शिवपाल यादव नाराज़ हुए अखिलेश यादव से, नई पार्टी बना ली. अमरिंदर सिंह को कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पद से हटाया, नई पार्टी बना ली. गुलाम नबी आज़ाद भी ऐसा गुस्साए कि जम्मू कश्मीर में नई पार्टी बना ली. तेलंगाना के CM के चंद्रशेखर राव (KCR) न किसी से नाराज़ हुए, न खुश लेकिन उन्होंने भी अपनी नई पार्टी बना ली. हालांकि टेक्निकली उन्होंने सिर्फ अपनी क्षेत्रीय पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति (TRS) का नाम बदलकर भारत राष्ट्र समिति (BRS) कर दिया है. यानी सिर्फ़ नाम बदला है, कलेवर नहीं.
नेता लोग नई पार्टी कैसे बनाते हैं? सारे नियम-कानून जान लीजिए
KCR ने कल ही अपनी नई पार्टी भारत राष्ट्र समिति का ऐलान किया है.

पर क्या नई पार्टी बना लेना इतना आसान होता है? जिसका जब मन करता है नई पार्टी का ऐलान कर देता है. और ऐसा है तो कैसे बनाई जाती है नई पार्टी? इसकी क्या प्रकिया है और क्या हैं नियम कायदे?
कोई भी बना सकता है अपनी पार्टी?राजनीतिक पार्टी कोई भी व्यक्ति या संगठन बना सकता है. उसे राष्ट्रीय या राज्य की पार्टी भी कह सकता है. लेकिन ऐसा कहने भर से उसे मान्यता नहीं मिल जाती. इसके लिए जरूरी है चुनाव आयोग की मुहर. केसीआर ने भी अपनी नई पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी कहा है. ये उनकी राष्ट्रीय राजनीति की महत्वाकांक्षाओं को भले ही उजागर करे लेकिन महज इतने से उनकी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं मिल जाएगा.
दरअसल, रिप्रज़ेन्टेशन ऑफ दी पीपल्स एक्ट, 1951 के सेक्शन 29A के तहत कोई भी अपनी राजनीतिक पार्टी बना सकता है. पार्टी का ऐलान करने के तीस दिन के भीतर रिप्रज़ेन्टेशन ऑफ दी पीपल्स एक्ट और संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत पार्टी को चुनाव आयोग में अपना आवेदन देना होता है. इसके अलावा ऐलान से साथ ही दो लोकल और दो राष्ट्रीय स्तर के अखबारों में नई पार्टी की जानकारी छपनी चाहिए. इसके बाद दो दिन का समय दिया जाता है आपत्ति दर्ज करने के लिए. नई पार्टी के नाम के खिलाफ कोई भी आपत्ति दर्ज करा सकता है. अगर आपत्ति दर्ज की जाती है तो इसकी सुनवाई चुनाव आयोग के सामने होती है. अगर कोई आपत्ति नहीं आती है तो आपको हरी झंडी मिल जाती है.
क्या प्रकिया है?चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन के लिए ज़रूरत होती है एक एप्लिकेशन फॉर्म यानी आवेदन पत्र की. ये फॉर्म चुनाव आयोग के दफ्तर से ले सकते हैं, याचिका देकर फॉर्म को डाक से मंगा सकते हैं या फिर आयोग की वेबसाइट से भी डाउनलोड कर सकते हैं.
फार्म भरने के बाद भी प्रक्रिया ऐसी ही है. आवेदन को खुद जाकर चुनाव आयोग के जमा कर सकते हैं या फिर वाया पोस्ट भेज सकते हैं. लेकिन इस आवेदन के साथ आपको कुछ जरूरी दस्तावेजों और फ़ीस भरने की भी दरकार होती है. मसलन, आवेदन के साथ 10 हजार रुपये का एक डिमांड ड्राफ्ट देना होता है. साथ ही ज्ञापन, पार्टी का संविधान और पार्टी के नियम कानून की एक-एक प्रति प्रिंटेड फॉर्म में चुनाव आयोग को सौंपनी होती है.
आवेदन के दौरान पार्टी में कम से कम 100 रजिस्टर्ड मेंबर होना जरूरी है. इसके अलावा आवेदन पत्र के साथ एक हलफ़नामा जमा करना होता है कि जिसमें पार्टी अध्यक्ष और जनरल सेक्रेटरी यानी महासचिव को दस्तखत करने होते हैं और नोटरी/ओथ कमिश्नर/फर्स्ट क्लास मजिस्ट्रेट के सामने ये शपथ लेनी होती है कि पार्टी का कोई भी सदस्य किसी दूसरी पार्टी का सदस्य नहीं है.
क्या चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन जरूरी है?इसका सीधा जवाब है- नहीं. लेकिन अगर किसी राजनीतिक पार्टी का रजिस्ट्रेशन नहीं है तो उसे रिप्रज़ेन्टेशन ऑफ दी पीपल्स एक्ट, 1951 के तहत जो लाभ मिल सकते हैं नहीं मिलेंगे. जैसे, चुनाव लड़ने के दौरान सिंबल मिलने के लिए उसे तरजीह नहीं मिलेगी, रजिस्टर्ड पार्टी को मिलेगी. साथ ही कुछ समय बाद रजिस्टर्ड पार्टी को नियमों के तहत स्टेट और नेशनल पार्टी का दर्जा भी मिलता है. रजिस्टर्ड न होने पर इसमें भी परेशानी उठानी पड़ सकती है.
कैसे मिलती है मान्यता?स्टेट पार्टीझारखंड मुक्ति मोर्चा, शिवसेना जैसी पार्टियों के पास स्टेट पार्टी का दर्जा है. किसी भी पार्टी को स्टेट पार्टी का दर्जा मिलने के लिए चुनाव आयोग की कुछ शर्तों को पूरा करना होता है. वो शर्ते हैंः
- विधानसभा चुनाव में पड़े वैध वोटों में 6 प्रतिशत वोट मिलें और पार्टी से कम से कम 2 विधायक चुने जाएं, या
- विधानसभा के कुल वोटों में से 8 प्रतिशत वोट मिलें, या
- लोकसभा चुनाव में 6 प्रतिशत वोट मिलें और एक सांसद चुनकर पार्टियामेंट पहुंचे, या
- राज्य की तीन प्रतिशत विधानसभा सीटें मिलें या तीन सीटें मिलें, जो भी ज्यादा हो.
- लोकसभा चुनाव में राज्य की हर 25 सीटों में एक सासंद चुना जाए. जिन राज्यों में 25 से कम सीटें हैं, वहां से कम से कम एक सांसद चुना जाए.
नेशनल पार्टी
बीजेपी, कांग्रेस, ममता बनर्जी की टीएमसी, मायावती की बहुजन समाज पार्टी, शरद पवार की नेशनल कांग्रेस पार्टी, ये सभी राष्ट्रीय पार्टियां हैं. स्टेट पार्टी की तरह ही नेशनल पार्टी का दर्ज पाने के लिए भी चुनाव आयोग की शर्तों का पूरा होना ज़रूरी है. शर्तें हैंः
-लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम चार राज्यों में कुल वोट का 6 प्रतिशत मिलना. वहीं लोकसभा चुनाव में पार्टी के चार उम्मीदवारों का जीतना ज़रूरी है.
- लोकसभा चुनाव में तीन या उससे ज्यादा राज्यों से लोकसभा की कुल 543 सीटों का 2 प्रतिशत यानी 11 या उससे ज्यादा सीटें मिलें.
- 4 राज्यों में स्टेट पार्टी का दर्जा प्राप्त होना जरूरी है.
यही वो नियम हैं जिनके कारण कई बार महत्वपूर्ण पार्टियों को भी राष्ट्रीय या स्टेट पार्टी का दर्जा खोना पड़ता है. जैसे 2019 में भारत की कम्युनिस्ट पार्टी यानी CPI राष्ट्रीय पार्टी नहीं रही, जबकि मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी अपना ओहदा बचाने में कामयाब रही है. लेकिन भारत राष्ट्र समिति बन जाने मात्र से तेलंगाना राष्ट्र समिति राष्ट्रीय पार्टी नहीं बन जाती. उसे ये ओहदा हासिल करने के लिए चुनाव आयोग की शर्तों पर खरा उतरना होगा.