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ट्रेनों में खाना बेचने वाली कंपनी का ऐसा सच कि आपको सफ़र में भूखा रहना बेहतर लगेगा

कुमार विश्वास जैसे कुछ बड़े लोगों ने ट्वीट किया तो सच सामने आया.

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बाएं से दाएं: अखबार में आया हुआ विज्ञापन. ट्रेन में खाना बेचता कर्मचारी (प्रतीकात्मक तस्वीर- फेसबुक)

अखबारों में आपको खबरें मिलती हैं. देश-दुनिया, अड़ोस-पड़ोस की जानकारी मिलती है. ये भी पता चलता है कि देश के किस कौने में, किस परिवार को कैसी वधु चाहिए, कैसा वर चाहिए. इसके अलावा जमाने भर के विज्ञापन भी दिखते हैं. दवाओं के, तेल के, किराए के घर, प्रॉपर्टी बेचने के. हर तरह के एडवर्टाइजमेंट. इन सबमें कुछ ऐड नौकरियों के भी होते हैं. तो हम इसी नौकरी वाले ऐड पर आगे बात करने जा रहे हैं.

7 नवंबर के दिन रोज़ की तरह अखबारों में कुछ कंपनियों ने जरूरत के हिसाब से खाली पदों के विज्ञापन दिए. इनमें से एक कंपनी के नौकरी वाले ऐड में कुछ ऐसा लिखा था, जिसने सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया. और सोशल मीडिया पर कुछ ही घंटों में ये विज्ञापन भयंकर वायरल होने लगा. इतना वायरल हुआ कि कुमार विश्वास और तेजस्वी यादव के पॉलिटिकल एडवाइजर संजय यादव ने भी इसे शेयर कर दिया.


ऐसा क्या लिखा था विज्ञापन में?

बृंदावन फूड प्रोडक्ट्स (Brandavan food products) नाम की एक कंपनी है. ये RK एसोसिएट्स के तहत काम करती है. RK एसोसिएट्स, रेलवे के लिए काम करने वाले हॉस्पिटैलिटी कॉन्ट्रैक्टर्स में से एक है. बृंदावन फूड प्रोडक्ट्स का मुख्य ऑफिस दिल्ली के ओखला में है. ये कंपनी ट्रेनों में खाना बेचने का काम करती है. इनकी वेबसाइट के मुताबिक, 5000 लोगों का स्टाफ है. टूरिज्म, हॉस्पिटैलिटी और कैटरिंग की फील्ड में कंपनी को 50 साल हो चुके हैं. वो भी ग्लोरियस 50 साल.

अब इस कंपनी को 100 पुरुष कर्मचारियों की जरूरत है. अर्जेंट बेसिस पर. इसके लिए इन्होंने अखबारों में विज्ञापन दिया. शर्त रखी कि इन 100 लोगों को देश के किसी भी हिस्से में काम करना पड़ सकता है. सभी को कम से कम 12वीं पास होना चाहिए. ठीक है, इन शर्तों में कोई दिक्कत नहीं है. लेकिन अगली जो शर्त है, वो भयंकर दिक्कत वाली है. विज्ञापन में लिखा है-

'कैंडिडेट्स को अग्रवाल-वैश्य समुदाय का होना चाहिए. और अच्छा फैमिली बैकग्राउंड होना चाहिए'

हमें नहीं लगता कि ये बताने की जरूरत है कि इस शर्त में क्या सही नहीं है. लेकिन फिर भी एक लाइन में बता देते हैं. ये साफ तौर पर भेदभाव वाली सोच को दर्शाता है. संविधान में हर जाति-धर्म के लोगों को एक माना गया है. फिर किसी एक जाति को स्पेसिफाइ करके नौकरी का विज्ञापन देना तो गैरकानूनी ही हुआ. ये कानूनी तौर के साथ-साथ, सामाजिक तौर पर भी सही नहीं है.


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अखबार में आया हुआ पूरा विज्ञापन.

सोशल मीडिया के जरिए लोग इसी शर्त का विरोध कर रहे हैं. संजय यादव ने ट्वीट कर कहा,

'रेलवे का ठेका लेने वाली वृंदावन फ़ूड प्रॉडक्ट्स कंपनी को नौकरी हेतु 100 पुरुष चाहिए. लेकिन इस कंपनी की एक महत्वपूर्ण शर्त है कि नौकरी में apply करने वाले सभी लोग अग्रवाल-वैश्य समुदाय के ही होने चाहिए. इन्हें ब्राह्मण, राजपूत, दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक और महिला स्टाफ़ नहीं चाहिए.'


कुमार विश्वास ने लिखा,

'बेहद शर्मनाक सोच व कार्य! संविधान की मर्यादा को तार-तार करते इस संस्थान के विरुद्ध एक कठोर व मानक कार्यवाही सरकार के 'सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास' नारे को सत्य सिद्ध करेगी. जी! आशा है आप सब जो कहते रहे हैं उसे मानते भी होगें ही. पीयूष गोयल जी, योगी आदित्यनाथ जी, गृहमंत्री अमित शाह जी. आशा है आप सब जो कहते रहे हैं उसे मानते भी होगें ही.'


क्या कहती है कंपनी?

विज्ञापन में एक ईमेल आईडी भी दी गई है. लिखा है कि इच्छुक कैंडिडेट उसी ईमेल आईडी पर अपना CV भेजें. हमने उन्हीं सज्जन व्यक्ति से बात की, जिनकी मेल आईडी लिखी है. यानी अरुण चौहान से. अरुण RK एसोसिएट्स के HR डिपार्टमेंट में हैं. उन्होंने कहा कि ये शर्त ऐड में गलती से लिखा गई है. वो ऐसा लिखवाना नहीं चाहते थे. उन्होंने कहा,

'अग्रवाल-वैश्य समुदाय वाली शर्त गलती से लिखा गई है. हम लिखवाना नहीं चाहते थे. अगले विज्ञापन में हम इसे हटा देंगे. हर समुदाय के कैंडिडेट को अप्लाई करने की परमिशन है.'

जब हमने पूछा कि इतनी बड़ी गलती कैसे हो गई, तब उन्होंने कहा,

'अरे, गलती तो हो जाती है. इतनी बड़ी गलती तो है नहीं. किसी का गला तो नहीं काट दिया हमने. हमसे गलती हुई है, हमने उसे ठीक करवाने के लिए दे दिया है.'

अगला सवाल अच्छे फैमिली बैकग्राउंड पर था. हमने पूछा कि इसका क्या मतलब है. तब अरुण चौहान ने कहा,

'मतलब केवल इतना है कि उसका बैकग्राउंड साफ-सुथरा हो. कैंडिडेट के खिलाफ किसी भी तरह की कोई FIR न दर्ज हुई हो. किसी वारदात में नाम न हो. कैरेक्टर सही हो.'

विज्ञापन में केवल पुरुष कैंडिडेट्स को हायर करने की बात कही गई है. इस सवाल पर उन्होंने कहा,

'दरअसल, जिस जॉब प्रोफाइल के लिए हम लोग हायरिंग कर रहे हैं, उसमें देश में जगह-जगह पर ट्रैवल करते रहना होगा. किसी भी कौने में आपको जाना पड़ सकता है. इसलिए हम लड़कियों को हायर नहीं कर रहे.'

अब विज्ञापन में 'अग्रवाल-वैश्य समुदाय' वाली शर्त गलती से लिखी गई है या फिर जानबूझकर. हम इस पर कुछ नहीं कह सकते. लेकिन इतना जरूर कह सकते हैं कि इस तरह के विज्ञापन में किसी खास जाति या समुदाय को स्पेसिफाइ करना कतई सही बात नहीं है.



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