नतीजे पर पहुंचने के लिए यूनेस्को ने बड़े पैमाने पर सर्वे किया. स्टेट बैंक, पंजाब नेशनल बैंक, यूनियन बैंक जैसी सरकारी बैंकों के अलावा HDFC और ICICI जैसी बड़ी प्राइवेट बैंकों की ब्रांच में अपने आदमी लगाए. एक दिन नहीं 17 दिन. कहीं कैश नहीं मिला. वो आदमी ब्रांचों से निकलकर इन्हीं बैंकों के एटीएम की लाइन में लगे. पहले के तीन चार दिन लगे रहे. पैसा भरने वाली गाड़ी नहीं आई. ये लोग रात में कंपनी के ऑफिस लौट आते थे. फिर यूनेस्को ने इनके लिए वहीं एटीएम के सामने पुआल बिछाकर कंबल दे दिए.फिर ये लोग रात दिन एटीएम के सामने ही लगे रहने लगे. तीन चार दिन और गाड़ी नहीं आई. लाइन में लगने पर इन लोगों को काफी असुविधा का सामना करना पड़ रहा था. क्योंकि बीच में भूख लग जाती तो इनको खाना खाने लाइन से बाहर निकलना पड़ता था. चौराहे तक जाने और 25 रुपए वाला आलू प्याज पराठा खाकर लौटने में देर हो जाती. तो लोग इनको बीच लाइन में घुसने नहीं देते थे. इसलिए कंपनी ने इनको छोटा 4kg गैस सिलेंडर और चूल्हा वहीं लाइनों में मुहैया करा दिया. राशन पानी पिट्ठू बैगों में बांधकर दे दिया गया. इस तरह एक हफ्ता और गुजर गया. आखिर एक दिन गाड़ी आ गई. जब ये सर्वे मुंबई में हो रहा था तो लाइन पुणे तक लगी हुई थी. लाइन के किनारे किनारे खीरे, मूंगफली, नमकीन सेव, बर्गर वगैरह बेचने वालों की अस्थाई दुकानें खुल गई थीं. ये सारे लोग डेबिट कार्ड से पेमेंट ले रहे थे. इससे यूनेस्को को पक्का पता चल गया कि ये लोग कैशलेस हो चुके हैं. बाकी का काम लाइन में लगे उनके लोगों ने पूरा किया. जैसे ही उनका नंबर आने वाला होता था. पचास लोग बचे और एटीएम में कैश खत्म हो गया. इस तरह ये कन्फर्म हो गया कि बैंक की ब्रांचों से लेकर एटीएम तक कैशलेस हो चुके हैं.

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