सरकार ने कहा है कि बिना लाइसेंस के बूचड़खाने बंद होंगे और लाइसेंस वाले नियम फॉलो करें तो कोई दिक्कत नहीं है. मुख्यमंत्री ने पशुओं की स्मगलिंग पर पूरा बैन लगा दिया है. इसमें जीरो टॉलरेंस की पॉलिसी है.
इलाहाबाद, बनारस, आगरा और गाजियाबाद में तो बिना परमिट वाले बूचड़खाने बंद हो ही गए. हाथरस में अज्ञात लोगों ने 3 मीट की दुकानें जला दीं. पर इससे कन्फ्यूजन पैदा हो गया है. भाजपा ने अपने मैनिफेस्टो में कहा था कि वैध और अवैध सारे बूचड़खाने बंद होंगे. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने तो कहा था कि जिस दिन सरकार बनेगी उसी दिन रात को ऑर्डिनेंस लाकर सारा बंद कर देंगे.

यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान दिखाया गया बीजेपी का संकल्प पत्र
बूचड़खानों को लेकर चार मुद्दे हैं:
1. बूचड़खानों में गाय का मसला जो कि अब मसला नहीं है. क्योंकि यूपी के बूचड़खानों में गायें नहीं कटती हैं. वहां पहले से ही बैन है. कटने की कोई रिपोर्ट नहीं आई है.
2. वैध बूचड़खाने राज्य सरकार के नियमों का पालन करते हैं. जगह पूरी रखते हैं, मशीनें रखते हैं. साफ सफाई रखते हैं. रिहायशी इलाकों से दूर होते हैं. इनका मूल बिजनेस मीट एक्सपोर्ट है जिसमें इंडिया दुनिया में टॉप 5 देशों में रहता ही है. अभी नंबर वन है. पर अवैध बूचड़खाने इन नियमों का पालन नहीं करते हैं. ये ज्यादातर छोटे होते हैं. इनमें से ज्यादातर की मीट एक्सपोर्ट करने की हैसियत नहीं होती. ये लोकल लोगों की जरूरत पूरी करते हैं. इनमें से कई रिहायशी इलाकों में भी होते हैं. इन बूचड़खानों की जद में मुर्गा और मटन वाले भी आ जाते हैं. सरकार का मानना है कि इससे प्रदूषण बढ़ता है क्योंकि ये साफ सफाई पर ध्यान नहीं देते.
3. फिर बूचड़खानों में जानवर के कटने से पहले उनकी मेडिकल जांच होती है कि वो खाने लायक हैं कि नहीं. अवैध बूचड़खानों में ये जांच नहीं हो पाती.
4. अब बात आती है डेयरी उद्योग की. आरोप लगता है कि बूचड़खाने उन जानवरों को भी खरीद लेते हैं जिनसे दूध निकाला जा सकता था. क्योंकि डॉक्टर की जांच के बाद अगर पता चले कि ये जानवर दूध नहीं दे सकता, अब असमर्थ है तभी उसको बूचड़खाने में भेजा जा सकता है. पर आरोप लगता है कि बूचड़खाने इसका केयर नहीं करते और कहीं से जानवर खरीद लेते हैं. इसके चलते जानवरों की स्मगलिंग भी होती है.
अब बात यूपी के जानवरों की:
1. 2012 के लाइवस्टॉक सेन्सस यानी जानवरों की गणना के मुताबिक 2007 की तुलना में यूपी में भैंस और गायों की संख्या में 10 प्रतिशत बढ़ोत्तरी है. 2017 का सेन्सस अभी हो रहा है. यूपी देश का सबसे बड़ा भैंस मीट निर्यातक राज्य है. देश के कुल निर्यात का 50 प्रतिशत यहीं से जाता है. दूध उत्पादन में भी यूपी सबसे आगे है. पर ये गुजरात की अमूल डेयरी की तरह संगठित नहीं है.
2. केंद्र सरकार की मीट इंडस्ट्री और फूड प्रोसेसिंग मिनिस्ट्री मीट प्रोडक्शन को बढ़ावा देती है. इकॉनमिकल सपोर्ट भी देती है. तो राज्य सरकार की बैन पॉलिसी केंद्र सरकार की पॉलिसी से उलट ही है.
27 अप्रैल 2016 टाइम्स ऑफ इंडिया यूपी में सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को बताया कि यूपी के 126 बूचड़खानों में से सिर्फ 1 के पास प्रदूषण-रहित वाला लाइसेंस है. ये इन्फॉर्मेशन एक पेटिशन के बाद दी गई. पेटिशन के मुताबिक इन बूचड़खानों से खून और हड्डियां पानी को प्रदूषित कर रहे थे. यूपी के ज्यादातर बूचड़खाने संभल, अलीगढ़, गाजियाबाद और बुलंदशहर में हैं.अब ये तो क्लियर हो गया कि यूपी में गाय, भैंस और दूध की कमी नहीं है. मीट एक्सपोर्ट की भी कमी नहीं है. हां, लोकल खपत जरूर कम है. क्योंकि मीट महंगा है. अगर सरकार डेयरी में क्रांति करना चाहती है तो ये मीट से प्रभावित होनेवाला नहीं है. क्योंकि अभी वैसी स्थिति नहीं है कि बूचड़खाने हर जगह से जानवर खरीद रहे हैं. क्योंकि यूपी खेती आधारित इकॉनमी है. किसान दूध दे रहे जानवर को बेचने में कतराता है. स्मगलिंग वाले जानवर ज्यादातर चोरी के होते हैं.
2017 में आ रही रिपोर्ट के मुताबिक अभी यूपी में 140 अवैध बूचड़खाने हैं और 45 लाइसेंस वाले हैं. यूनियन एग्रीकल्चरल मिनिस्ट्री के मुताबिक यूपी में 2001-02 में 140 लाख मीट्रिक टन दूध निकलता था. 2014-15 में ये 250 लाख मीट्रिक टन पैदा होता है.
ये सारे मुद्दे अलग-अलग हैं.
अब ये देखें कि अवैध बूचड़खाने बंद करने से सरकार को क्या मिल रहा है तो ये समझ में आता है कि राजनैतिक और राजस्व दोनों का फायदा हो रहा है. क्योंकि मीट एक्सपोर्ट के लिए लाइसेंस वाले ही जिम्मेदार हैं. तो राज्य का रेवेन्यू कम नहीं होगा, क्योंकि इनका काम चलेगा. क्राइसिस होगी लोकल खपत के लिए जैसा कि लखनऊ के टुंडे कबाबी और अन्य जगहों पर हुआ कि दुकान बंद करनी पड़ी. क्योंकि मीट नहीं मिला. अब लोकल स्तर पर बूचड़खाने बंद होने से भाजपा को डायरेक्ट फायदा होगा. चुनावी वादा पूरा होगा. हालांकि भाजपा को सपोर्ट करने में कितने लोग शाकाहारी हो जाएंगे, इस बात की पुष्टि नहीं की जा सकती.
पर अगर चाहें तो इस मुद्दे को थोड़ा तरीके से संभाला जा सकता है. क्योंकि सरकार मीट बैन नहीं कर रही है. तो मुद्दा ये नहीं है कि सरकार सारे बूचड़खानों को बंद करेगी कि नहीं. बल्कि मुद्दा ये है कि जो चल रहे हैं उनसे सरकार नियम कैसे फॉलो करवाएगी. ठीक वैसे ही जैसे सब्जी मंडी, हॉकर्स, ठेले वालों का मुद्दा होता है. क्योंकि ये लोग काम तो करते ही हैं. बस इनकी लाइसेंसिंग नहीं होती है. ये लोग भी प्रदूषण और साफ-सफाई के नियमों को नहीं मानते हैं. रेस्टोरेंट और होटल इन नियमों को मानते हैं कि नहीं, ये क्लियर नहीं है.
अगर ये नियम माने जाएं तो प्रदूषण नहीं होगा. लोगों की सेहत अच्छी रहेगी क्योंकि बढ़िया मीट खाने को मिलेगा. सरकार को टैक्स जाएगा. बढ़िया और ज्यादा मीट एक्सपोर्ट होगा. लाइसेंस नहीं रहने पर पुलिस मीट व्यापारियों को परेशान भी कर सकती है. अगर लाइसेंस रहे तो व्यापारी खुश ही रहेंगे.तो मुख्य मुद्दा है सबकी लाइसेंसिंग कराना और नियम मनवाना. पर सरकार त्वरित फैसले ले रही है जिसका असर लोकल खपत और रोजगार पर पड़ेगा. यूपी में ऐसे ही प्रति व्यक्ति आय कम है और बेरोजगारी ज्यादा है.
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