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झूठ नहीं है तीसरी आंख का कॉन्सेप्ट, सबके पास होती है

कहानियों में तो है ही, विज्ञान की भी अपनी व्याख्या है.

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फोटो www.buffiduberman.com से
अगर पुराने जमाने के लोगों की बात मानें तो इंसान के पास तीसरी आंख भी होती है. जिसे जगाना पड़ता है. हिंदू माइथॉल्जी के मुताबिक शंकर भगवान की तीसरी आंख होती है. इसी तरह यूरोप में भी ऐसी कहानियां हैं.
सुनने में ये अजीब लगता है.
इंसान के ब्रेन में एक ग्रंथि होती है जिसका नाम है पिनियल ग्लैंड. ब्रेन के दोनों हिस्सों के बीच में ही ये होती है. इसको पिनियल इसलिए कहा जाता है क्योंकि ये पाइन कोन यानी कि अन्ननास के आकार की होती है. इस ग्रंथि से ही सेरोटोनिन से निकला हुआ मेलाटोनिन हॉर्मोन निकलता है. यही हॉर्मोन हमारे सोने-जागने और एक्टिवनेस को प्रभावित करता है.
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ऐसा माना जाता है कि हर इंसान इस ग्रंथि का पूरा इस्तेमाल नहीं कर पाता. ये भी कहा जाता है कि इंसानी के दैनिक जीवन और स्पिरिचुअल जीवन के बीच यही ग्रंथि जोड़ने का काम करती है. जब ये एक्टिव होती है तो लोगों को बहुत ज्यादा खुशी होती है. ऐसा लगता है कि इंसान को सब कुछ पता चल गया. दिमाग फुर्ती में आ जाता है. योग, मेडिटेशन करने से इस ग्रंथि को एक्टिव किया जा सकता है. जब लोग इन चीजों में डूब जाते हैं, तो पिनियल के एक्टिव होने सी बहुत ज्यादा खुशी का अनुभव होता है.
सोडियम फ्लुओराइड पिनियल ग्रंथि को कड़ा कर देता है. हमारे बहुत सी खाने-पीने की चीजों में सोडियम फ्लुओराइड होता है. इससे ये कम एक्टिव हो जाती है.
जैसे आंखों में रॉड्स और कोन्स होते हैं, उसी तरह पिनियल ग्लैंड में भी होते हैं. थोड़ा बहुत रोशनी को ये भी पार करा सकता है. इससे निकला मेलाटोनिन हॉर्मोन ही बाकी शरीर को रोशनी के प्रति एक्टिव बनाता है. वहीं पिनियल में पाए जाने वाले सेरोटोनिन के कम बनने पर डिप्रेशन हो सकता है. हमारे शरीर में जितनी कोशिकाएं होती हैं, उनसे सेरोटोनिन ही कम्युनिकेट करता है.
odontocyclops ओडोंटोसाइक्लॉप्स नाम के जानवर के जीवाश्म में पिनियल ग्रंथि होने की बात कही जाती है

क्या ये वाकई में माइथॉल्जी के मुताबिक तीसरी आंख ही होती है?
इंसानी भ्रूण में ये ग्रंथि 49 दिन के बाद बनती है. तिब्बत के बौद्ध लोग ये मानते हैं कि 49 दिनों में ही इंसान की आत्मा अपने अगले शरीर में जाती है, मतलब अगला जन्म होता है. फ्रेंच फिलॉसफर रेने देस्कार्ते ने पिनियल ग्लैंड को ही सीट ऑफ द सोल कहा था. मॉडर्न वैज्ञानिकों का मानना है कि कोई पुराना अंग होगा शरीर का, जो खत्म होते-होते पिनियल ग्लैंड बन गया है. पर कई रेंगनेवाले जानवरों में भी पिनियल ग्लैंड पाई जाती है.
सबसे मजेदार बात ये है कि इन जानवरों में पिनियल ग्लैंड में आंख की ही तरह कॉर्निया, लेंस और रेटिना भी पाया जाता है. पर ये आंख से अलग इस बात में होती है कि ये मोटी खोपड़ी के नीचे होता है. और सिर्फ रोशनी और अंधेरे में फर्क कर पाती है. द कन्वर्सेशन में छपे आर्टिकल के मुताबिक इस ग्रंथि से ही इन जानवरों को सीजन बदलने के बारे में पता चलता है.
komododragons कोमोडो ड्रैगन में अभी भी पिनियल ग्रंथि पाई जाती है

माइथॉल्जी में इस ग्रंथि को कुछ यूं बताया गया है:
1. इजिप्ट की सभ्यता में दो सांपों को एक पाइन कोन पर मिलते हुए दिखाया गया है. ये 3 हजार साल पहले का चित्र है.
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2. हिंदू सभ्यता में तो भगवान शंकर की तीसरी आंख दिखाई ही गई है.
3. एस्सिरियन सभ्यता के ढाई हजार साल पुराने चित्रों में भगवान टाइप के लोग हैं जो कि पाइन कोन पकड़ के खड़े हैं.
4. मैक्सिको के भगवान चिकोमेकोआती यानी कि सात सांपों के भगवान भी एक हाथ में पाइनकोन ले के ही खड़े हैं.
5. ग्रीक और रोमन कल्चर के डायोनिसस के पास भी पाइन कोन है.
अगर माइथॉल्जी की बात छोड़ दें और साइंस की बात करें तो भी एक बात पता चलती है. ये हो सकता है कि पहले पिनियल ग्लैंड पड़ी हो. और वक्त के साथ छोटी होती चली गई हो. वैज्ञानिक भी ऐसा मानते हैं. फिर ये भी संभावना है कि रेंगनेवाले जानवरों की पिनियल ग्लैंड की तरह इंसानों में भी ये काम करती हो. इसमें कुछ भी जादू या तंत्र-मंत्र जैसा नहीं है. ये विशुद्ध विज्ञान की बात है. ये है कि अगर तंत्र-मंत्र की बात करें तो आनंद बहुत आता है, भले कुछ साबित हो ना हो. ये हो सकता है कि तंत्र-मंत्र की बात करते हुए पिनियल ग्रंथि थोड़ी एक्टिव हो जाती होगी. मजाक की बात है, सीरियस लेने की आवश्यकता नहीं है.
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