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क्या पारले-जी बिस्कुट बंद होने वाला है?

यहां काम करने वालों की नौकरी जाने वाली है.

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पारले के कैटेगरी हेड मयंक शाह
पारले-जी बिस्कुट. बहुत दिनों तक 4 रुपये का बड़ा पैक बिकता था. कागज़ के पैकेट में. 4 रूपए वाले से छोटा पैकेट आया. 2 रुपये का. फिर बिस्कुट कंपनियों की अंतरात्मा जागी. कागज़ का पैक आउट. प्लास्टिक का पैक इन. 1 रूपए का भी पैक आया. बहुत बिका. ट्रेन स्टेशन से लेकर सरकारी अस्पताल तक. बनारस के डॉ. गांगुली हर बीमार को दूध-चाय-बिस्किट, छेने का रसगुल्ला खाने को बोलते थे, बिस्कुट के नाम पर पारले-जी बिकता था. और बिस्कुट मतलब पारले-जी का नारा भी आया.
जी मतलब जीनियस
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फिर महंगाई आई. 4 का पैकेट 5 का हुआ. 1 रूपए का पैकेट बंद हो गया. 10, 20, 40, 50, और 100, 200 रूपए तक के पैकेट आ गए. बिके. खूब बिके.
लेकिन इन दिनों हालत ये हो गयी है कि पारले-जी बिकना बंद हो गया है. और पारले-जी ही नहीं. पारले कंपनी के दूसरे बिस्कुट भी. कंपनी ने कहा है कि उनके बिस्कुटों की बिक्री में इतनी कमी आई है कि कंपनी में अब छंटनी होने जा रही है.
पारले प्रोडक्ट प्राइवेट लिमिटेड के कैटेगरी हेड मयंक शाह ने 21 अगस्त को न्यूज एजेंसी रॉयटर्स से बातचीत में कहा कि बिस्किट की बिक्री घाट गयी है. खासकर ग्रामीण इलाकों में. इस वजह से कंपनी प्रोडक्शन में कटौती कर सकती है. ऐसा होने पर कर्मचारियों की छंटनी के आसार हैं.
इस दिक्कत का कारण है जीएसटी
मोदी का सपना. वन नेशन-वन टैक्स. साल 2017. जीएसटी लागू हुई. कहा गया कि अब देश को जीने में आसानी होगी. संसद भवन सजा-धजाकर जीएसटी लॉन्च किया गया. लेकिन मयंक शाह बताते हैं कि देश की सबसे बड़ी कंपनियों में से एक में अब छंटनी होने जा रही है, वो भी जीएसटी की वजह से.
बकौल मयंक शाह, 2017 में जीएसटी लागू होने के बाद से पारले-जी जैसे मशहूर बिस्कुट की बिक्री 8 प्रतिशत तक कम हो गयी है. बिस्कुट के 5 रूपए वाले पैक पर जीएसटी की डर बहुत ज्यादा है. इस वजह से कंपनी को पैकेट में बिस्कुटों की संख्या घटानी पड़ रही है. अब गांव के इलाकों में बिस्कुट की बिक्री कम हो गयी है. और पारले की आधे से ज्यादा कमाई इन्हीं इलाकों से होती है.
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पारले के कैटेगरी हेड मयंक शाह

बता दें कि बिस्कुट पर 18 प्रतिशत जीएसटी लागू होती है. पैकेट का दाम उतना ही बना रहे, इसलिए बिस्कुटों की संख्या घटाई जा रही है. इस वजह से ग्राहक बिस्कुट खरीदने से बच रहे हैं.
मयंक शाह ने कहा है कि अगर सरकार दखल नहीं देती है तो उन्हें प्रोडक्शन बंद करना पड़ेगा. जिस वजह से 8 से 10 हज़ार कर्मचारियों की नौकरी जा सकती है.
पारले कंपनी 90 साल पुरानी कंपनी है. कंपनी के अपने 10 प्लांट हैं. जबकि 125 प्लांट ऐसे हैं, जो ठेके पर चल रहे हैं. इन प्लांटों में कुल मिलाकर 1 लाख से ऊपर कर्मचारी काम कर रहे हैं. कंपनी की सालाना कमाई लगभग 10 करोड़ रूपए के आसपास है. और मयंक शाह ने कहा है कि इसमें से आधा केवल गांव के इलाकों में पारले-जी बिकने के कारण आती है.
जीएसटी मूड से लगायी थी, ये क्या हो गया?
जीएसटी मूड से लगायी थी, ये क्या हो गया?

पारले पहली कंपनी नहीं है, जिसने देश में आ रही मंदी के खिलाफ खुलकर आवाज़ खोली है. इसके पहले टेक्सटाइल एसोसिएशन ने बाकायदे अखबार में विज्ञापन देकर कहा है कि मंदी है. सरकार ने कदम नहीं उठाए तो कई लोगों की नौकरियां जा सकती है. ब्रिटानिया के एमडी वरुण बेरी ने पिछले दिनों कहा था कि लोग उनका 5 रूपए का बिस्कुट खरीदने के पहले सोच रहे हैं. उन्होंने साफ़ कहा था कि अर्थव्यवस्था की स्थिति गंभीर है.
यही नहीं, पारले, ब्रिटानिया और टेक्सटाइल एसोसिएशन के अलावा चाय कंपनियों ने भी यही शिकायत उठाई है. सभी ने कहा है कि सरकार ध्यान दे. वरना मंदी की चपेट में कई लाख लोगों की नौकरियां आने वाली हैं.


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