महाराष्ट्र (Maharashtra) के अमरावती में कैमिस्ट उमेश कोल्हे की हत्या तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने की थी. NIA की चार्जशीट में ऐसा कहा गया है. इसके मुताबिक उमेश की हत्या एक सोची समझी साजिश के तहत की गई थी. तबलीगी जमात से जुड़े लोगों ने उनका गला काटा था, ताकि आम आदमी के मन में डर पैदा किया जा सके. NIA ने अपनी चार्जशीट में कहा है कि मर्डर के 11 आरोपी तब्लीगी जमात के इस्लामिक कट्टरपंथी थे.
जिस तबलीगी जमात के लोगों पर कैमिस्ट का गला काटने का इल्ज़ाम लगा, उसका सच तो जान लो
NIA का कहना है कि पैगंबर पर कथित टिप्पणी के बाद जमात से जुड़े लोग कैमिस्ट का सिर धड़ से अलग करने पहुंचे थे

अमरावती के उमेश कोल्हे (54) की 21 जून को काम से लौटते समय तीन हमलावरों ने बेरहमी से हत्या कर दी थी. हमलावर भाजपा प्रवक्ता नूपुर (Nupur) के समर्थन में उमेश की व्हाट्सएप पोस्ट से नाराज थे. नूपुर ने टेलीविजन शो में पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी की थी.
इस ख़बरों को मोटामोटी समझने के बाद एकदम आसान भाषा में समझते हैं कि तबलीगी जमात या मरकज़ जो शब्द हैं, उनका क्या मतलब है? इन शब्दों की परिभाषा क्या है?
मिशनरी शब्द सुना है. ईसाई धर्म के साथ नाम गिना जाता है. मिशन होता है ‘धर्म का प्रचार’. तबलीगी का मतलब भी यही होता है. तबलीग़ी का मतलब अल्लाह की कही बातों का प्रचार करने वाला. इसके बाद का शब्द है जमात. जमात या और सुधारकर कहें तो ‘जमाअत’ का अर्थ एकदम सिंपल. मतलब समूह, झुंड, क़तार. यानी तबलीग़ी जमात का मतलब हुई अल्लाह के संदेशों का प्रचार करने वाला समूह.
इसके बाद वाला शब्द है मरकज़. मीटिंग रूम, या मीटिंग स्पेस सुना है? बस बस. मरकज़ भी वही. मतलब मिलने या मीटिंग करने की जगह. तीनों शब्दों को मिला लीजिए. आपको समझ में आ जाएगा. वो तबलीग़ी जमात की मीटिंग का मरकज. कई सौ लोग पूरे देश भर से शिरकत करते हैं. देश के अलग-अलग इलाक़ों से. इसलिए कोरोना का पॉज़िटिव केस कुछ परेशान करने वाली ख़बर है.
कैसे काम करता है तबलीग़ी जमात?मरकज़ से देश के अलग-अलग हिस्सों के लिए निकलते हैं अलग-अलग तबलीग़ी जमात. कम से कम तीन दिन, पांच दिन, दस दिन, 40 दिन और चार महीने तक के लिए जमातें निकाली जाती हैं. एक जमात में 8-10 लोग होते हैं. जिसमें से 2 लोग सेवा के लिए होते हैं. खाना बनाते हैं.
जमात के लोग सुबह और शाम के वक़्त शहर में निकलते हैं. घरों-घरों तक जाते हैं. और लोगों से नज़दीकी मस्जिद में पहुंचने के लिए कहते हैं. लोगों के मस्जिदों तक पहुंचने के बाद हदीस और क़ुरान का सारांश और मतलब लोगों से साझा करते हैं.
अगर मन में सवाल हो तो जान लीजिए. तबलीग़ी जमात के संचालन और उसकी स्थापना के पीछे का सिद्धांत साफ़ है. शांति से अल्लाह का संदेश लोगों के बीच पहुंचाना. इसमें हिंसा और राजनीति का कोई स्थान नहीं है.
कैसे और कब हुई शुरुआत?जब भारत में ब्रिटिश राज था, उस समय तबलीग़ी जमात की नींव पड़ी. क्यों नींव पड़ी? क्यों ब्रिटिश राज के पहले देश में मुग़ल थे. अब जैसा लिखा मिलता है, मुग़लों के समय बहुतेरे लोगों ने इस्लाम क़ुबूल किया. लेकिन मुग़लों के जाने के बाद जब ब्रिटिश आए तो उसी समय आर्य समाजियों का आंदोलन शुरू हुआ. उन्होंने कई मुस्लिमों का तथाकथित शुद्धिकरण करवाना और हिंदू धर्म में परिवर्तन कराना शुरू किया. इसको रोकने, या कहें कि मुसलमानों को इस्लाम में रोके रखने के लिए तबलीग़ी जमात की ज़रूरत पड़ी. 1927 का साल था. निज़ामुद्दीन में मौजूद एक मस्जिद में मौलाना इलियास कांधलवी ने तबलीग़ी जमात का गठन किया. उद्देश्य? मुसलमानों को अपने धर्म में बनाए रखना और इस्लाम का प्रचार. तभी से दिल्ली के निज़ामुद्दीन इलाका तबलीग़ी जमात का केंद्र भी है.
ठंडेपन के बाद फिर से जमी जमातकहते हैं कि अपने गठन के बाद के कुछ समय तक तबलीग़ी जमात शांत रहा. गतिविधि कम रही. लेकिन साल 1941 आते-आते एक बार फिर से तबलीग़ी जमात को जमाया गया. मौलाना इलियास इसे दिल्ली से लगायत मेवात ले गए. वहां 25 हज़ार लोगों के साथ मीटिंग हुई. और बस. जम गया मामला.
साल 1946 तक आते-आते देश के कई हिस्सों में तबलीग़ी जमात फैल चुके थे. साल 1947 में भारत के विभाजन के बाद पाकिस्तान और बांग्लादेश का कालांतर में जन्म हुआ. और साल 1947 से ही तबलीग़ी जमात का भारत के बाहर भी ठिकाना बनने लगा. इसके बाद से तबलीग़ी जमात दक्षिण एशिया के दूसरे देशों के साथ-साथ यूरोप और अन्य एशियाई देशों में भी फैलने लगा. खाड़ी देशों तक गया. और यूं ही देश दुनिया के इलाक़ों से तबलीग़ी जमात के लिए पैसा आने लगा. चंदे के रूप में.
और इसी चंदे से तबलीग़ी जमात का ख़र्च चलता है. हर साल इज़्तेमा, यानी सालाना जलसा, का भी आयोजन होता है. इसमें लाखों के संख्या में मुस्लिम समुदाय के लोग और इस्लामिक स्कॉलर शिरकत करते हैं. और ‘बेहतर इंसान’ बनने की हिदायत और सीख के साथ विदा होते हैं.
वीडियो: दिल्ली आए ओवैसी ने तबलीगी जमात, दिल्ली दंगों, शाहीन बाग पर केजरीवाल को बहुत कुछ बोल दिया!