इसी साल के मॉनसून सत्र के आख़िरी दिन - 11 अगस्त को - गृह मंत्री अमित शाह ने आपराधिक न्याय प्रणाली में बदलाव के लिए तीन नए विधेयक पेश किए थे. कहा था कि अंग्रेज़ों के पुराने क़ानूनों का उद्देश्य दंड देना था, न्याय देना नहीं. इसलिए बदलाव किए जा रहे हैं. ये भी बताया था कि वो ख़ुद इस प्रक्रिया में शामिल रहे हैं.
मॉब लिंचिंग पर अब मौत की सजा, नई न्याय संहिता में क्या-क्या बदलाव हो गए?
मॉब लिंचिंग, आतंकवाद और महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों की सज़ा बढ़ गई है. कुछ प्रावधान जोड़े गए हैं, कुछ ख़त्म कर दिए गए.

अब बीते मंगलवार, 12 दिसंबर को गृह मंत्री ने लोकसभा में आपराधिक क़ानून विधेयकों के संशोधित वर्ज़न पेश किए हैं. इसमें मॉब लिंचिंग और हेट क्राइम के लिए न्यूनतम सज़ा बढ़ाने, आतंकवाद की परिभाषा का दायरा बढ़ाने, महिलाओं के ख़िलाफ़ अपराधों से जुड़े मसलों पर नए प्रावधान हैं.
विस्तार से जानिएमॉनसून सत्र में तीन बिल पेश किए गए थे-
1. भारतीय दंड संहिता, 1860 की जगह भारतीय न्याय संहिता, 2023.
2. दंड प्रक्रिया संहिता, 1898 की जगह भारतीय नागरिक संहिता, 2023.
3. इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 की जगह भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023.
तीनों ही क़ानूनों में धाराएं कम की गई थीं. कुछ धाराओं में बदलाव हुए, कुछ जोड़ी गईं, उससे ज़्यादा ख़त्म कर दी गईं. पेश किए जाने के बाद लोकसभा अध्यक्ष ने विधेयक को संसदीय स्थायी समिति के पास भेज दिया. बीजेपी सांसद बृजलाल की सदारत वाली इस समिति के सुझावों को शामिल करने के बाद विधेयकों को 12 दिसंबर को लोकसभा में दोबारा पेश किया गया.
नए क़ानून में नया क्या है?इंडियन एक्सप्रेस की अपूर्वा विश्वनाथ की रिपोर्ट के मुताबिक़, पहली बार मॉब लिंचिंग और हेट-क्राइम की एक अलग श्रेणी बनाई गई है. बहुत दिनों से सार्वजनिक चर्चाओं में ये बात आती थी कि भीड़ पर कोई क़ानून नहीं है. अब भारतीय न्याय संहिता में मॉब लिंचिंग को लेकर सज़ा भी है और पिछले ड्राफ़्ट के मुक़ाबले सज़ा बढ़ाई भी गई है. अगर पांच या पांच से ज़्यादा लोगों की भीड़ नस्ल, जाति, समुदाय या व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर किसी की हत्या करती है, तो उसे मॉब लिंचिंग माना जाएगा. और इसकी सज़ा को आजीवन कारावास से लेकर मौत तक की सज़ा तक कर दिया गया है. पिछले ड्राफ़्ट में 7 साल की जेल से लेकर आजीवन कारावास का प्रावधान था. इस बार इसे हत्या की सज़ा के बराबर कर दिया गया है.
चूंकि भीड़ की हिंसा और हेट क्राइम अब एक अलग अपराध है, तो राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) भी इसे अलग से दर्ज करेगा.
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दूसरा बड़ा बदलाव है, आतंकवाद की परिभाषा. अब विदेश में भारत की सरकारी संपत्ति को नुक़सान पहुंचाना या नष्ट करना भी आतंकवाद के दायरे में आएगा. पहले ये केवल भारत के अंदर तक ही सीमित था.
स्क्रोल की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, देश की 'आर्थिक सुरक्षा' को ख़तरे में डालने के इरादे से किए गए काम आतंकवाद माने जाएंगे. मसलन, नक़ली नोट-सिक्के बनाना, उनकी तस्करी करना या कोई भी ऐसा काम जिससे भारत की मौद्रिक स्थिरता को नुक़सान पहुंचे.
फिर भारत सरकार, राज्य सरकारों या विदेशी सरकारों को कुछ भी करने या करने से रोकने के लिए किसी व्यक्ति को हिरासत में लेना या अगवा करना भी आतंकवाद की कैटगरी में जाएगा.
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नए आपराधिक बिल में महिलाओं के ख़िलाफ़ हो रहे अपराधों से लड़ने के लिए दो और धाराएं जोड़ी गई हैं. पिछले वर्ज़न में धारा-85 में किसी महिला पर उसके पति या ससुराल वालों द्वारा क्रूरता करने पर तीन साल की जेल की सज़ा तय की गई थी. ताज़ा वर्ज़न में क्रूरता को परिभाषित करने के लिए धारा-86 जोड़ी गई है. इसमें एक महिला के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को नुक़सान पहुंचाने का अलग से ज़िक्र है.
दूसरा अहम बिंदू यौन उत्पीड़न से पीड़ित की पहचान उजागर करने से जुड़ा है. बिना अनुमति के पीड़ित की पहचान ज़ाहिर करने पर दो साल की जेल होगी.
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समिति ने अपने सुझावों में न्याय संहिता पर ही फ़ोकस किया है. लेकिन एकाध बदलाव नागरिक सुरक्षा संहिता - CrPC की जगह आने वाला विधेयक - में किए हैं. कुछ अपराधों की सज़ा के विकल्प पेश किए हैं. जैसे छोटी-मोटी चोरी, मानहानि और सरकारी अधिकारी के काम में ख़लल डालने पर जेल नहीं होगी. बल्कि कुछ सामुदायिक सेवा करनी होगी. हालांकि, कौन सी सामुदायिक सेवा शामिल होगी, इसे बहुत साफ़-साफ़ नहीं बताया गया है.
इसी तरह, कई बदलाव जो बहुत साफ़ नहीं थे या अपरिभाषित छोड़ दिए गए थे, नए वर्ज़न में भी वैसे ही हैं.
गुरुवार, 14 दिसंबर को विधेयकों पर लोकसभा में चर्चा होगी. तब और जानकारी आएगी, स्थिति कुछ और साफ़ होगी. जब होगी, तब दी लल्लनटॉप आप तक पहुंचा देगा.