20 मई, 2025 को अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक नई और बेहद महत्त्वाकांक्षी मिसाइल डिफेंस प्रणाली का एलान किया- गोल्डन डोम (Golden Dome). इसकी अनुमानित लागत है 175 अरब डॉलर, और इसके संचालन की जिम्मेदारी दी गई है अमेरिकी स्पेस फोर्स के जनरल माइकल गुएटलेन को.
Golden Dome:अमेरिका की नई मिसाइल ढाल Iron Dome, S-400 और HQ-9 के सामने कहां टिकेगा?
Golden Dome Missile Shield: ट्रंप का दावा है कि ये प्रणाली अमेरिका को चीन और रूस जैसे देशों की मिसाइलों से बचाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि कनाडा इस प्रोजेक्ट में साझेदारी करना चाहता है. तो आइए, सरल भाषा में समझते हैं कि गोल्डन डोम क्या है, कैसे काम करेगा, और ये दुनिया की बाकी मिसाइल डिफेंस प्रणालियों Iron Dome, S-400 और HQ-9 से कितना अलग है?

ट्रंप का दावा है कि ये प्रणाली अमेरिका को चीन और रूस जैसे देशों की मिसाइलों से बचाएगी. उन्होंने यह भी बताया कि कनाडा इस प्रोजेक्ट में साझेदारी करना चाहता है. तो आइए, सरल भाषा में समझते हैं कि गोल्डन डोम क्या है, कैसे काम करेगा, और ये दुनिया की बाकी मिसाइल डिफेंस प्रणालियों Iron Dome, S-400 और HQ-9 से कितना अलग है?
गोल्डन डोम क्या है?गोल्डन डोम अमेरिका की एक अगली पीढ़ी की मल्टी-लेयर मिसाइल डिफेंस शील्ड है. इसका मुख्य उद्देश्य है कि किसी भी दुश्मन देश से आने वाली लंबी दूरी की मिसाइलों (जैसे इंटरकॉन्टिनेंटल बैलिस्टिक मिसाइल - ICBM), हाइपरसोनिक हथियारों और संभावित परमाणु हमलों को समय रहते पहचानना और हवा में ही उन्हें नष्ट करना.
इस सिस्टम में मुख्यतः तीन चीज़ें शामिल होंगी-
- सैटेलाइट नेटवर्क- जो धरती के चारों ओर लगातार निगरानी करेगा.
- AI-आधारित ट्रैकिंग और विश्लेषण सिस्टम- जो यह तय करेगा कि मिसाइल अमेरिका की तरफ आ रही है या नहीं.
- इंटरसेप्टर मिसाइलें और लेज़र सिस्टम- जो हमले को हवा में ही नष्ट कर देंगे.
- चीन ने DF-17 जैसी हाइपरसोनिक मिसाइलें तैनात की हैं.
- रूस के पास Avangard और Sarmat जैसी परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम मिसाइलें हैं.
- उत्तर कोरिया बार-बार परमाणु और बैलिस्टिक मिसाइल परीक्षण करता रहा है.
ऐसे माहौल में अमेरिका को लगा कि उसे एक ऐसा सिस्टम चाहिए जो आसमान से ही हर खतरे को रोक सके, और वहीं से जन्म हुआ गोल्डन डोम का.
कौन बना रहा है गोल्डन डोम?गोल्डन डोम प्रोजेक्ट में तीन प्रमुख अमेरिकी कंपनियां शामिल हैं:
- SpaceX- सैटेलाइट लॉन्च और स्पेस टेक्नोलॉजी.
- Palantir- डेटा एनालिटिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस.
- Anduril- ऑटोनॉमस डिफेंस टेक्नोलॉजी.
इन कंपनियों को लेकर विवाद भी है, खासकर इसलिए कि ट्रंप के करीबी एलन मस्क की कंपनी इसमें शामिल है, और इसकी पारदर्शिता पर विपक्षी डेमोक्रेटिक पार्टी सवाल उठा रही है.
गोल्डन डोम का काम कैसे करेगा?- शुरुआत - जैसे ही कोई मिसाइल लॉन्च होती है, स्पेस में मौजूद गोल्डन डोम के सैटेलाइट्स उसकी पहचान करेंगे.
- डेटा विश्लेषण - AI यह तय करेगा कि वह अमेरिका की तरफ आ रही है या नहीं.
- इंटरसेप्शन - अगर खतरा है, तो इंटरसेप्टर मिसाइल या लेज़र हथियार उस मिसाइल को उड़ान में ही मार गिराएंगे.
- रिपोर्टिंग - हर घटना का रिकॉर्ड रखा जाएगा ताकि सिस्टम और बेहतर किया जा सके
अब आइए देखते हैं कि गोल्डन डोम दुनिया की अन्य प्रमुख मिसाइल डिफेंस प्रणालियों - Iron Dome (इज़राइल), S-400 (रूस) और HQ-9 (चीन) - से कैसे अलग और बेहतर है:
गोल्डन डोम vs. Iron Dome (इज़राइल)विशेषता | गोल्डन डोम | Iron Dome |
देश | अमेरिका | इज़राइल |
लागत | $175 बिलियन | $1-2 बिलियन (हर यूनिट) |
कार्यक्षेत्र | ICBM, हाइपरसोनिक, नाभिकीय खतरे | रॉकेट, मोर्टार, शॉर्ट रेंज मिसाइल |
सीमा (रेंज) | हजारों किमी (सैटेलाइट आधारित) | 70 किमी तक |
टेक्नोलॉजी | सैटेलाइट, AI, इंटरसेप्टर | रडार + त्वरित मिसाइल |
स्कोप | ग्लोबल | क्षेत्रीय (इज़राइल के लिए) |
Iron Dome बेहद प्रभावी है लेकिन यह सीमित रेंज और छोटे हमलों के लिए है. जबकि गोल्डन डोम वैश्विक स्तर पर लंबी दूरी की मिसाइलों के खिलाफ सुरक्षा देने वाला सिस्टम है.
गोल्डन डोम vs. S-400 (रूस)विशेषता | गोल्डन डोम | S-400 |
देश | अमेरिका | रूस |
लागत | बहुत अधिक (सिस्टम-स्तर पर) | लगभग $500 मिलियन प्रति यूनिट |
कार्यक्षेत्र | स्पेस और ICBM सुरक्षा | एयरक्राफ्ट, क्रूज़ और बैलिस्टिक मिसाइल |
रेंज | सैटेलाइट से विश्वस्तर तक | 400 किमी तक |
प्रतिक्रिया समय | सेकंडों में (AI आधारित) | 5-10 सेकंड |
तकनीक | AI, इंटरसेप्टर, स्पेस ट्रैकिंग | मल्टी-मिसाइल लेयर्स |
S-400 एक बेहतरीन ग्राउंड-बेस्ड सिस्टम है, लेकिन गोल्डन डोम उससे एक कदम आगे है क्योंकि यह स्पेस से निगरानी और कार्रवाई करता है.
गोल्डन डोम vs. HQ-9 (चीन)विशेषता | गोल्डन डोम | HQ-9 |
देश | अमेरिका | चीन |
रेंज | अंतरिक्ष आधारित, लंबी दूरी | 200 किमी तक |
कार्यक्षमता | ICBM, हाइपरसोनिक | एयरक्राफ्ट, ड्रोन, सीमित बैलिस्टिक मिसाइल |
तकनीक | हाई-एंड AI, इंटरसेप्शन, स्पेस नेटवर्क | पुरानी S-300 तकनीक पर आधारित |
ट्रैकिंग सिस्टम | उपग्रह आधारित | रडार आधारित |
HQ-9 मुख्य रूप से डिफेंसिव और घरेलू सुरक्षा के लिए है, जबकि गोल्डन डोम का लक्ष्य ग्लोबल मिसाइल नेटवर्क को काउंटर करना है.
राजनीतिक विवाद और चुनौतियाँ- राजनीतिक आलोचना: डेमोक्रेट सांसदों का आरोप है कि यह प्रोजेक्ट अत्यधिक महंगा है और इसमें ट्रंप समर्थकों की कंपनियों को फायदा दिया जा रहा है.
- फंडिंग का संकट: अमेरिका की अर्थव्यवस्था पहले से तनाव में है, ऐसे में 175 अरब डॉलर खर्च करना आसान नहीं होगा.
- अंतरिक्ष को हथियार बनाने का डर: चीन और रूस जैसे देश इस प्रोजेक्ट को “स्पेस आर्म्स रेस” की शुरुआत मान सकते हैं.
- साझेदारियों की अस्पष्टता: कनाडा की भागीदारी पर अब तक कोई स्पष्ट जवाब नहीं आया है.
गोल्डन डोम का पूरा ऑपरेशनल सिस्टम आने में 5 से 10 साल लग सकते हैं.
- पहले चरण में रिसर्च और डिज़ाइन का विस्तार होगा.
- फिर सैटेलाइट्स और इंटरसेप्टर मिसाइलों का निर्माण और परीक्षण.
- सफल परीक्षणों के बाद इसका पूर्ण संचालन.
गोल्डन डोम एक तकनीकी चमत्कार बन सकता है जो आने वाले वर्षों में अमेरिका को दुश्मन मिसाइलों से बचा सकता है. लेकिन इसके साथ ही यह भू-राजनीतिक असंतुलन और स्पेस युद्ध की शुरुआत भी कर सकता है. Iron Dome, S-400 और HQ-9 जैसे सिस्टम अपनी जगह प्रभावी हैं, लेकिन गोल्डन डोम का स्कोप, तकनीक और महत्व कहीं ज़्यादा व्यापक और वैश्विक है. अब ये देखने वाली बात होगी कि क्या यह ‘सुनहरी छतरी’ अमेरिका को सुरक्षित रख पाएगी या यह सिर्फ ट्रंप की एक और राजनीतिक बाज़ी बनकर रह जाएगी.
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