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कौन हैं प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े, जिन पर नरेंद्र मोदी की हत्या की प्लानिंग का आरोप लगाया गया?

30 से ज़्यादा क़िताबें लिखने वाले आनंद तेलतुंबड़े.

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प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े
3 फ़रवरी, 2019. एक 68 साल के मैनेजमेंट के प्रोफेसर को मुंबई एयरपोर्ट पर भोर 3:30 बजे हिरासत में ले लिया गया. प्रोफेसर पर आरोप था. कहा गया कि उन्होंने पैसे लिए कि भारत में माओवादी गतिविधियों को बढ़ावा दिया जा सके. ये भी आरोप कि इस पैसे का उपयोग छात्रों के एक समूह को पेरिस ले जाने के लिए किया गया. इसी दिन दोपहर तीन बजे के आसपास इस प्रोफेसर को स्पेशल जज किशोर वडने की अदालत में पेश किया गया.
प्रोफेसर के वकीलों ने बताया कि उनकी गिरफ़्तारी पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई हुई है. कोर्ट ने तुरंत महाराष्ट्र पुलिस को फटकार लगाई. बताया कि गिरफ़्तारी अदालत के आदेश की अवमानना है. इस समय कोर्ट में एक और आदमी मौजूद था. इस आदमी का नाम था- प्रकाश आंबेडकर. भीमराव आंबेडकर के पौत्र. और गिरफ़्त में लिया गया प्रोफेसर रिश्ते में उनके सगे जीजा. नाम- आनंद तेलतुंबड़े.
अब आनंद तेलतुंबड़े की बेल की मियाद ख़त्म हो चुकी है. 14 अप्रैल को आत्मसमर्पण किया. गिरफ़्तार कर लिए गए. भेज दिए गए राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी NIA की हिरासत में. क्यों? क्योंकि 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव हिंसा की साज़िश का आरोप है उन पर. 
आनंद तेलतुंबड़े कौन हैं?
आनंद तेलतुंबड़े एक स्कॉलर हैं. 30 से ज़्यादा किताबें लिख चुके हैं. तेलतुंबड़े गोवा 'इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट' में मैनेजमेंट के प्रोफेसर हैं. लेकिन इन सारी पहचान के बराबर एक और पहचान है. तेलतुंबड़े मानवधिकार कार्यकर्ता हैं. दलितों और वंचितों के अधिकारों के लिए संघर्ष करते हैं. लिखते हैं.
महाराष्ट्र के यवतमाल में जन्मे तेलतुंबड़े मूलतः दलित किसानों के परिवार से आते हैं. शुरुआती पढ़ाई के बाद तेलतुंबड़े ने नागपुर के विश्वेश्वरैया इंस्टीट्यूट ऑफ़ टेक्नॉलजी से मेकैनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल की. इसके बाद तेलतुंबड़े चले गए IIM अहमदाबाद. यहां से मैनेजमेंट की पढ़ाई और उसके बाद मुंबई यूनिवर्सिटी से Ph.D. इसी समय तेलतुंबड़े भारत पेट्रोलियम में काम करने लगे थे.
तेलतुंबड़े की शादी हुई. भीमराव आंबेडकर की पोती रमा आंबेडकर से. भारत पेट्रोलियम में नौकरी करने के बाद IIT खड़गपुर चले गए. वहां पढ़ाना शुरू किया. 2016 में आ गए गोवा और अब तक यहीं के मैनेजमेंट संस्थान में कार्यरत हैं. तेलतुंबड़े ने भारत की जातीय संरचना और इस संरचना के राजनीतिक सम्बन्धों पर निबंध लिखे हैं. बहुत जगहों पर बात रखी है. मूलतः अंग्रेज़ी और मराठी में.
क्या है मामला?
1 जनवरी, 1818. महाराष्ट्र का भीमा कोरेगांव. घटना है कि चमड़े का काम करने वाले महारों की भारी संख्या के साथ ब्रिटिश आर्मी के 800 जवानों ने मराठा पेशवाई पर हमला किया. पेशवा बाजीराव द्वितीय की हार हो गयी. जीत के महत्त्व को स्थापित करने और मारे गए सैनिकों की याद में कोरेगांव में विजय स्तम्भ लगाया गया.
भीमा कोरेगांव का विजय स्तम्भ (तस्वीर : विकीमीडिया) भीमा कोरेगांव का विजय स्तम्भ (तस्वीर : विकीमीडिया)

साल 1928. भीमराम आंबेडकर पहली बार भीमा कोरेगांव आए. एक सभा को संबोधित किया. चूंकि महार दलित थे और पेशवा चितपावन ब्राह्मण थे, तो महारों की पेशवा पर विजय को जातीय उन्मूलन के बड़े प्रयास के रूप में आंबेडकर ने स्थापित किया. एक बड़े हिस्से को लगने लगा कि दलितों की उत्पीड़न के खिलाफ़ लड़ाई के एक अध्याय का अंत है. आंबेडकर के जाने के बाद समकालीन भारत में इसी रूप में इस जगह की पहचान बनी. इसके बाद से हर साल 1 जनवरी को महार समुदाय के लोगों का जमावड़ा होता. क्यों? क्योंकि हर साल भीमा कोरेगांव युद्ध और पेशवाई पर विजय का उत्सव मनाना था. 
भीमा कोरेगांव के स्मृति स्तम्भ पर अपने समर्थकों के साथ भीमराव अम्बेडकर भीमा कोरेगांव के स्मृति स्तम्भ पर अपने समर्थकों के साथ भीमराव आंबेडकर

1 जनवरी, 2018. भीमा कोरेगांव युद्ध को 200 साल पूरे हो रहे थे. वो भी आज़ादी के बाद पहली बार. इसको ज़ोर-शोर से मनाने की योजना थी. इसके ठीक एक दिन पहले यानी 31 दिसम्बर, 2017 को पुणे के शनिवारवाड़ा, यानी पेशवाओं के क़िले में एक सभा हुई. सभा को कहा गया ‘एल्गार परिषद”. एल्गार = यलगार = गर्जना. सभा में बहुत सारे लोग शामिल हुए. योजना थी अगले दिन होने वाले भीमा कोरेगांव की बरसी को शानदार बनाने की.
पेशवाओं की गद्दी पर भीमा कोरेगांव को लेकर मीटिंग करने को बड़े क़दम की तरह देखा गया. यहां गुजरात से विधायक जिग्नेश मेवाणी, रोहित वेमुला की मां राधिका वेमुला, मानवाधिकार कार्यकर्ता सोनी सोरी, प्रकाश आंबेडकर, भीम आर्मी के विनय रतन सिंह, उमर ख़ालिद और बॉम्बे हाई कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीजी खोसले पाटिल शामिल हुए. दिनभर कार्यक्रम चला. सांस्कृतिक कार्यक्रम. भाषण. बहुत कुछ. 
अगले दिन भीमा कोरेगांव में कार्यक्रम था. हिंसा हुई. एक व्यक्ति की जान चली गयी. इसके बाद पुणे पुलिस ने जांच शुरू की. सबसे पहले संभाजी भिड़े और मिलिंद इकबोटे का नाम आया. इन पर आरोप ये कि इन्होंने मामला भड़काया, जिस वजह से शांति से चल रहा कार्यक्रम भंग हुआ. ये भी बात उठी कि संभाजी भिड़े और मिलिंद इकबोटे सत्तारूढ़ भाजपा के साथ मिले हुए हैं. गिरफ़्तारी हुई. लेकिन कुछ दिनों बाद ही एक जांच कमिटी ने इन दोनों को आरोपों से बरी कर दियी.
भीमा कोरेगांव. 1 जनवरी 2018 (PTI) भीमा कोरेगांव. 1 जनवरी 2018 (PTI)

जांच फिर से आगे बढ़ी. मामला दर्ज किया गया. पुलिस ने कुछ मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर आरोप लगाए. कहा कि इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने माओवादियों से पैसा लेकर कार्यक्रम का आयोजन किया. साथ ही इस आयोजन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जान से मारने की रणनीति पर काम किया. जून, 2018 में पुलिस ने गिरफ़्तारी शुरू की. सबसे पहले स्कॉलर और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं सुरेंद्र गाडलिंग, सुधीर धवले, रोना विल्सन, शोमा सेन और महेश रावत को गिरफ़्तार किया गया. अगस्त, 2018 में वरवर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्नन गोन्सालवेज़ को गिरफ़्तार किया.
इसी क्रम में 29 अगस्त, 2018 को पुलिस ने तेलतुंबड़े के घर पर छापा मारा. उन पर भी यही आरोप. हिंसा भड़काने के. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करने की साज़िश करने के. तेलतुंबड़े को अग्रिम ज़मानत मिली. 3 फ़रवरी को हुई गिरफ़्तारी के बाद जब कोर्ट ने उन्हें तत्काल रिहा करने का आदेश दिया, उस समय तेलतुंबड़े ने सरकार पर प्रताड़ना देने और असहमति को अपराध बना देने के आरोप लगाए. 2019 में कुछ भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और वकीलों के फ़ोन में इज़रायल का बनाया जासूसी सॉफ़्टवेयर पाया गया था. तेलतुंबड़े इस सॉफ़्टवेयर 'पेगासस' के शिकारों की फ़ेहरिस्त में शामिल थे. 
तेलतुंबड़े पर UAPA के भी चार्ज लगाए गए. गिरफ़्तारी से बचने के लिए वो सुप्रीम कोर्ट गए. लेकिन 16 मार्च, 2020 को सुप्रीम कोर्ट ने UAPA के तहत दर्ज मामले में अग्रिम ज़मानत देने से इनकार कर दिया. अदालत ने तेलतुंबड़े को तीन हफ़्ते का समय दिया. आत्मसमर्पण करने के लिए. 8 अप्रैल को जस्टिस अरुण मिश्रा की अदालत ने तेलतुंबड़े को आदेश दिया. कहा कि 14 अप्रैल को NIA के सामने आत्मसमर्पण करें. 14 अप्रैल यानी भीमराव अम्बेडकर का जन्मदिन. इसी दिन तेलतुंबड़े ने आत्मसमर्पण किया. और अब तक NIA की हिरासत में.
कितने दोषी हैं तेलतुंबड़े?
इस सवाल का पूरा जवाब अब तक नहीं आ सका है. लेकिन तेलतुंबड़े का जीवन और उनकी लिखाई इस पूरे मामले पर उनकी संलिप्तता पर अलग ही दृष्टि डालते हैं. उनका एक लेख है. 2 जनवरी, 2018 को 'दी वायर' में प्रकाशित हुआ. इस लेख में तेलतुंबड़े ने कहा कि आंबेडकर ने जो भीमा कोरेगांव युद्ध में महारों की विजय को एकदम मिथक से लाकर जोड़ दिया. महारों की पेशवा पर विजय कोई जातीय उत्पीड़न की लड़ाई की उपलब्धि के रूप में नहीं देखी जा सकती है. लेकिन तेलतुंबड़े ने ये भी कहा कि मिथक बनाना एक आंदोलन खड़ा करने के लिए ज़रूरी है.
तेलतुंबड़े ने ये भी दावा किया कि ईस्ट इंडिया कम्पनी ने बड़ी संख्या में दलितों को अपनी सेना में जगह दी थी. इसके दो कारण थे. एक तो दलित प्रमुख रूप से ईमानदार थे, और उन्हें कम पैसे भी दिए जा सकते थे. 1757 के प्लासी युद्ध से लेकर मराठाओं से युद्ध तक, हर बार अंग्रेज़ों ने सत्ता से लड़ाई की. न कि किसी हिंदू पेशवा से या न किसी मुस्लिम सेना से. तेलतुंबड़े ने ये भी लिखा कि ऐसा नहीं है कि महार सिर्फ़ ब्रिटिश सेना में थे और मुस्लिम शासकों की सेनाओं में या मराठा सेनाओं में नहीं थे. वे वहां भी थे. ऐसा भी नहीं है कि 1818 की जीत के बाद महारों का जातीय उत्पीड़न बंद हो गया हो. वो भी जारी ही रहा. ऐसे में भीमा कोरेगांव में मिथक के होने से इतिहास की ग़लत तस्वीर बन रही है, ऐसा तेलतुंबड़े के लिखे से दावा मिलता है. 
आनंद तेलतुंबड़े के भाई माओवादी मिलिंद तेलतुंबड़े आनंद तेलतुंबड़े के भाई माओवादी मिलिंद तेलतुंबड़े

ये तो हो गयी भीमा कोरेगांव और एल्गार परिषद में तेलतुंबड़े की संलिप्तता के बारे में. माओवादियों से जुड़े होने की बात कहां से आती है? तेलतुंबड़े के बारे में ये बात लम्बे समय से उनके भाई की वजह से कही जाती रही है. उनके भाई का नाम मिलिंद तेलतुंबड़े. मिलिंद तेलतुंबड़े इस समय CPI (माओवादी) के महाराष्ट्र राज्य कमिटी के सचिव की तरह काम कर रहे हैं. मतलब माओवादी. उन्हें माओवादियों के सर्किल में दीपक, प्रवीण, सुधीर औए अरुण के नाम से भी जाना जाता है.
पुलिस की मानें, तो मिलिंद महाराष्ट्र के गढ़चिरौली इलाक़े में ज़्यादा एक्टिव रहते हैं. बीते कई वर्षों से अंडरग्राउंड हैं. मिलिंद तेलतुंबड़े पर आरोप हैं कि उन्होंने एल्गार परिषद और भीमा कोरेगांव हिंसा की फ़ंडिंग की. साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जान से मारने की प्लानिंग की थी. मिलिंद तेलतुंबड़े पर 50 लाख रुपयों का इनाम है. 
और इधर हैं आनंद तेलतुंबड़े. कहना है कि सरकार आवाज़ दबाना चाहती है. विदेशी मीडिया ने भी उनकी गिरफ़्तारी पर कलम चलाई है. आरोप केंद्र सरकार पर हैं. आत्मसमर्पण करते हुए तेलतुंबड़े ने एक ख़त लिखा था. उसमें उन्होंने कहा,
"मेरा पांच दशकों का बेदाग रिकॉर्ड है, मैंने कॉर्पोरेट दुनिया में, एक शिक्षक, नागरिक अधिकार कार्यकर्ता और बुद्धिजीवी के तौर पर अलग-अलग भूमिकाओं में देश की सेवा की है. मेरे लेखन की लंबी सूची है, जिसमें 30 से अधिक किताबें हैं, ढेर सारे शोध पत्र, लेख, कॉलम और इंटरव्यू हैं, जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रकाशित हुए हैं. उन सबमें हिंसा या विध्वंस का कोई समर्थन आपको नहीं मिलेगा."
ख़त के आख़िरी हिस्से में तेलतुंबड़े ने लिखा,
"मैं एनआईए की कस्टडी में जा रहा हूं. मैं नहीं जानता कि आपसे दोबारा कब बात कर पाऊंगा. मैं उम्मीद करता हूं कि आप बोलेंगे और अपनी बारी आने से पहले बोलेंगे."



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