
अब राहें अलग-अलग हैं. नीतीश कुमार सत्ता में हैं तो लालू यादव चारा घोटाले में दोषी पाए जाने के बाद जेल में हैं.
2019 में लोकसभा के चुनाव होने हैं. ऐसे में सभी पार्टियां अपना गुणा-गणित बिठाने में जुटी हुई हैं. राज्यसभा के उम्मीदवारों के नाम भी 2019 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए ही तय किए गए हैं. लेकिन बिहार में छह सीटों पर ही चुनाव होना है, तो बीजेपी, आरजेडी, जदयू और कांग्रेस ने माथापच्ची करते हुए अपने उम्मीदवार घोषित कर दिए हैं. जिन पांच लोगों के कार्यकाल पूरे हुए हैं, उनमें से जदयू के महेंद्र प्रसाद, डॉ अनिल साहनी और वशिष्ठ नारायण सिंह के अलावा बीजेपी के रविशंकर प्रसाद और धर्मेंद्र प्रधान हैं. बदली हुई स्थितियों में जदयू ने महेंद्र प्रसाद सिंह और वशिष्ठ नारायण सिंह को फिर से उम्मीदवार बना दिया है. वहीं आरजेडी की ओर से मनोज झा और अब्दुल करीम के अलावा कांग्रेस की ओर से अखिलेश सिंह उम्मीदवार हैं.
रविशंकर प्रसाद

रविशंकर प्रसाद केंद्रीय मंत्री हैं, जिन्हें बीजेपी बिहार से राज्यसभा भेज रही है.
राज्यसभा के लिए बीजेपी के खाते में सिर्फ एक ही सीट है. इस सीट से बीजेपी ने केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को उतारा है. रविशंकर प्रसाद पहले भी बिहार से ही राज्यसभा सांसद बनकर केंद्रीय मंत्री बने हैं. इसके अलावा केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान भी बीजेपी से ही सांसद बनकर केंद्रीय मंत्री बने थे. एक सीट थी तो बीजेपी ने रविशंकर प्रसाद को राज्यसभा के लिए मैदान में उतार दिया और धर्मेंद्र प्रधान को राजस्थान से नामांकन करवा दिया. रविशंकर प्रसाद पार्टी के प्रवक्ता रहे हैं, अच्छा बोलते हैं और मजबूती के साथ विपक्ष का जवाब देते हैं. रहने वाले बिहार के हैं. पेशे से वकील हैं तो कोर्ट-कचहरी में भी सरकार का पक्ष मजबूती से रखते रहते हैं. बीजेपी को उन्हें हर हाल में बिहार से राज्यसभा भेजना ही था. आखिर अगले साल 2019 आ जाएगा और ये साल चुनावी साल है.
वशिष्ठ नारायण सिंह

वशिष्ठ नारायण सिंह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष हैं.
राज्यसभा के लिए जदयू के खाते में जो दो सीटें हैं, उनमें से एक सीट पर पार्टी ने वशिष्ठ नारायण सिंह को मौका दिया है. ये लगातार दूसरी बार है, जब वशिष्ठ नारायण सिंह को पार्टी की ओर से राज्यसभा भेजा जा रहा है. वशिष्ठ नारायण सिंह जनता दल यूनाइडेट के प्रदेश अध्यक्ष हैं. लगातार 2010 से इस पद पर बने हुए हैं. पार्टी और कार्यकर्ताओं पर अच्छी पकड़ मानी जाती है. ऐसे में जब चुनाव सिर पर हैं, तो पार्टी ने कोई नया प्रयोग मुनासिब नहीं समझा और फिर से वशिष्ठ नारायण सिंह का नाम राज्यसभा के लिए तय कर दिया.
महेंद्र प्रसाद सिंह उर्फ किंग महेंद्र

जब तक आरके सिंह सांसद नहीं बने थे, किंग महेंद्र देश के सबसे धनी सांसद थे.
ये नाम उस नेता का है, जो लगातार दो बार राज्यसभा में जदयू के खाते से सांसद रह चुका है. अब पार्टी लगातार तीसरी बार महेंद्र प्रसाद सिंह को राज्यसभा भेजने जा रही है. ये महेंद्र प्रसाद सिंह 2012 में तब चर्चा में आए थे, जब उन्होंने राज्यसभा के लिए अपना नामांकन किया था. उस वक्त उन्होंने अपनी संपत्ति 683 करोड़ रुपये बताई थी और व्यक्तिगत संपत्ति के मामले में वो देश के सबसे अमीर सांसद थे. यहां तक की उन्होंने विजय माल्या को भी पीछे छोड़ दिया था. महेंद्र प्रसाद अरिस्टो फार्मा के मालिक हैं. रहने वाले जहानाबाद जिले के हैं. इन्हें लगातार तीसरी बार राज्यसभा का टिकट देकर पार्टी सवर्ण हितों और खास तौर से भूमिहार वोटरों को साधने की पूरी कोशिश कर रही है.
मनोज झा

दिल्ली यूनिवर्सिटी में सामाजिक कार्य विभाग के प्रोफेसर हैं मनोज झा.
मनोज झा आरजेडी से राज्यसभा के उम्मीदवार हैं. वो दिल्ली यूनिवर्सिटी में सामाजिक कार्य विभाग के प्रोफेसर हैं. पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं और दिल्ली में मीडिया के सामने पार्टी का पक्ष रखते रहते हैं. रहने वाले सहरसा के हैं और राजद में लालू के बाद सबसे बड़े नेता और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव की पसंद माने जाते हैं. मनोज झा को राज्यसभा में भेजने के पीछे पार्टी का मकसद सवर्ण वोटरों को साधने की कोशिश करना है. लालू यादव ने अपनी पूरी राजनीति मुस्लिम और यादव (एमवाई) समीकरण के सहारे की है. कभी जीत तो कभी हार का मुंह देखने वाले लालू को 2019 जीतने के लिए सवर्ण वोटरों की भी ज़रूरत है. ऐसे में राजद ने एक मनोज झा के रूप में सवर्ण को टिकट देकर ये समीकरण साधने की कोशिश की है. इसके अलावा मनोज झा पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं. अच्छा बोलते हैं और हर मुद्दे पर पार्टी की राय रखते हैं. दूसरी पार्टियां खास तौर पर बीजेपी और जदयू लालू को लेकर हमलावर रहती हैं. राज्यसभा में लालू और राजद का बचाव करने के लिए एक वोकल नेता की ज़रूरत थी और मनोझ झा पार्टी के लिए मुफीद हैं.
अशफाक करीम

लोजपा छोड़कर आरजेडी में शामिल हुए अशफाक करीम को मुस्लिम वोटों को साधने के लिए राज्यसभा भेजा जा रहा है.
अशफाक करीम आरजेडी से दूसरे राज्यसभा उम्मीदवार हैं. 2017 में जब राष्ट्रीय जनता दल का अधिवेशन हुआ था, तो अशफाक करीम रामविलास पासवान की पार्टी लोक जनशक्ति पार्टी छोड़कर आरजेडी में शामिल हो गए थे. इससे पहले अशफाक करीम 2009 में लोक जनशक्ति पार्टी के टिकट पर कटिहार से चुनाव लड़े थे. लेकिन वो हार गए थे. उन्हें सिर्फ 5742 वोट ही मिले थे. अशफाक करीम शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र से जुड़े हुए हैं. कटिहार में इनका मेडिकल कॉलेज है और वो इस मेडिकल कॉलेज के एमडी हैं. अशफाक करीम के जरिए राजद इस बात का संदेश देना चाहती है कि वो अब भी मुस्लिमों की हितैषी है और दो सीटें होने के बाद भी उसने मुस्लिम हितों को ध्यान में रखते हुए अशफाक करीम को टिकट दिया है.
अखिलेश सिंह

अखिलेश सिंह राज्यसभा पहुंचते हैं, तो वो बिहार से राज्यसभा के इकलौते कांग्रेसी सांसद होंगे.
कांग्रेस के कोटे में राज्यसभा की जो इकलौती सीट आई है, उस पर पार्टी ने अंतिम दिन अखिलेश सिंह के नाम पर मुहर लगाई है. बिहार में राज्यसभा की कुल 16 सीटें हैं, लेकिन अभी तक एक भी कांग्रेस का प्रत्याशी नहीं है. जब कांग्रेस के खाते में एक सीट आई, तो पार्टी ने पूर्व स्पीकर मीरा कुमार, पूर्व मंत्री डॉ. शकील अहमद, सीपी जोशी और जनार्दन द्विवेदी को पीछे छोड़ते हुए अखिलेश सिंह का नाम फाइनल कर दिया. वजह तलाश की गई तो पता चला कि अखिलेश सिंह भले ही कांग्रेस में हैं, लेकिन वो लालू यादव के करीबी हैं. और इसी करीबी ने उन्हें इस दौड़ में सभी को पछाड़ दिया. उनके नाम पर अंतिम मुहर खुद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी ने लगाई. बिहार के सियासी हलकों में चर्चा है कि लालू खुद अखिलेश को राज्यसभा भेजना चाहते थे. कांग्रेस 2019 में सहयोगियों की ओर देख रही है, ऐसे में बिहार के एक बड़े सहयोगी को वो नाराज नहीं कर सकती थी. लिहाजा अखिलेश सिंह को टिकट दे दिया गया.
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