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BHU में लड़कियों के साथ क्या कुछ होता है, BHU का लड़का बता रहा है

'लड़कियों को छेड़ना बिरला की परम्परा में शामिल था.'

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छेड़खानी से परेशान होकर BHU की छात्राओं ने एक बड़ा धरना दिया था
sudhanshu
सुधांशू कुमार बेगूसराय से हैं. खूब पढ़ाकू हैं. एक के बाद एक सेंट्रल यूनिवर्सिटी छान रहे हैं. फिलहाल डीयू से रिसर्च कर रहे हैं. उस से पहले हैदराबाद यूनिवर्सिटी में पढ़े. और उस से पहले बीएचयू में. इनने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है. इसमें अपने बीएचयू के दिनों को याद करते हुए सुधांशू ने कुछ-कुछ बताया है. हमारी उनसे मिट्ठी है. तो हम उनकी पोस्ट यहां चिपका रहे हैं ताकि आप जान सकें कि कैसे 'महामना की बगिया' में पढ़ने वाली लड़कियां लंबे अरसे से छेड़खानी से परेशान रही हैं. पढ़िए.
 


कुछ अग्रजों और शुभचिंतकों के आग्रह और स्नेहपूर्ण डांट-फटकार के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि मैं अपनी बात रचनात्मक ढंग से रखूं. इस क्रम में मैं सबसे पहले अपनी पुरानी यादों को ताज़ा करना चाह रहा हूं. मैं कुछ संस्मरण को आपसे साझा करूंगा, जिसमें उस समय और परिवेश का यथार्थ होगा. कुछ मीठी यादें होगी, अपनी मिट्टी की खुशबू होगी और कुछ चटपटी बातें होगी. मेरा ये पहला संस्मरण BHU की छात्राओं को समर्पित है.
#1. साल 2012 की घटना है. मैं उस समय बिरला-अ छात्रावास में रहता था, बी.ए द्वितीय वर्ष का छात्र था. उस दौरान मैं खूब मन से पढ़ता था और कभी-कभी अपने साथियों विपुल, अनीश, नीलेश, अमर चौबे और अपने कुछ अग्रजों के साथ बिरला छात्रावास के सामने वाले मैदान में क्रिकेट भी खेलता था. एक शाम क्रिकेट खेल कर, ब्लैक टी-शर्ट पहने थका हारा छात्रावास के गेट के अंदर प्रवेश कर रहा था कि मेरी नजर बिरला-अ के सामने नाली पर बनी हुई पुलिया पर पड़ी जहां मेरे कुछ सहपाठी बैठे हुए थे, जिनमें से एक मेरे अच्छे दोस्त भी थे. यहां मैं उनका नाम नहीं लूंगा. मेरे ये सहपाठी आपस में किसी मुद्दे पर बात कर रहे थे, इन लोगों ने अभी-अभी किसी लड़की को छेड़ा था. जब उस लड़की ने बात अनसुनी कर दी तो इनमें से किसी एक ने उस लड़की को मां की गाली थी. ये लोग शायद उस लड़की वाले प्रकरण पर ही बात कर रहे थे.
बीएचयू का बिरला हॉस्टल छेड़खानी की घटनाओं के लिए खासा बदनाम बताया जाता है
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मैं उनके पास पहुंचता हूं कि तभी एक लड़की साइकिल चलाते हुए वहां आती है और रोते हुए बोलती है आप लोग मुझे माल-आयटम, भाभी बोले तो ठीक है लेकिन मेरी मां को गाली देने वाले कौन होते हैं. शर्म से मेरी गर्दन झुक जाती है, मुझे मेरी बहन स्नेहा की याद आने लगती है, जिसका दाखिला अभी-अभी मैंने खुद महिला महाविद्यालय में करवाया है. मेरी झुकी हुई गर्दन को देखकर उस लड़की को लगता है कि गाली मैंने दी है वो मुझे संबोधित करते हुए कहती है- ए you black T-shirt!
मैं स्तब्ध होकर उस लड़की से डांट सुन लेता हूं. मेरे कुछ दोस्त जो इस घटना में शरीक थे मामला बिगड़ता देख बेहद ही शराफत से पेश आते हैं और लड़की से कहते हैं- ‘जाने दीजिए मैडम !’ खैर लड़की रोने के साथ-साथ मुझे डांट चली जाती है. मेरे ये दोस्त बाद में मेरे मज़े लेते हैं और मैं उन्हें अपने शारीरिक बल से हड़काता हूं. कुछ को एकाध हाथ लगा भी देता हूं. लेकिन इस घटना के बाद मैं बहुत शर्मिंदा था. बहुत बुरा लग रहा था. इस घटना का ज़िक्र अपने कई मित्रों, शुभचिंतकों और स्नेहा से किया था.
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#2. सरस्वती पूजा का दिन था, उस साल बिरला-अ के छात्रों ने धूमधाम से सरस्वती पूजा नहीं मनाई थी. मैं और विपुल नाली पर बनी उसी पुलिया पर बैठे थे, अंदर मनीष गोस्वामी और प्रीतेश पांडेय के नेतृत्व में माता की छोटी मूर्ति की पूजा अर्चना जारी थी. हम लोग प्रसाद और भोजन के इंतज़ार में बाहर पुलिया पर बैठे हुए थे कि तभी कुछ बच्चे जिनमें 3 लड़कियां और 2 लड़के थे, उसी पुलिया के सामने आकर मिलते हैं.
10-12 साल के ये बच्चे शायद सहपाठी थे, एक दूसरे को जानते थे. शायद बहुत दिनों बाद मिले थे. उनमें से किसी एक की साइकिल बिगड़ गई थी. ये सारे बच्चे आपस में बातचीत करने में मशगूल थे और साइकिल को लेकर परेशान भी. शायद इन्हें बिरला के इतिहास एवं वर्तमान का पता नहीं था. चूंकि दोपहर का समय था, इसलिए हम दोनों के अलावा वहां पर और कोई नहीं था. कुछ अग्रज छत से इस दृश्य को इस संशय के साथ देख रहे थे कि कहीं ये बच्चे इन अनुजों के जान-पहचान के तो नहीं?
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मैं इस बात को लेकर चिंतित था कि ये बच्चे जितनी जल्दी हो सके, यहां से जाएं. मैं विपुल से बार-बार यह कह रहा था कि यार क्या इन लोगों को कुछ पैसा दे दूं, साइकिल बनवा लेंगे और जल्दी यहां से निकल भी जाएंगे. लेकिन साथ ही उस समय बहुत संकोची होने के कारण डर भी रहा था कि लड़कियां गलत ना समझ लें. छत से हमारे अग्रज लगातार नोटिस ले रहे थे कि हमारे अनुज तो इनसे बात नहीं कर रहे हैं और ना ही हमारे अनुज इन्हें छेड़ ही रहे हैं.
लड़कियों को छेड़ना बिरला की परम्परा में शामिल था.
इस बात का भान मुझे मेरे बिरला-ब के आदरणीय अग्रज ने परास्नातक के दौरान करवाया था. हुआ ये था कि मैं बिरला-स से निकल कर क्लास लेने के लिए तेज़ी से जा रहा था. बिरला-स के पीपल वाले चबूतरे पर कुछ लड़कियां निर्भीक होकर बैठी बातचीत कर रही थी कि बिरला-ब की ओर से आ रहे हिंदी विभाग के हमारे एक अग्रज मुझे धिक्कारते हुए बोले-
‘शर्म करो बिरला-स वालों ! अब ये दिन आ गए कि लड़कियां बिरला चौराहे पर बैठने की हिम्मत करें’
उस समय मैंने उस अग्रज को व्यंजना में बहुत ही प्यार से कहा-
‘वाकई में बात शर्म करने लायक है. कोई लड़की बिरला चौराहे पर बैठ कैसे सकती है!’
मेरी व्यंजना को समझकर अग्रज महोदय लोरिक की दुकान की ओर बढ़े और मैं अपनी क्लास की ओर. आज वही अग्रज जब लड़कियों की छेड़खानी के विरुद्ध मोर्चा संभाले हुए हैं तो बहुत क्यूट लग रहे हैं.
अब मैं फिर बिरला-अ की उस घटना पर लौटता हूं. वो पांचों बच्चे आपस में मेल-मिलाप कर रहे थे और मैं डरा हुआ उन्हें देख रहा था कि ये लोग यहां से जल्दी जाते क्यों नहीं. अब हमारे अग्रजों को यह विश्वास हो गया कि ये बच्चे मेरे जान-पहचान वाले नहीं हैं. फिर क्या था, कुछ अग्रज बिरला की परम्परा को जीवित रखने के लिए चिल्लाते हुए छत से नीचे आने लगे. संयोग से उसी समय वो सारे बच्चे वहां से कूच कर गए, मेरे एक अग्रज हांफते हुए आए लेकिन उन्हें निराशा हाथ लगी.
उन बच्चों के वहां से जाते ही हमारी जान में जान आई और मैं और विपुल छात्रावास की ओर प्रसाद पाने के लिए चल दिए. छत से अग्रज ने विपुल से पूछा-
‘का विपुल के रहल हो?’
विपुल के कुछ भी बोलने से पहले मैंने कहा-
‘भैया जो भी थे बहुत छोटे थे, छेड़ना ठीक नहीं लगा.'
BHU में आंदोलन को लड़कों को भी सपोर्ट मिला था
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उस अग्रज का मुंह बन गया लेकिन अनुज को कह भी क्या सकते थे. आज की अग्रजों की तरह उस समय के अग्रज नहीं थे. बिरला-अ में एक साल रहते हुए इस तरह की तमाम घटनाओं को देखा और सुना है. बस में लड़कियों के साथ ज़बरदस्ती की जाती थी, ज़बरदस्ती उनके शरीर को छुआ जाता था. कुछ कुंठित मानसिकता के लड़के उनके उरोजों को दबा लेने के लिए हरसंभव प्रयास करते थे.
एक बार होली मिलन समारोह में (जो कि प्रायः होली से पहले मनाया जाता था) फटे हुए कपड़ों की श्रृंखला बनाकर बिरला-अ से बिरला-स तक नंग-धड़ंग बच्चे जा रहे थे. उसी बीच ब्रोचा की तरफ से IIT की कोई लड़की रिक्शे से आ रही थी. बी.ए प्रथम वर्ष के अनुजों का एक जत्था उस लड़की को अबीर लगाने और उसके शरीर को छू लेने के दौड़ा. मैं और मेरे कुछ साथी उन अनुजों को फटकार लगायी, मैं दौड़ते हुए उस रिक्शे वाले के पास पहुंचा. लड़की मेरे नग्न शरीर को देखकर डर गई. लेकिन जब मैंने रिक्शे वाले को सुरक्षित वहां से निकाला तो उसने मन ही मन कुछ अच्छा ज़रुर कहा होगा मेरे और मेरे कुछ साथियों के बारे में.
BHU का आंदोलन फिलहाल कुछ दिन के लिए टल गया है
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होली के दिन की घटना कभी नहीं भूल सकता. हम चार-पांच साथी होली में घर नहीं गए. खाने-पीने का उचित इंतज़ाम करके छात्रावास में ही रुक गए. बिरला-अ के थर्ड फ्लोर की छतों से BHU की सुनसान सड़कों को निहार रहा था कि इसी बीच एक लड़की की स्कूटी धीरे-धीरे बिरला के सामने से गुजरने लगी. बिरला के सामने से लड़कियां अमूमन स्कूटी बहुत तेज़ भगाती हैं लेकिन उस दिन अचरज से उस लड़की को देख रहा था वो लड़की भी आश्चर्य से बिरला को निहार रही थी.
कुछ देर बाद जब रेडियो खोला तो एक लड़की फ़ोन करके रेडियो जॉकी को बहुत आश्चर्य व्यक्त करते हुए बता रही थी कि आज मैं बहुत स्तब्ध हूं कि बिरला के सामने से गुज़री लेकिन किसी ने गाली नहीं दी और ना ही किसी ने छेड़ा है. लेकिन उस लड़की को शायद ये मालूम नहीं था कि बिरला होली की छुट्टी के कारण खाली था. जो कुछ बच्चे छात्रावास में थे वो भोजन के जुगाड़ में इधर-उधर भटक रहे थे.
इति !
जल्द ही लौटूंगा किसी नए संस्मरण के साथ !



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