साल 1995. तारीख 30 अप्रैल. फरवरी का महीना था. मेहर होमजी बंबई की टॉप 5 मॉडलों में से एक थी. उन्होंने
पेंटालून्स बेयर नेसेसिटीज ब्रांड की जींस का ऐड किया था. ऐड के फोटो शूट के टाइम पर होमजी ने शॉर्ट्स पहन रखा था. शूटिंग खत्म हुई. एडिटर्स ने अपनी कलाकारी करते हुए ऐड बनाकर तैयार कर दिया. पैसे कमाने के लिए ऐड पहुंचा टीवी-अखबार के पास. लोगों ने वो ऐड देखा. होमजी ने भी उसे देखा. और वो शॉक रह गईं. साथ ही गुस्से से खौड़ा भी गई. कपड़े पहनकर ऐड शूट करने वाली होमजी उस ऐड में नंगी दिख रही थी. कंप्यूटर की कलाकारी से उनके कपड़े गायब कर दिए गए थे. वो भी उनके परमिशन के बगैर.
तकनीक का इतना सही यूज वो भी उस वक्त. कैसे? सोचने पर मजबूर करता है न. खैर अपने आप को इस तरह देखने के बाद खौड़ाई होमजी ने ऐड छपने से रोकने के लिए शहर भर में घिरनी की तरह घूमती रही. और कहा, 'मेरे साथ धोखाधड़ी हुई है.' पर सबने होमजी की बात को एक कान से सुन दूसरे से बाहर निकाल दिया. स्टारडस्ट एकमात्र मैगजीन थी. जिसने होमजी की वार्निंग को सीरियसली लिया. और ऐड को नहीं छापा. ऐड कैंपेन की अगुआ कंपनी इनफिनिटी कम्युनिकेशंस तो थेथड़ों की तरह होमजी की वार्निंग को सुनता रहा. जब होमजी ने कंपनी पर केस करने की धमकी दी तब जाकर कंपनी ने फोटो के निगेटिव उन्हें सौंपे गए.
इनफिनिटी के एक डायरेक्टर आनंद राजाध्यक्ष ने दावा किया कि एजेंसी और होमजी के बीच कुछ गलतफहमी हो गई थी. उन्होंने कहा,
'अगर हमें पहले अंदाजा होता तो ये ऐड इस तरह से नहीं आते. या फिर उनमें कोई दूसरी मॉडल होती.' इस कांड के बाद मॉडलिंग वर्ल्ड को जैसे अकल आ गई कि कंप्यूटर के जरिए मजाक-मजाक में उनकी फोटो को अश्लील भी बनाया जा सकता है. होमजी के वकील महेश जेठमलानी का भी मानना है,
'आप गोरी औरत को काला बना सकते हैं. पर उसके शॉर्ट्स नहीं उतार सकते. बिना पूछे तो कतई नहीं.' उनके मुताबिक मॉडलों को अपने एग्रीमेंट में नो न्यूडिटी की शर्त भी जोड़नी चाहिए.
होमजी के साथ हुए कांड के बाद सारी मॉडलें जैसे जाग गई. और अपने अनुभव खोद-खोद के बताने लगी. समोयोजिका रसना बहल. मॉडल हैं. वो बताती हैं कि एक मॉडल ने जब एक एजेंसी के साथ प्रेस सेंसरशिप नियमों और देश के अश्लीलता संबंधी कानूनों के तहत एग्रीमेंट करने कहा तो दूसरे मॉडलों ने उसका मजाक बनाया. और वो खुद भी उनके लिए मजाक की चीज बन गई.
रसना बहल खुद एक बड़ी एजेंसी से भिड़ गई थी. मॉडलों की सेफ्टी को ध्यान में रखकर एग्रीमेंट बनाने को लेकर. पर एजेंसी ने साफ मना कर दिया. उन्होंने मॉडलों के लिए नए एग्रीमेंट की बात कही. और कहा, 'एग्रीमेंट में लिखे शब्दों को बदलना होगा. क्योंकि जिस तरह से फोटो के साथ खिलवाड़ हो रहा है, कुछ भी हो सकता है.'
पर इन सब से एक बात जो सामने आई वो उन लोगों का सच जो कमरे में बैठ कर मॉडलों की फोटो के साथ मॉर्फिंग या फोटोशॉप करते हैं.
जसरा ग्राफिक्स के मालिक हैं रवि जसरा. उनके मुताबिक मॉडलों की झुर्रियां साफ करना, मोटे से पतला बनाना, गोरे से काला बनाने जैसा काम उनके यहां रोज होता है. वो कहते हैं, 'यहां वो सब होता है जो आप कल्पना भी नहीं कर सकते हैं.'
मॉडलिंग करने के लिए अब जरूरत नहीं पतली कमर
देखा जाए तो मॉर्फिंग और फोटोशॉप ने मॉडलों को फिगर मेंटेन रखने जैसी झंझट से मुक्त कर दिया. कंप्यूटर एडिटिंग की फीस उस टाइम पर 3 हजार रुपये थी. वो भी एक घंटे की. काले से गोरा रंग करना चुटकी भर का काम हो चला था. एअरब्रश एक तकनीक है. जिससे एक फोटो के नाक-नक्शे को दूसरे फोटो में उतारा जा सकता है. ब्रिटिश क्रॉसफील्ड स्टुडियो सिस्टम्स मैगजीन के अनुसार, 'फोटो में कांड करने की पॉसिबिलिटी अनंत हैं.' ऐड वर्ल्ड के लोगों का कहना है कि लगभग 50 पर्सेंट ऐड में कंप्यूटर से कांड किया जाता है. उस वक्त कंप्यूटर ग्राफिक्स की दुनिया में श्याम रामन्ना एक बड़े नाम थे. वो बताते हैं,
'किसी फोटो से किसी इंसान का शरीर और कोई फेमस चेहरा लेकर एअरब्रश के जरिए जोड़ दीजिए. प्रोपर एडिटिंग कर दीजिए. उसके बाद आप किसी को भी ब्लैकमेल कर सकते हैं.' श्याम मानते हैं कि उनके यहां फोटो के साथ हेरफेर होता है. लेकिन ये किसी मॉडल की नंगी फोटो खींचने से ज्यादा सस्ता और आसान तरीका है. श्याम तीन फिल्मों में इस तकनीक का इस्तेमाल कर चुके हैं. उनका कहना है,
'किसी फोटो में फेरबदल कर दोबारा से उसका निगेटिव निकाला जा सकता है. और खास बात ये होगी कि किसी को पता भी नहीं चलेगा कि वो असली फोटो का निगेटिव नहीं है.'
नेशनल ज्योग्राफिक ने भी किया मॉर्फिंग
ऐसा नहीं है कि सिर्फ मॉर्फिंग इंडिया में ही होता है. और मॉडलों के फोटो के साथ ही होता है. इसकी जड़े विदेश तक फैले हैं. अपन लोगों का फेवरेट नेशनल ज्योग्राफिक चैनल. पहले इसका मैगजीन आया था. बाद में चैनल. तो हम बता रहे थे कि वहां भी फोटो के साथ हेरफेर हुआ था. मैगजीन का नाम न छिप जाए, इसलिए लोगों ने एक फोटो में पिरामिड की जगह बदल डाली. इसके अलावा टाइम मैगजीन भी इससे अछूता नहीं है. उसने तो ओ.जे सिंप्सन की फोटो ही डरावनी बना दी.
दिव्या भारती की मौत के बाद मॉर्फिंग से उनको जिंदा रखने की हुई नाकाम कोशिश
कंप्यूटर द्वारा क्राइम बढ़ा. तो जाहिर सी बात है लोगों का ध्यान उस ओर बढ़ा. लोग उसकी जड़ें खोजने लगे. और रीसर्च करना शुरू किया. उसके बाद किताब लिख डाली. एक किताब के को-राइटर राकेश गोयल बताते हैं, 'मॉर्फिंग के जरिए लालकृष्ण आडवाणी को उसी तरह नरसिंह राव में बदला जा सकता है, जैसे कावासाकी बजाज बाइक चीता बन जाता है. यहां सबकुछ पॉसिबल है.' उनके मुताबिक फिल्मी दुनिया भी इसके चपेट में आ गया है. पर हिंदी फिल्म जगत अभी इससे अछूता था. हां दिव्या भारती के मरने के बाद उन्हें परदे पर जिंदा रखने के लिए एक बार कोशिश जरूर की गई थी. ये साल 1993 की बात है. दिव्या के मरने से प्रोड्यूसर के 20 करोड़ से ज्यादा रुपये फंसे थे. उस वक्त ये रकम बहुत बड़ी हुआ करती थी. 20 करोड़ ने उनके दिमाग में मॉर्फिंग का आइडिया ला पटका. वो पहुंच गए मद्रास की पेंटाफोर सॉफ्टवेयर ऐंड एक्पोर्ट्स लिमिटेड. उनका प्लान किसी डुप्लीकेट पर फिल्म बनाने का था. उन्होंने कोशिश तो बहुत की. पर फेल हो गए. मल्टीमीडिया के इस्तेमाल के बाद भी कुछ हाथ न आया.