
दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन मंडेला. (एएफपी)
हर इंसान की अपनी एक स्वाभाविक भाषा होती है. जिसमें सोचने, महसूस करने की आदत होती है उसे. वो भाषा, जिसके साथ उसके पुरखों का अरजा ज्ञान, उनकी छोड़ी विरासत जुड़ी होती है. क्या हो अगर कोई सरकार लोगों से उनकी अपनी भाषा छीन ले? ऐसा हुआ, तो बहुत मुमकिन है कि लोग बग़ावत कर दें. हमारे पड़ोसी देश चीन में ऐसा ही कुछ हो रहा है. वहां एक इलाके में हज़ारों लोग सड़कों पर उतर आए हैं. जिस इलाके में ये हो रहा है, वहां चीनी सरकार पहले भी काफी दमन करती आई है. सांस्कृतिक क्रांति के नाम पर वहां पहले भी एक लाख से ज़्यादा लोग क़त्ल किए गए. सैकड़ों बौद्ध मंदिर तोड़े गए. ये क्या मामला है, विस्तार से बताते हैं आपको.
चाइनाज़ कल्चरल रेवॉल्यूशन
कहानी की शुरुआत करेंगे एक बरस पहले बंद दरवाज़ों के पीछे हुई एक सीक्रेट अदालती कार्यवाही से. ये बात है 4 अप्रैल, 2019 की. इस रोज़ चीन के एक आदमी पर कोर्ट केस चला. इस शख्स का नाम था- लामजाब बोरजिगिन. 75 साल के लामजाब इतिहासकार हैं. 2006 में उन्होंने एक क़िताब लिखी थी- चाइनाज़ कल्चरल रेवॉल्यूशन. इस क़िताब में कुछ ऐसा लिखा था कि चीन का कोई प्रकाशक इसे छापने को राज़ी नहीं हुआ.

चाइनाज़ कल्चरल रेवॉल्यूशन किताब. (फोटो: smhric.org)
लामजाब को मज़बूरन अपने पैसों से गुपचुप ये क़िताब छपवानी पड़ी. कुल 2,000 प्रतियां छपवाईं लामजाब ने. सरकार को जब इसका पता चला, तो उसने क़िताब पर बैन लगा दिया. आदेश जारी हुआ कि क़िताब की सारी प्रतियां ज़ब्त कर ली जाएं. 2,000 प्रतियों में से 836 कॉपीज़ सीज़ भी कर ली गईं. मगर बाकी की 1,164 प्रतियां बहुत कोशिश के बाद भी सरकार के हाथ नहीं लगीं.
गुस्से में आकर सरकार ने लामजाब पर मुकदमा ठोक दिया. कहा, वो झूठे तथ्य देकर देश तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं. पता है, अदालत में ये केस कितना लंबा चला? केवल तीन घंटे. बंद दरवाज़े के पीछे हुए इस नौटंकीनुमा ट्रायल में लामजाब को अलगाववादी हरक़तों और राष्ट्रीय एकता को ख़तरे में डालने का दोषी पाया गया. वो नज़रबंद कर दिए गए. अब न वो किसी से मिल सकते थे. न कहीं आ-जा सकते थे. न कुछ लिख और छाप सकते थे. न ही, सार्वजनिक तौर पर एक शब्द बोल सकते थे.

चाइनाज़ कल्चरल रेवॉल्यूशन किताब लिखने वाले लामजाब बोरजिगिन. (फोटो: smhric.org)
ऐसा क्या लिख दिया था लामजाब ने कि चीन की सरकार इतना बौखला गई?
दरअसल लामजाब ने चीनी सरकार द्वारा किए गए एक नरसंहार का इतिहास लिख दिया था. लामजाब ने 20 साल तक कड़ी मेहनत की. जगह-जगह घूमकर उस दमन को झेलने वालों की आपबीती रेकॉर्ड की. फिर उसे दुनिया के आगे रख दिया. कौन सा इतिहास लिखा था लामजाब ने? उन्होंने लिखा था इनर मंगोलिया में चीन द्वारा किए गए सांस्कृतिक दमन का इतिहास. 70 के दशक में शुरू हुए इस अभियान में करीब एक लाख लोग मार डाले गए. लगभग साढ़े तीन लाख लोगों को गिरफ़्तार करके उन्हें यातनाएं दी गईं. ये सब इसलिए ताकि इनर मंगोलिया में रहने वाले एथनिक मंगोलियन्स का चीनीकरण किया जा सके. उनकी मूल संस्कृति और पहचान ख़त्म की जा सके.

इनर मंगोलिया चीन का एक स्वायत्त प्रांत है. (गूगल मैप्स)
क्या है ये इनर मंगोलिया?
चीन में पांच स्वायत्त प्रांत हैं. इनमें से ही एक है इनर मंगोलिया. मानचित्र पर देखें, तो चीन की उत्तरी दिशा में मिलेगा आपको इनर मंगोलिया. इससे ठीक सटा हुआ है मंगोलिया, जो कि एक अलग देश है. इसे कई जगह आउटर मंगोलिया भी कहा जाता है. आपको प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक तीरंदाज़ी वाली तस्वीर याद है? वो मई 2015 की फ़ोटो है, जब PM मोदी मंगोलिया के दौरे पर गए थे.

पीएम मोदी जब 2015 में मंगोलिया पहुंचे थे. (फोटो: पीआईबी)
एक जमाने में इनर और आउटर मंगोलिया ग्रेटर मंगोलिया का हिस्सा हुआ करते थे. चंगेज़ ख़ान ने यहीं पर मंगोल साम्राज्य की नींव डाली. उसके पोते कुबलई ख़ान ने युआन वंश की नींव रखी और अपना साम्राज्य चीन तक फैला लिया. 1368 में युआन वंश ढहने लगा. इसके बाद चीन में पहले मिंग और फिर चिंग साम्राज्य आया. इसी चिंग साम्राज्य ने मंगोलिया को चीन में मिलाया. चिंग शासकों ने ही प्राशासनिक सुविधा के मद्देनज़र मंगोलिया को आउटर और इनर यूनिट में बांट दिया.

चंगेज़ ख़ान ने मंगोलिया में मंगोल साम्राज्य की नींव डाली. (एएफपी)
चीन ने बदला इनर मंगोलिया की बसाहट का गणित
चिंग साम्राज्य का अंत हुआ 1911 में. इस बरस चिंग साम्राज्य के खिलाफ़ चीन में एक सफल क्रांति हुई. राजशाही ख़त्म हुई और चीन बना रिपब्लिक ऑफ चाइना. अब मंगोलिया में भी आज़ाद होने की भावना ने ज़ोर पकड़ा. इसमें मंगोलिया की मदद की रूस ने. रूस के सपोर्ट से 1924 में मंगोलिया आज़ाद हो गया. मगर ये आज़ादी पूरे मंगोलिया को नहीं मिली. केवल रूस की सीमा से सटा आउटर मंगोलिया ही आज़ाद देश बना. चीनी भूभाग से सटे इनर मंगोलिया को अपने पास रखने में कामयाब रहा चीन.
चीन के कुल भूभाग में इनर मंगोलिया का हिस्सा है 12 प्रतिशत. मगर चीन के केवल 2 पर्सेंट लोग ही यहां रहते हैं. जैसा कि नाम से ज़ाहिर है, इनर मंगोलिया के मूल निवासी हैं मंगोलियन्स. मगर चीन ने 1911 से ही यहां की बसाहट का गणित बदलना शुरू किया. चीन के बहुसंख्यक हान यहां लाकर बसाए जाने लगे. 1949 की कम्यूनिस्ट क्रांति आते-आते इनर मंगोलिया में मंगोल अल्पसंख्यक हो गए.
बाद के दशकों में भी चीन यहां के लोगों पर अपनी संस्कृति थोपता रहा. मंगोलियन संस्कृति ख़त्म करने की ये कोशिश सबसे ज़्यादा क्रूर हुई 70 के दशक में. कब? जब 1966 में माओ ने चीन में लॉन्च किया कल्चरल रेवॉल्यूशन. इस कैंपेन के नाम पर मत जाइएगा. इसमें क्रांति जैसा कुछ नहीं था. ये कल्चरल रेवॉल्यूशन चीन की कम्यूनिस्ट सत्ता के हाथों हुआ भीषण नरसंहार था. अनुमान के मुताबिक, इसमें तकरीबन साढ़े चार करोड़ लोग मारे गए.

माओ त्से-तुंग (फोटो: एएफपी)
इस कैंपेन में इनर मंगोलिया का क्या हुआ?
चीन को डर था कि यहां के अलगाववादी सोवियत से मदद लेकर आज़ाद होने की कोशिश कर सकते हैं. ऐसे में चीन ने कल्चरल रेवॉल्यूशन के नाम पर सेपरेटिज़म की इस भावना को ही रौंद दिया. यहां एक लाख से ज़्यादा लोग मारे गए. स्थानीय मंगोल नेताओं की चुन-चुनकर हत्या कर दी गई. जो भी इंसान स्थानीय आबादी को एकजुट कर सकता था. उन्हें प्रभावित कर सकता था. हर उस शख्स को निशाना बनाया गया.
क्या इसके बाद इनर मंगोलिया में सांस्कृतिक दमन बंद हो गया?
जवाब है, नहीं. जैसे तिब्बत के बौद्ध और शिनजियांग के उइगर प्रताड़ित होते आए हैं. वैसा ही इनर मंगोलिया की मंगोल आबादी के साथ भी होता रहा है. इनकी परेशानी ये है कि इन्हें दलाई लामा जैसा कोई लीडर नहीं मिला. ऐसा लीडर, जिसके मार्फ़त इनकी तकलीफ़ दुनिया के आगे हाईलाइट हो सके.
कैसी तकलीफ़? हाशिये पर धकेल दिए जाने की तकलीफ़. यहां के मंगोलों से उनकी ज़मीनें छीन ली गईं. माइनिंग के लिए उनके चारागाह ख़त्म कर दिए गए. उनपर मंडारिन लाद दी गई. ज़्यादातर मंगोल बौद्ध थे. उनसे जबरन उनका धर्म छीन लिया गया. उनके मंदिर और मठ तोड़ डाले गए. उनका प्राचीन साहित्य जला दिया गया. आज की तारीख़ में इनर मंगोलिया की कुल आबादी है करीब ढाई करोड़. इसमें 20 पर्सेंट से भी कम लोग एथनिक मंगोल हैं. इन गिनती के लोगों को भी मौके नहीं मिलते. सरकारी नौकरियों से लेकर माइनिंग और बाकी इंडस्ट्री भी हान बहुसंख्यकों के हाथ में है.

चीन ने कल्चरल रेवॉल्यूशन के नाम पर मंगोल नेताओं की चुन-चुनकर हत्या की. (एएफपी)
अब आप पूछेंगे कि ये तो लंबे समय से चलता आ रहा है. फिर हम आज क्यों बता रहे हैं ये सब आपको?
इसलिए बता रहे हैं कि इनर मंगोलिया से एक बड़ी ख़बर आई है. चीन की सरकार ने मंगोलों की बची-खुची पहचान को कुचलने के लिए एक फैसला लिया है. इसके तहत, इनर मंगोलिया के स्कूलों में मंगोलियन भाषा को फेज़ आउट किया जा रहा है. वहां प्राथमिक और मिडिल स्कूलों के टीचर बच्चों को मंगोलियन भाषा में नहीं पढ़ाएंगे. वो इसकी जगह मंडारिन भाषा का इस्तेमाल करेंगे.
आप कहेंगे, इसमें कौन सी बड़ी बात है? बड़ी बात है. प्राथमिक और मिडिल स्कूल, यानी बच्चे के शुरुआती साल. इनमें बच्चे को मंडारिन भाषा में सोचने का अभ्यस्त बना दिया जाएगा. घर पर भले मंगोलियन इस्तेमाल होती हो. मगर सारी पढ़ाई मंडारिन में होने के कारण चीजों को देखने और बूझने की उसकी समझ मंडारिन की आदी हो जाएगी. यानी इन स्कूली बच्चों समेत आने वाली मंगोलियन पीढ़ियां रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपनी मूल भाषा को बरतना भूल जाएंगी. चीन के सभी अल्पसंख्यक मूल निवासियों के साथ यही सलूक हो रहा है. उनके तौर-तरीके खर-पतवार की तरह बेकार और उखाड़ फेंकने लायक समझे जाते हैं.
सरकार के इस फैसले पर मंगोल क्या कर रहे हैं?
वो प्रदर्शन कर रहे हैं. हज़ारों-हज़ार मंगोल इस पॉलिसी के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं. ये प्रोटेस्ट पिछले एक हफ़्ते से चल रहा है. लोगों का कहना है कि संस्कृति के नाम पर उनके पास केवल अपनी भाषा ही बची है. ये ख़त्म हो गई, तो मंगोलियन पहचान का कोई निशान नहीं बचेगा. औरतें, बच्चे, युवा, बुजुर्ग सब शामिल हैं इस प्रोटेस्ट में. जिनके बच्चों की पढ़ाई पूरी हो गई, वो भी हिस्सा ले रहे हैं.

इनर मंगोलिया में हफ्ते भर से विरोध प्रदर्शन जारी है. (एएफपी)
रेडियो फ्री एशिया के मुताबिक, 30 अगस्त को प्रोटेस्ट के दौरान एक स्कूली बच्चे ने स्कूल की चौथी मंज़िल से कूदकर जान दे दी. इसलिए क्योंकि पुलिस ने प्रदर्शन कर रही उसकी मां को हिरासत में ले लिया था. कई जगहों पर बच्चों को स्कूल के भीतर बंद किए जाने की ख़बर आ रही है. कई जगहों पर पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाई हैं. दर्जनों लोगों को अरेस्ट भी किया गया है.
मंगोलियन भाषा का इकलौता सोशल मीडिया साइट बंद करवा दिया गया है
प्रदर्शन जितना बढ़ रहे हैं, सरकार उतनी ही उग्र हो रही है. स्थानीय बुकस्टोर्स से मंगोलियन भाषा की किताबें हटा दी गई हैं. सोशल मीडिया पर मंगोलियन भाषा के अकाउंट्स भी बंद करवाए जा रहे हैं. बाइनू नाम का एक सोशल मीडिया अकाउंट भी बंद करवा दिया गया है. ये मंगोलियन भाषा का इकलौता सोशल मीडिया साइट था चीन में.
चीन की इस सख़्ती के बावजूद मंगोल आबादी शांत होने को राज़ी नहीं. मंगोल इस विरोध को लेकर इतने गंभीर हैं कि मंगोल समुदाय के पुलिसकर्मी अपनी ही कम्यूनिटी के प्रोटेस्टर्स पर लाठी चलाने से इनकार कर रहे हैं. मंगोल सरकारी अधिकारियों ने भी प्रोटेस्ट में शामिल न होने के सरकारी फैसले की अवमानना कर दी है. ख़बरों के मुताबिक, पिछले एक दशक में यहां इतने बड़े स्तर का प्रदर्शन नहीं हुआ.
नई भाषा सीखना अच्छी बात है. कई भाषाएं जानना ब्लेसिंग है. मगर इसका मतलब ये नहीं कि लोगों से उनके पुरखों की भाषा जबरन बिसरा दी जाए. दुनिया में तकरीबन सात हज़ार भाषाएं बची हैं. इनमें से एक तिहाई भाषा ऐसी हैं, जिसे बोलने वाले हज़ार से भी कम लोग बचे हैं. यूनेस्को एटलस ऑफ द वर्ल्ड्स लैंग्वेज़ेस के मुताबिक, हर दो हफ़्ते में एक भाषा ख़त्म हो रही है. उसे बोलने वाला आख़िरी इंसान मर रहा है. अगली एक सदी में 50 से 90 पर्सेंट भाषाएं ऐसे ही लुप्त हो जाएंगी. सोचिए, इन भाषाओं के साथ कितना सारा ज्ञान, कितनी पीढ़ियों का तजुर्बा भी दुनिया से लुप्त हो जाएगा.
विडियो- स्वीडन दंगे के पीछे की पूरी कहानी