राजद्रोह खत्म होगा या सिर्फ 'राजद्रोह' शब्द? नए और पुराने कानून की परिभाषा में फर्क कितना है?
मोदी सरकार आपराधिक न्याय प्रणाली में बदलाव के लिए तीन नए विधेयक लाई है. जानें इनके बारे में.

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने शुक्रवार, 11 अगस्त को लोकसभा में बताया कि ‘राजद्रोह’ को पूरी तरह खत्म किया जाएगा. भारत सरकार आपराधिक कानूनों में बदलाव करने जा रही है. मानसून सत्र के आखिरी दिन अमित शाह ने आपराधिक न्याय प्रणाली में बदलाव के लिए तीन नए विधेयक पेश किए. उन्होंने कहा कि अंग्रेजों के पुराने कानूनों का उद्देश्य दंड देने का था, न्याय देने का नहीं, इसलिए इनमें बदलाव किया जा रहा है. अमित शाह के मुताबिक, आपराधिक कानूनों को बदलने की प्रक्रिया में वे खुद शामिल रहे हैं.
जो तीन बिल लोकसभा में पेश किए गए-
1. भारतीय न्याय संहिता, 2023 (IPC-1860 में बदलाव के लिए)
2. भारतीय नागरिक संहिता, 2023 (CrPC 1898 में बदलाव के लिए)
3. भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 (इंडियन एविडेंस एक्ट, 1872 में बदलाव के लिए)
अमित शाह ने कहा कि इन तीनों बिलों को संसद की स्टैंडिंग कमेटी को भेजा जाएगा. गृह मंत्री ने बताया कि CrPC में बदलाव कर जो भारतीय नागरिक संहिता, 2023 बनेगी, उसमें अब 533 धाराएं बचेंगी, 160 धाराओं को बदल दिया गया है. बिल में 9 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 9 धाराओं को खत्म किया गया है.
भारतीय दंड संहिता (IPC) में भी बड़े स्तर पर बदलाव होने वाले हैं. अमित शाह के मुताबिक, IPC में पहले 511 धाराएं थीं. अब भारतीय न्याय संहिता, 2023 में सिर्फ 356 धाराएं होंगी. 175 धाराओं में बदलाव हुआ है, 8 नई धाराएं जोड़ी गई हैं और 22 धाराओं को खत्म कर दिया गया है.
इसके अलावा, भारतीय साक्ष्य विधेयक, 2023 में 170 धाराएं होंगी. पहले इंडियन एविडेंस एक्ट में 167 धाराएं थी. इसके लिए 23 धाराओं में बदलाव किया गया. एक नई धारा जोड़ी गई है और 5 धाराएं निरस्त की गई हैं.
गृह मंत्री ने बताया कि इस कानून के तहत FIR से केस डायरी, केस डायरी से चार्जशीट और चार्जशीट से जजमेंट तक सारी प्रक्रिया को डिजिटाइज करने का प्रावधान है. ताकि कागजों का ढेर न बने. इसके अलावा सर्च और जब्ती के दौरान वीडियोग्राफी को अनिवार्य कर दिया गया है. पुलिस बिना रिकॉर्डिंग के अगर चार्जशीट फाइल करेगी, तो वो मान्य नहीं होगा.
कानूनों में प्रस्तावित बदलाव की कुछ अहम बातें-1. जिन मामलों में सात साल या उससे ज्यादा की सजा है, वैसे केस में क्राइम सीन पर फॉरेंसिक टीम का जाना अनिवार्य होगा.
2. यौन हिंसा में पीड़िता का बयान और बयान की वीडियो रिकॉर्डिंग अनिवार्य.
3. 7 साल से अधिक की सजा वाले केस को खत्म करना है तो पीड़ित को सुने बगैर केस वापस नहीं होगा.
4. किसी भी मामले में 90 दिन के भीतर चार्जशीट फाइल करनी पड़ेगी. कोर्ट की मंजूरी से और 90 दिन का समय मिल सकता है.
5. किसी मामले में बहस पूरी होने के बाद एक महीने के भीतर कोर्ट को फैसला सुनाना होगा. 7 दिन के भीतर उस फैसले को ऑनलाइन उपलब्ध कराना होगा.
6. पुलिस अधिकारियों के खिलाफ ट्रायल चलाने का फैसला सरकार को 120 दिन में करना होगा.
7. मॉब लिंचिंग के मामले में दोषियों को 7 साल की सजा, आजीवन कारावास या मौत की सजा भी हो सकती है.
8. गैंगरेप के सभी मामलों में 20 साल की सजा या आजीवन कारावास की सजा. 18 साल से कम उम्र की लड़की के मामले में मौत की सजा का प्रावधान.
9. बच्चों के साथ सजा पर सजा को 7 साल से बढ़ाकर 10 साल किया गया.
10. सजा माफी में बदलाव का प्रावधान. मौत की सजा को आजीवन कारावास में ही बदल सकते हैं, आजीवन कारावास की सजा को 7 साल की सजा तक, और 7 साल की सजा को 3 साल तक की सजा तक ही माफ कर सकते हैं.
11. राजद्रोह को पूरी तरह खत्म किया जाएगा.
12. भगोड़ों की अनुपस्थिति में भी ट्रायल होगा और सजा सुनाई जाएगी.
हालांकि IPC की धारा-124 (a) में राजद्रोह की जो परिभाषा दर्ज है, करीब-करीब उसी तरह की परिभाषा भारतीय न्याय संहिता, 2023 के प्रस्तावित क्लॉज 150 में भी दी गई है. सिर्फ शब्द 'राजद्रोह' हटाया गया है. इस 'नई' परिभाषा के मुताबिक, “अगर कोई जानबूझकर या सुनियोजित, बोलकर, लिखकर, संकेत, ऑनलाइन, वित्तीय साधन के जरिये, अलगाव या सशस्त्र विद्रोह में शामिल होता है या इसे बढ़ावा देता है और भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालता है या ऐसे अपराध में शामिल होता है तो उसे आजीवन कारावास की सजा होगी.”
IPC की धारा-124 (a) भी इसी तरीके से परिभाषित है.
अमित शाह ने बताया कि इन तीनों कानूनों में कई ब्रिटिश शब्दावली हैं, जैसे 'लंदन गैजेट', 'कॉमनवेल्थ प्रस्ताव', 'ब्रिटिश क्राउन', ऐसे 475 जगहों से ऐसे शब्दों को खत्म कर दिया गया है.
गृह मंत्री के मुताबिक, इन कानूनों में बदलाव के लिए कई सारे सुझाव लिए गए. इसके लिए उन्होंने सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों को पत्र लिखा था. देश की सारी लॉ यूनिवर्सिटी को भी पत्र लिखा था. उन्होंने बताया कि 18 राज्यों, 6 केंद्रशासित प्रदेशों, सुप्रीम कोर्ट, 16 हाई कोर्ट, 5 न्यायिक एकेडमी, 22 लॉ यूनिवर्सिटी, 142 सांसद और करीब 270 विधायकों ने इसमें सुझाव दिए. कानून बदलने के लिए इन सुझावों पर अमल किया गया.
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