिशत, आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को 10 प्रतिशत और शारीरिक रूप से विकलांगों को प्रत्येक श्रेणी में 3 प्रतिशत आरक्षण मिलना अनिवार्य है.

DoPT के मुताबिक, 1993 में जारी एक आदेश में कहा गया है कि यदि यह साबित हो जाता है कि किसी सरकारी कर्मचारी ने नियुक्ति पाने के लिए गलत जानकारी या गलत प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया है, तो उसे सेवा में नहीं रखा जाना चाहिए.

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