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400 करोड़ का अंदाजा था, 2000 करोड़ हो सकती है भजियावाले की प्रॉपर्टी

भजिये के बिजनेस में थे, इसलिए किशोर का टेस्ट प्रॉपर्टी में भी बढ़िया है.

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हमारे देश में चाय वालों ने प्रेरणा देने का ठेका ले रखा है. अपनी सक्सेस स्टोरी से कोहराम मचा रखा है. और संयोग से लेटेस्ट किस्सा भी गुजरात से ही है. सूरत से. और चाय के साथ दो और 'एड-ऑन' हैं - भजिया और फाइनेंस. सूरत के किशोर भजियावाला, जो एक समय चाय बेचा करते थे (ये वाक्य सुना-सुना लगता है न?) चहुंओर फेमस हुए जा रहे हैं. ये सूरत में एक फाइनेंसर के तौर पर पहले से फेमस थे. अब देश भर में हो रहे हैं. क्योंकि आयकर विभाग वाले दिन-रात एक कर के भी हिसाब नहीं लगा पा रहे कि चाय और भजिया किशोर साहब को कितनी दूर ले गए हैं. आयकर वाले बेचारे 13 दिसंबर से लगे हुए हैं लेकिन उनका हिसाब हर बार गलत निकल जा रहा है. कभी कोई लॉकर निकल आता है कभी कोई दुकान तो कभी कोई अकाउंट. कल तक 400 करोड़ की ज़ब्ती अनुमान अब बढ़ते-बढ़ते 2000 करोड़ तक पहुंच गया है. किशोर भजियावाला की 'छोटी सी' दुनिया में झांक कर आयकर वालों ने अब तक 400 से ज़्यादा प्रॉपर्टीज़ के दस्तावेज़ ढूंढे हैं. भजिये के व्यवसाय में थे, इसलिए किशोर का टेस्ट प्रॉपर्टी में भी बढ़िया है - सूरत, नवसारी, सापूतार, वलसाड, डांग, मुंबई, नासिक, पुणे - है न ? बड़ा दिल था, इसलिए किशोर ज़रूरतमंदों को ब्याज पर पैसा देते थे. बस 'टोकन-जेश्चर' में उसकी प्रॉपर्टी अपने नाम लिखवा लेते थे. लालच नहीं था, इसलिए सब दस्तावेज़ अपने नाम नहीं किए. पत्नी को भी दिया. बेटी को भी. दो बेटों को भी. घर में थोड़ा-बहुत सोना चांदी रहे, तो बेहतर रहता है. ज़रूरत के समय काम आता है. बुजुर्गों की सीख है. इसलिए किशोर ने भी 25 किलो सोना रख रखा था और 307 किलो चांदी. बस. और हां, एक किलो हीरे के ज़ेवर भी. इतना तो चलता है. है न? बाकि नोट वगैरह ज्यादा नहीं थे. किशोर बाकायदा आईडी लेकर लाइन में लगे थे. एटीएम भी गए थे. इस सब से उनके पास 1.5 करोड़ की पिंकी जमा हुई थी, माने 2000 के नए नोट. जो पुराने 500-1000 के नोट बदलने थे, वो कुल बस 23 लाख थे. 5-10-20 की चिल्लर 10 लाख बराबर मिले हैं. और सारा पैसा कैश नहीं रखना चाहिए, कुछ पैसा बैंक में भी जमा करना चाहिए, इसलिए किशोर ने सूरत के पीपल्स कोऑपरेटिव बैंक, बैंक ऑफ़ बड़ौदा और एचडीएफसी बैंक में खाते भी खुलवा रखे थे. एक बैग भी मिला है, जिसमें शेयर बाज़ार में निवेश के दस्तावेज़ हैं. और आज के ज़माने में गाड़ी जितनी ज़रूरी चीज़ है, उस हिसाब से किशोर ने कुछ गाड़ियां ले रखी थीं - बीएमडब्ल्यू, ऑडी, मर्सिडीज़. बस. आयकर वाले पता नहीं क्यों किशोर के पीछे पड़े हैं. उनका तो घर तक नहीं बना है. कुछ ही दिन पहले तो उन्होंने सूरत के वेसु इलाके में ज़मीन लेकर घर बनाना शुरू किया था. सूरत वाले बताएंगे कि वहां भाव ज़्यादा नहीं है. डेढ़ लाख रुपए गज़. बस. किशोर की कहानी भी 'गुरु' के गुरुकांत देसाई जैसी है. आदमी कहां से कहां पहुंच गया है. और इतना गलत भी क्या कर दिया. लेकिन सरकार 'काम नहीं करने दे रही'. कल सुना कि उनकी कई दिन से बंद एक दुकान को भी खोल के झाड़-पोंछ की जा रही है. गलत बात. आदमी की प्राइवेसी का लिहाज़ रखा जाना चाहिए. आयकर वालों का नाक-मुंह सिकोड़ना जल्दी बंद हो और किशोर जी के दिन जल्दी बहुरें यही मेरी कामना है. ताकि वे और आगे जाएं. तब मैं उन पर ख़ुशी-ख़ुशी एक और स्टोरी करूंगा.